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Saturday 13 November 2021 05:30:15 PM
वाराणसी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग के वाराणसी में दो दिवसीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ किया और कहा हैकि यह बेहद हर्ष का विषय हैकि आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में पहलीबार राजभाषा सम्मेलन राजधानी दिल्ली के बाहर लाने में सफलता मिली है। उन्होंने कहाकि कोई भी सरकारी परिपत्र, अधिसूचना तबतक लोकभोग्य नहीं होती है, जबतक वो जनआंदोलन में परिवर्तित नहीं होती है। उन्होंने कहाकि राजभाषा को गति देने केलिए अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को दिल्ली के गलियारों से बाहर लेजाने का निर्णय 2019 मेंही कर लिया गया था और ये नई शुरूआत उस वर्ष में हो रही है, जो हमारी आज़ादी का अमृत महोत्सव वर्ष है। अमित शाह ने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा हैकि अमृत महोत्सव हमारे पुरखों द्वारा आज़ादी केलिए दिए गए बलिदानों, संघर्षों को स्मृति में पुनर्जीवित करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने का मौका तो है ही ये हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है, इसी वर्ष में 130 करोड़ भारतीयों को ये तय करना हैकि जब देश की आज़ादी के 100 साल होंगे तो भारत कैसा होगा और हर क्षेत्र में कहां खड़ा होगा?
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहाकि 75वें साल से 100 साल तक का काल अमृतकाल होगा और ये अमृतकाल हमारे सभी लक्ष्यों की सिद्धि का माध्यम होगा। गृहमंत्री ने कहाकि हमसब हिंदीप्रेमियों केलिए भी ये संकल्प का वर्ष रहना चाहिए, जब आज़ादी के सौ साल पूरे हों, तब देश में राजभाषा और हमारी सभी स्थानीय भाषाएं इतनी बुलंद हों कि किसी भी विदेशी भाषा का सहयोग लेने की ज़रूरत ही ना पड़े। उन्होंने कहाकि ये काम आज़ादी के तुरंत बाद होना चाहिए था, क्योंकि हमारी आज़ादी के आंदोलन के तीन स्तंभ थे-स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा, स्वराज तो मिल गया लेकिन स्वदेशी और स्वभाषा पीछे छूट गए। उन्होंने कहाकि वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया और स्वदेशी की बात करके स्वदेशी को फिरसे हमारा लक्ष्य बनाने की दिशा में आगे बढ़े हैं। अमित शाह ने आज़ादी के अमृत महोत्सव में देशभर के लोगों का आह्वान करते हुए कहाकि स्वभाषा के लक्ष्य का हम एकबार फिर स्मरण करें और इसे हमारे जीवन का हिस्सा बनाएं। गृहमंत्री ने कहाकि हिंदी और स्थानीय भाषाओं के बीच विवाद और राजनीति करने के बहुत प्रयास हो रहे हैं, किंतु हिंदी और हमारी स्थानीय भाषाओं केबीच कोई अंतर्विरोध नहीं है और हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहाकि राजभाषा का विकास तभी हो सकता है जब स्थानीय भाषाओं का विकास होगा और स्थानीय भाषाएं सतत रूपसे तभी विकसित हो सकती हैं, जब राजभाषा देशभर में मज़बूत हो, ये दोनों एक दूसरे की पूरक हैं। अमित शाह ने कहाकि दिल्ली से बाहर यह पहला सम्मेलन काशी में हो रहा है, विश्व का सबसे पुराना नगर बाबा विश्वनाथ का धाम है, मां गंगा का सानिध्य है और मां सरस्वती की उपासना करने वालों केलिए काशी हमेशा स्वर्ग रहा है। उन्होंने कहाकि भाषा और व्याकरण की उपासना करने वालों के लिए काशी हमेशा गंतव्य स्थान रहा है। गृहमंत्री ने कहाकि काशी एक सांस्कृतिक नदी है और देश के इतिहास को काशी से अलग करके लिख ही नहीं सकते, चाहे रामायणकाल हो, महाभारतकाल हो, देश का गौरवमयी इतिहास हो, आज़ादी का आंदोलन हो काशी को देश के इतिहास से अलग करके हम नहीं देख सकते। उन्होंने कहाकि जहां तक भाषा का प्रश्न है तो काशी भाषा का गौमुख है, भाषाओं का उद्भव, भाषाओं का शुद्धिकरण, व्याकरण का शुद्धिकरण और व्याकरण को लोकभोग्य बनाने में काशी का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहाकि जो हिंदी आज हम बोलते और लिखते हैं, उस का जन्म इसी बनारस में हुआ है, भारतेंदु हरिश्चंद्र को कौन भूल सकता है, खड़ी बोली का क्रमबद्ध विकास यहीं हुआ है और आज जो समृद्ध भाषा बनकर हिंदी हमारे सामने है, इसकी पूरी यात्रा हमारे लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहेगी।