Friday 10 September 2021 05:35:29 PM
दिनेश शर्मा
कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री रहते अपने ही परम सहयोगी शुभेंदु अधिकारी से नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र का प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव हार चुकीं ममता बनर्जी अब फिर भवानीपुर उपचुनाव में फंस गई हैं। भाजपा ने उनके सामने भवानीपुर की जानीमानी नेता और अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल को उतारा है। इस चुनाव में ममता बनर्जी के लिए खोने को बहुत कुछ है, जबकि प्रियंका टिबरेवाल के पास खोने का कोई नुकसान नहीं है। कहने वाले कह रहे हैं कि ममता बनर्जी की बेकाबू ज़ुबान, उनकी कार्यशैली और दूसरी तरफ टीएमसी का परंपरागत बूथ लूटो हिंसाप्रेम इसबार कहीं इस उपचुनाव को 'काउंटरमांडेड' के परिणाम तक न पहुंचा दे और यदि ऐसा हुआ तो यह ममता बनर्जी की राजनीतिक मुश्किलों का न केवल अनसुलझा समय होगा, बल्कि उनकी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी का सारा खेल ही पराया हो जाएगा।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी भले ही बहुमत हासिल करने में विफल रही हो, लेकिन उसने तीन से सतहत्तर सीटें हासिल करके भविष्य में पश्चिम बंगाल में भाजपा की विजय की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। कांग्रेस और लेफ्ट का तो यहां सफाया ही हो गया है। इस चुनाव में टीएमसी को यद्यपि पहले से ज्यादा सीटें मिली हैं, लेकिन टीएमसी बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के तेजीसे बढ़ते जनाधार को रोकने में नाकाम रही है। ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के कारण भाजपा को बड़ा लाभ हुआ है। भवानीपुर में विधानसभा का उपचुनाव हो रहा है, जहां ममता बनर्जी टीएमसी की प्रत्याशी हैं। यह भी गौरतलब है कि ममता बनर्जी इस समय किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं और उनका अब किसी भी सदन का सदस्य होना जरूरी हो गया है नहीं तो ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा और यह भी है कि अगर वे भवानीपुर से चुनाव हार जाती हैं या वहां मतदान केंद्रों पर हिंसा आगज़नी बूथ लूटने जैसी घटनाएं घट जाती हैं तो चुनाव आयोग को यह अख्तियार है कि वे इनका संज्ञान लेकर भवानीपुर विधानसभा उपचुनाव को 'काउंटरमांडेड' यानी रद्द कर सकता है, जिसके बाद ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद त्यागना होगा और फिर बंगाल की राजनीति क्या करवट लेगी, यह कहा नहीं जा सकता।
ममता बनर्जी की राजनीतिक राहें अब आसान नहीं हैं, खासतौर से तबसे जबसे बंगाल में भाजपा ने उनको तगड़ी टक्कर देनी शुरु की है। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के दिग्गजों और कांग्रेस को कमजोर कर तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनाने में तो सफल हो गई थीं, लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण उनके गले की फांस बन गया है, जिससे पश्चिम बंगाल में न केवल भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से बंगाली अस्मिता जाग उठी, बल्कि भाजपा ने ममता बनर्जी का राजनीतिक प्रभुत्व संकट में डाल दिया है। अगले लोकसभा चुनाव में और अधिक स्पष्ट हो जाएगा कि ममता बनर्जी अपनी बाकी सीटें भी भाजपा से बचा पाएंगी या नहीं। ममता बनर्जी का भाजपा से टकराने का अंदाज इस हद तक बिगड़ा हुआ है कि उसका भविष्य में भाजपा को ही लाभ होना है। पश्चिम बंगाल में भाजपा का तीन से सतहत्तर तक पहुंचना कोई कम बड़ी बात नहीं है। इस समय देश का मिजाज जिस तरफ जा रहा है, उसमें ममता बनर्जी का मुस्लिम तुष्टिकरण कितना साथ देगा यह देखना होगा। बंगाल की राजनीति में बांग्लादेश के कट्टरपंथी मुसलमानों का भारी दखल रहता है, जिसे ममता बनर्जी अपने लिए उत्तरदान मानती हैं, लेकिन उस समय क्या होगा, जब पश्चिम बंगाल के विभाजन की मांग मान ली जाएगी? ये भविष्य के कुछ संकेत हैं, जिनसे ममता बनर्जी का राजनीतिक करियर डावांडोल होता है और भाजपा का भविष्य चमकता है।
भवानीपुर उपचुनाव भी ऐसा है, जिसमें कुछ भी हो सकता है। इस उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग ने कड़े सुरक्षा प्रबंध किए हैं। ममता बनर्जी की टीएमसी भी इसे जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है। ममता बनर्जी यहां से दो बार चुनी भी जा चुकी हैं, लेकिन वह दौर कुछ और था, जिसमें उनके सामने भाजपा की आज जैसी चुनौती नहीं थी। ममता बनर्जी को इसबार का चुनाव जीतने के लिए लोकतांत्रिक तरीके ही कारक सिद्ध हो सकते हैं और यदि इसमें हिंसा हत्याओं का तांडव हुआ तो चुनाव आयोग कड़ी से कड़ी कार्रवाई के लिए तैयार बैठा है, जिसमें यह चुनाव रद्द हो सकता है और ममता बनर्जी का राजनीतिक करियर अंधकार में जा सकता है। भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी प्रियंका टिबरेवाल उनको कड़ी चुनौती देंगी। वे एक प्रखर अधिवक्ता भी हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल चुनाव हिंसा पर टीएमसी और ममता बनर्जी को कोर्ट में भी घसीटा हुआ है, इसलिए इस चुनाव पर सभी की नज़र है। भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की टीम भी इस उपचुनाव में उतार दी है। घूमफिर कर यही कहा जा रहा है कि इस उपचुनाव में कुछ भी हो सकता है।