स्वतंत्र आवाज़
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बालापुर में हुई 'एक शाम साहित्य के नाम'

सबकी आवाज़ अदबी तंज़ीम के बैनर तले हुआ मुशायरा

जाने-माने शायरों ने ऑनलाइन मुशायरे में भाग लिया

अताउल्लाह ख़ान सादिक़

Wednesday 10 March 2021 03:12:45 PM

online mushaira

बलरामपुर। साम्प्रदायिक सद्भाव तदज़ीब और भाषा एवं साहित्य के प्रोत्साहन में कवियों शायरों और साहित्यकारों का अनुकरणीय योगदान होता है। देखा जाता है कि कवि सम्मेलनों या मुशायरों में बड़ी संख्या में सुनने वाले लोग आते हैं और पता नहीं चलता कि कब रात शुरु हुई और कब सवेरा हो गया। सबकी आवाज़ अदबी तंज़ीम के बैनर तले जूम ऐप परऐसा ही बालापुर 'एक शाम साहित्य के नाम' ऑनलाइन मुशायरा मुनक़्दि हुआ, जिसमें जाने-माने शायरों ने भाग लिया। मुशायरे की अध्यक्षता मशहूर ओ माअरुफ शायर इरफान हमीद काशीपुरी ने की और संचालन उमर मुख़्तार मुरादाबादी ने किया। मुशायरे के मुख्य अतिथि असदुल्ला असद अमवावी थे। हम्दो नात के साथ शुरू हुआ मुशायरा बहुत देर तक चला। मुशायरे में शानदार प्रस्तुतियों ने समां बांध दिया और शायरों ने खूब प्रशंसाएं बटोरीं।
मुशायरे में इरफ़ान हमीद उत्तराखंड ने पढ़ीं पसंदीदा पंक्तियां काबिल-ए-तारीफ हैं-
मुझको मेरी वफा का मिला वो सिला के बस।
मैं सादगी ए कल्ब पे चिल्ला उठा के बस।
अताउल्लाह ख़ान सादिक़ ने स्मार्ट फोन पर कहा-
स्मार्ट फोन दे के मुझे गिफ्ट में सादिक़।
रातों को जागने का हुनर दे गया मुझे।
काज़िम शीराज़ी जौनपुरी के अंदाज़-ए-बयां पर जरा ग़ौर फरमाइए-
तू मसीहा न सही एक सितमगर बनकर।
मुतमयीं दिल को जरा तस्कीन दिलाने आ जा।
फ़राज़ मुरादाबादी ने कुछ इस तरह तालियां बटोरीं-
आप की फुर्कत में जानां कुछ तो होना है जरूर।
मयकशी बढ़ जाएगी या शायरी बढ़ जाएगी।
मुजाहिद लालटेन इलाहाबादी ने मुशायरे में सुनाया-
यह काम भी ऐ जान-ए-तमन्ना किया करो।
दिनभर में एक बार तो बोसा दिया करो।
गुलनाज़ सिद्दीक़ी रामपुरी का कहना था-
खुद को सरापा अकल समझते थे आज वो,
इल्मो अदब की अब हैं किताबों की खोज में।
नदीम सादिक़ सिद्धार्थ नगरी ने सुनाया-
अभी तलक तो यहीं था हमारा चारागर।
यह कौन ले के गया है मेरे सिरहाने से।
आबिद नवाब सहारनपुरी को सुनिए-
बात करने को राजी नहीं जब,
दूर शिकवा-गिला कैसे होगा।
जौहर नगरौरी बहराइच ने कहा-
हमारे नेक अमल से हमें ख़ुदा न कहो।
यह काम हम नहीं करते ख़ुदा कराता है।
असदुल्लाह असद अमवावी अपनी शायरी में क्या खूब फरमाते हैं-
खतीब हो तुम, हो तुम सहाफी, खड़े हो अब शायरों की सफ में।
सुख़नवरों का इमाम कहना वो आप थीं जो के अब नहीं हैं।
मुशायरे के समापन पर संयोजक अताउल्लाह ख़ान सादिक़ ने शौअरा और सामाईन का शुक्रिया अदा किया। मुल्क ओ मिल्लत के हक में दुआओं के साथ मुशायरे का समापन हुआ।

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