स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 23 January 2021 05:42:34 PM
हैदराबाद। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर हैदराबाद के एमसीआर एचआरडी संस्थान में ‘पराक्रम दिवस’ कार्यक्रम में शामिल हुए और नेताजी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करके उन्हें याद किया। उपराष्ट्रपति ने इस अवसर पर संस्थान के फाउंडेशन कोर्स में भाग ले रहे अधिकारी प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उनसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से प्रेरणा लेने तथा ग़रीबी, अशिक्षा, सामाजिक और लैंगिक भेदभाव, भ्रष्टाचार एवं संप्रदायवाद को खत्म करने के लिए कार्य करने की अपील की। गौरतलब है कि देशभर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती ‘पराक्रम दिवस’ के रूपमें मनाई जा रही है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि युवाओं को एक नवीन भारत-एक प्रसन्न तथा समृद्ध भारत, जहां प्रत्येक नागरिक को समान अवसर मिले तथा जहां किसी प्रकार का कोई भेदभाव न हो के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। ‘पराक्रम’ या साहस को नेताजी के व्यक्तित्व का सबसे विशिष्ट गुण बताते हुए उपराष्ट्रपति ने देश के लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए नेताजी के जन्मदिन को ‘पराक्रम दिवस’ मनाने के सरकार के निर्णय की प्रशंसा भी की।
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि नेताजी एक करिश्माई नेता थे और स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे अग्रणी व्यक्तित्व में से एक थे, जिनका विश्वास था कि भारत की प्रगति के लिए हमें जाति, पंथ, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठने तथा खुद को पहले भारतीय समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कई लोग उनकी महानता के बारे में अवगत नहीं थे, क्योंकि उनके द्वारा किए गए योगदान को इतिहास की किताबों में ठीक से प्रस्तुत नहीं किया गया। उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि हमें अपने महान नेताओं के जीवन पर समारोह आयोजित करने चाहिएं, हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है। वेंकैया नायडू ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि भारतीय सशस्त्र बलों की मातृभूमि के प्रति बढ़ती निष्ठा ने भारत से ब्रिटिश साम्राज्य के जाने की प्रक्रिया तेज कर दी और यह देखते हुए कि विभिन्न नेताओं ने विभिन्न तरीकों से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, उपराष्ट्रपति ने कहा कि अंततोगत्वा उन सभी का लक्ष्य औपनिवेशिक शासन से भारत की मुक्ति अर्जित करना था।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि नेताजी भारत में जाति प्रणाली को समाप्त करना चाहते थे, 1940 के दशक में सभी जाति, पंथ, तथा धर्मों के सैनिक एक साथ रहते थे, एक ही रसोईघर में एक साथ खाना खाते थे और केवल भारतीयों के रूपमें ही लड़ते थे। उन्होंने कहा कि नेताजी हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि भारत की प्रगति केवल दलित और समाज के सीमांत वर्गों के उत्थान से ही संभव होगी। उपराष्ट्रपति ने नेताजी पर श्रीरामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और रबिंद्रनाथ टैगोर के उपदेशों के प्रभाव का उल्लेख किया और कहा कि यही अध्यात्मिकता उनकी आंतरिक शक्ति का स्रोत बन गई। उन्होंने कहा कि नेताजी के लोकतांत्रिक आदर्श बलिदान और त्याग के सिद्धांतों पर आधारित थे, वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए नागरिक अनुशासन, जिम्मेदारी, सेवा और देशभक्ति के मूल्यों को आत्मसात करें। वेंकैया नायडू ने कहा कि राष्ट्रवाद की सच्ची भावना देश के सभी नागरिकों के कल्याण के लिए काम करने से संबंधित है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमेशा भारत के सभ्यतागत मूल्यों तथा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में गर्व महसूस करते थे, जिसके बारे में उनका मानना था कि यही हमारे राष्ट्रीय गौरव और सामूहिक आत्मविश्वास की आधारशिला है। वेंकैया नायडू ने कहा कि नेताजी न केवल राजनीतिक बंधन, बल्कि संपत्ति के समान वितरण, जातिगत बाधाओं की समाप्ति तथा सामाजिक विषमताओं से भी मुक्ति चाहते थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अपनी जादुई उपस्थिति से वह सैनिकों जो ‘युद्ध बंदी’ थे को उत्साहित कर सकते थे और उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ के रूप में परिणत कर सकते थे और वे अपनी मातृभूमि के लिए तथा अपने प्रिय नेता के लिए अपने अंतिम क्षणों तक युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे। उन्होंने कहा कि नेताजी और आज़ाद हिंद फोज ने लोगों को काफी उत्साहित कर दिया था जैसाकि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा आईएनए कैदियों की सुनवाई के दौरान उन्हें मिले लोकप्रिय समर्थन से स्पष्ट था, इसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों को आईएनए जवानों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखना पड़ा।
उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि नेताजी महिलाओं को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र-चाहे सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक में समान अधिकार देने में विश्वास रखते थे, उनके विचारों की प्रगतिशीलता का अनुमान आईएनए में महिलाओं की वाहिनी का नाम रानी झांसी रेजिमेंट रखने से ही लगाया जा सकता है। उपराष्ट्रपति ने सशस्त्र बलों में महिलाओं के लिए स्थाई कमीशन उपलब्ध कराने के सरकार के निर्णय की सराहना की। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सार्थक शिक्षा, भारत के एक शिक्षा केंद्र और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूपमें उभरने के लिए अध्ययन एवं अध्यापन की पद्धतियों के पुनर्निर्माण की अपील की। कार्यक्रम में एमसीआर एचआरडी संस्थान के महानिदेशक हरप्रीत सिंह, संस्थान के अपर महानिदेशक बेनहर महेश दत्ता एक्का, संकाय, कर्मचारी और प्रशिक्षु अधिकारी शामिल हुए।