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Monday 28 December 2020 03:26:30 PM
हैदराबाद। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने सार्वजनिक जीवन में सामाजिक मूल्यों के क्षरण पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने आगाह किया है कि लोग राजनीतिक वर्ग के लिए अपना विश्वास खो देंगे, यदि इस व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाने और स्वच्छ राजनीति को बढ़ावा देने की दिशा में तत्काल तथा सामूहिक कार्रवाई नहीं की जाती है। हैदराबाद में इंडिया फाउंडेशन के तीसरे अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान में वेंकैया नायडू ने जोर देकर कहा कि यह सुनिश्चित करना सभी राजनीतिक दलों का परम कर्तव्य है कि उनके विधायक और सांसद सहित सभी सदस्य हर समय और सभी स्थानों पर अपना नैतिक आचरण बनाए रखें। उन्होंने विधायकों और सांसदों से चर्चा के स्तर को ऊपर उठाने, निर्धारित मानकों का अनुसरण करने, अनियंत्रित व्यवहार से बचने और हमेशा चर्चा, बहस और निर्णय का पालन करने तथा विघटन से बचने की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि मूल्य आधारित राजनीति का अभाव, विचारधारा की कमी, सत्ता, बाहुबल और धनबल की भूख तथा राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का प्रवेश ही राजनीति के क्षेत्र में हिंसा का प्रमुख कारण है। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक इन अवांछनीय प्रवृत्तियों की जांच नहीं की जाती है, तबतक स्थिति और बिगड़ जाएगी, इससे देश की राजनीति को अपूरणीय क्षति हो सकती है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से दलबदल-रोधी कानूनों को अप्रभावी बना दिया गया है, उसपर ध्यान आकर्षित करते हुए दलबदल-विरोधी कानून को और अधिक कठोर एवं प्रभावी बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। इस बात का ज़िक्र करते हुए कि दलबदल के मामलों और इस समस्या को लंबे समय तक अनदेखा नहीं किया जा सकता है, उपराष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि पीठासीन अधिकारियों द्वारा तीन महीने के भीतर ही दलबदल के मामलों का निपटारा करना अनिवार्य कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि अगर हम दलबदल विरोधी कानूनों में खामियों को दूर करने में नाकाम रहे तो हम लोकतंत्र का मखौल उड़ाएंगे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सभी राजनीतिक दल 'सुविधा की राजनीति' को समाप्त करें और 'आस्था की राजनीति' तथा 'सर्वसम्मति की राजनीति' करें, जिसका मार्गदर्शन स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। वेंकैया नायडू ने राजनीतिक दलों से लोक लुभावनवाद को दूर करने और दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद का सहारा नहीं लेना चाहिए, इस तरह की नीतियां दीर्घकाल में अनुत्पादक साबित होंगी। भारतीय राजनीति में नकदी, जाति, आपराधिकता और समुदाय के बोलबाले पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने जनता से चरित्र, व्यवहार, कैलिबर और क्षमता के आधार पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने की अपील की। उन्होंने कहा कि ऐसे स्वस्थ राजनीतिक वातावरण में ही भारत का लोकतंत्र फल-फूल सकता है और अन्य देशों के लिए एक आदर्श बन सकता है। उन्होंने कहा कि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में हैं और हमें पूरी दुनिया के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करना है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने रेल संपर्क, हवाई यातायात और टेली कनेक्टिविटी से देश के विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से विकास किया और स्वयं भी राजनीतिक स्थिरता तथा उपलब्धि हासिल की, वे अपनी राजनीतिक शैली के माध्यम से कई दलों को एक साथ एक ही मंच पर लाने में सफल रहे। उपराष्ट्रपति ने युवाओं से अटलजी जैसे दूरदर्शी राजनेताओं के जीवन से सीख लेते हुए भ्रष्टाचार, किसी भी रूपमें भेदभाव, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और गरीबी की समस्या जैसी बुराइयों को खत्म करने में सबसे आगे रहने की अपील की। अटल बिहारी वाजपेयी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उपराष्ट्रपति ने उन्हें भारत के साथ-साथ विदेश में भी सबसे सम्मानित और प्रशंसित प्रधानमंत्रियों में से एक बताया। वेंकैया नायडू ने अटलजी को शालीनता, मर्यादा और शिष्टाचार का प्रतीक बताते हुए कहा कि उन्होंने लोगों को प्रेरित किया और उनकी सद्भावना एवं आत्मविश्वास को सराहा। वाजपेयीजी और आडवाणीजी के साथ अपने दीर्घ संबंधों याद करते हुए उपराष्ट्रपति ने उनको अपना गुरु बताया, साथ ही उन्हें मार्गदर्शक, दार्शनिक और अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के लिए परामर्शदाता के रूपमें याद किया। वेंकैया नायडू ने वाजपेयीजी को त्रुटिहीन, अखंडता और उच्च नैतिक मूल्यों वाले व्यक्ति के रूप में संबोधित किया।
