स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 12 June 2021 01:32:07 PM
शाहजहांपुर। संस्कृति मंत्रालय ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंग के रूपमें महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती मनाने के लिए शाहजहांपुर में एक विशेष समारोह का आयोजन किया, जिसमें केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल ने पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने शहीद ठाकुर रोशन सिंह और शहीद अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान को भी श्रद्धांजलि दी। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के साहस को सलाम करते हुए संस्कृति मंत्री ने कहा कि शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने विवेक का पालन किया और एक आदर्श का अनुसरण करते हुए एक सार्थक जीवन जिया। उन्होंने कहा कि ऐसे बहुत कम लोगों के उदाहरण हैं, जिन्होंने इतना व्यापक ज्ञान अर्जित किया और इस तरह के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व भी किया है।
केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने कहा कि अगले वर्ष हम पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की 125वीं जयंती मनाएंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया और कहा कि जब उन्होंने अमृत महोत्सव की परिकल्पना की थी तो उन्होंने स्वतंत्रता के लिए हमारे संघर्ष के गुमनाम नायकों की भूमिका को सार्वजनिक करने पर बल दिया था। कार्यक्रम के बाद प्रहलाद सिंह पटेल पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के पुश्तैनी घर गए और उनके परिजनों से भी भेंट की। विशेष कार्यक्रम का आयोजन एनसीजेडसीसी, संस्कृति मंत्रालय ने आयोजित किया था। पुष्पांजलि समारोह में उत्तर प्रदेश के वित्त, संसदीय कार्य और चिकित्सा शिक्षामंत्री सुरेश खन्ना जो शाहजहांपुर के विधायक भी हैं, प्रदेश सरकार के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी, शाहजहांपुर के सांसद अरुण कुमार सागर और जिले के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल एक क्रांतिकारी कवि भी थे, जिनको श्रद्धांजलि के रूपमें उनकी विरासत को समर्पित एक सांस्कृतिक प्रस्तुति भी की गई। इस दौरान नवीन मिश्रा ने सितार पर भक्ति संगीत का मधुर वादन प्रस्तुत किया। अग्रणी किस्सागोईके प्रतिपादक हिमांशु बाजपेयी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की जीवनगाथा का वर्णन किया, इसके पश्चात किशोर चतुर्वेदी और उनके ग्रुप ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किए।
शाहजहांपुर में 11 जून 1897 को जन्में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष में सबसे उल्लेखनीय भारतीय क्रांतिकारियों में से एक थे। उन्होंने 19 वर्ष की आयु से ही बिस्मिल नाम से उर्दू और हिंदी में ओजस्वी देशभक्ति की कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारी नेताओं के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया और 1918 के मैनपुरी षड्यंत्र और 1925 के काकोरी षड्यंत्र में भाग लिया। अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान और रोशन सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। काकोरी षडयंत्र में उनकी भूमिका के लिए वे मात्र 30 वर्ष की आयु में 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर कारावास में शहीद हो गए थे। कारावास में रहते हुए उन्होंने 'मेरा रंग दे बसंतीचोला' और 'सरफरोशी की तमन्ना' जैसे देशभक्तिपूर्ण गीतों का लेखन किया, जो स्वतंत्रता सेनानियों के लिए गान बन गया और आजतक भारतवासियों के हृदय में ये गीत रचे-बसे हुए हैं एवं अपने देश के प्रति समर्पित सेवाभाव को प्रेरित करते हैं।