उपराष्ट्रपति ने अटलजी के सौहार्दपूर्ण स्वभाव को याद करते हुए कहा कि वे केवल मित्र ही थे और राजनीतिक विचारधारा में उनका कोई शत्रु नहीं था। उन्होंने कहा कि हमारे सार्वजनिक जीवन में ऐसे गुणों वाले व्यक्ति का मिलना दुर्लभतम है। उनके लंबे संसदीय अनुभव का स्मरण करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने अपने विचारों, भाषा के प्रवाह, चुटकियों और सामयिक काव्य भावों तथा बुद्धिमता के साथ चर्चाओं को समृद्ध किया। उपराष्ट्रपति ने उन्हें एक तीक्ष्ण बुद्धिजीवी और एक उत्कृष्ट वक्ता बताया, जिनकी सादगी और शांतचित्त व्यवहार ने जनता हमेशा उनके व्यक्तित्व से बंधी रही, उनकी कमी बेहद खलती है, लेकिन उनके विचार हमेशा हमें उनके व्यक्तित्व की याद दिलाते हैं। यह बताते हुए कि अटलजी पद पर रहते हुए अपने कार्यकाल को पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनके कार्यकाल में देश में राष्ट्रवाद की एक नई भावना का उदय तथा एकीकरण हुआ, जो लोगों की मानसिकता में बदलाव को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि अब हम इस भावना का एक और समेकन देख रहे हैं। व्याख्यान के विषय 'लोकतांत्रिक आम सहमति का निर्माण-वाजपेयी मार्गदर्शन' पर वेंकैया नायडू ने कहा कि उनके लिए 'सहमति' एक तिकड़मी राजनीतिक उपकरण नहीं था, बल्कि यह उनके दृढ़ विश्वास का एक मुख्य तत्व थी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनकी सहमति के दृष्टिकोण ने अटलजी को सामाजिक और राजनीतिक स्पेक्ट्रम में व्यापक रूपसे स्वीकार्य बना दिया था, उनके नए दृष्टिकोण ने उन्हें अस्थिर गठबंधन सरकारों के युग में अपने पूर्ण कार्यकाल में सफलतापूर्वक एक बड़े गठबंधन का नेतृत्व करने में सक्षम बनाया। अटल बिहारी वाजपेयी के देश में गठबंधन की राजनीति में उनके योगदान के लिए वेंकैया नायडू ने उन्हें भारत में 'गठबंधन राजनीति की प्रथाओं के जनक' बताया। उपराष्ट्रपति ने कहा हालांकि अटलजी की सर्वसम्मति बनाने की क्षमता का मतलब हर समय समझौता करना नहीं होता था। उन्होंने 1999 में प्रधानमंत्री के रूपमें उनके दूसरे कार्यकाल का हवाला दिया जब उन्होंने एक गठबंधन सहयोगी के दबाव में आने से इनकार कर दिया और अपनी सरकार का त्याग कर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी को 'विकास पुरुष' की संज्ञा देते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि एक गठबंधन सरकार के मुखिया होने के बावजूद उन्होंने सफलतापूर्वक सभी बाधाओं को पार कर लिया और राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया। उपराष्ट्रपति ने उनके कई प्रयासों का उल्लेख किया, जिनमें विनिवेश के एक अलग मंत्रालय का निर्माण, राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, बिजली व्यवस्था में सुधार करना, संपर्क सुविधा और मुफ्त प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना शामिल है।
उपराष्ट्रपति ने वाजपेयीजी के कार्यकाल को अर्थव्यवस्था के लिए स्वर्ण युग करार दिया, क्योंकि उस दौरान इसमें 8% प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई। उपराष्ट्रपति ने कहा कि व्यक्ति को सशक्त बनाना ही राष्ट्र को सशक्त बनाना है, तीव्र सामाजिक परिवर्तन के साथ तीव्र आर्थिक विकास के माध्यम से सशक्तिकरण सबसे अच्छा है। उपराष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी के दृढ़ संकल्प की चर्चा करते हुए कहा कि 1998 में परमाणु परीक्षण के निर्णय और उसके बाद आर्थिक प्रतिबंधों से चतुराई से निपटने ने इस बात को सार्थक सिद्ध किया, यह उनकी दृढ़ता और विचारों की स्पष्टता थी कि दुनिया की अग्रणी शक्तियों ने कारगिल संघर्ष के दौरान हमलावर का पक्ष लेने से इनकार कर दिया था। उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास' के विचार का उल्लेख करते हुए इसे समावेशी और लोकतांत्रिक शासन की भावना के प्रति प्रतिबद्धता तथा अटलजी की विरासत को जारी रखना बताया। गृह मंत्रालय में केंद्रीय राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी, इंडिया फाउंडेशन न्यासी बोर्ड के सदस्य वाइस एडमिरल शेखर सिन्हा, इंडिया फाउंडेशन गवर्नर्स बोर्ड के सदस्य राम माधव और शौर्य डोभाल भी व्याख्यान में शामिल हुए।