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि 1893 में आर्य समाज के अंदर एक आंदोलन चला और शाकाहार व पश्चिमी शिक्षा के मुद्दे पर एक बहुत बड़ा मतभेद हुआ, उस वक़्त शिक्षा का माध्यम क्या हो इसपर पहलीबार चर्चा हुई, 1868 में पहलीबार यहां पर कुछ ब्राह्मण विद्वानों ने मांग उठाई थीकि शिक्षा की भाषा हिंदी होनी चाहिए, मांग को तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने मान लिया था और नौकरियों में अभिजात्य तरीक़े से उर्दू भाषा को जो प्राथमिकता दी जाती थी उसे चुनौती मिली और हिंदी को राजभाषा बनाने की दिशा में पहला कदम उसीवर्ष रखा गया। अमित शाह ने कहाकि हिंदी भाषा के उन्नयन और उसका व्याकरण बनाने की शुरुआत भी 1893 हुई में काशी नागरी प्रचारिणी सभा केसाथ हुई। अमित शाह ने कहाकि हिंदी की पढ़ाई और पाठ्यक्रम तैयार करने की चिंता पंडित मदन मोहन मालवीय ने यहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में की थी। गृहमंत्री ने कहाकि हम तुलसीदास को कैसे भूल सकते हैं, अगर उन्होंने अवधी में रामचरितमानस ना लिखा होता तो शायद आज रामायण लुप्त हो गया होता, तुलसीदास ने यहां रामायण के अर्थ को आगे बढ़ाने का काम किया और उन्हीं से अवधी और हिंदीकी बोलियों को लोकप्रिय बनाने की शुरुआत हुई। अमित शाह ने कहाकि जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, बाबू श्यामसुंदर दास समेत अनेक विद्वानों ने यहीं पर हिंदी को आगे बढ़ाने का काम किया है।
अमित शाह ने कहाकि हिंदी भाषा को लेकर विवाद खड़ा करने का प्रयास किया गया, लेकिन अब वह समय समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा कि मैं बचपन से देखता थाकि अगर अंग्रेजी बोलनी नहीं आती तो बच्चे के मन में एक हीनभावना पैदा हो जाती थी, आज मैं दावे से कहता हूंकि कुछ समय बाद अपनी भाषा में ना बोल सकने पर हीनभावना का अनुभव होगा, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कृति से गौरव केसाथ अपनी भाषाओं को दुनिया और देशभर के अंदर प्रस्थापित करने का काम किया है। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री ने दुनियाभर में भारत की बात अपनी राजभाषा में रखकर राजभाषा के गौरव को बढ़ाया। उन्होंने कहाकि जो देश अपनी भाषा को खो देता है, वह कालक्रम में अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता, जो देश अपने मौलिक चिंतन को खो देता है वे दुनिया को आगे बढ़ाने के लिए योगदान नहीं कर सकता, इसलिए हमारी भाषाओं को संभालकर रखना बहुत महत्वपूर्ण है। अमित शाह ने कहाकि महर्षि पाणिनि, महर्षि पतंजलि और महऋषि भर्तृहरि ने भाषाओं केलिए अनेक प्रकार की विधाओं को हमारे देश के अंदर जन्म दिया, आज भी कुछ लोग उन्हें संभालकर आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने देशभर के अभिभावकों से अपील और अनुरोध कियाकि वे अपने बच्चों केसाथ अपनी भाषा में बात करें, बच्चे चाहे किसी भी माध्यम में पढ़ते हों, घर के अंदर उनसे अपनी भाषा में बात करें और उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहाकि दुनिया में लगभग 6000 भाषाएं बोली जाती हैं, सबसे ज्यादा बोली जानेवाली और लिपिबद्ध भाषाएं अगर किसी एक देश में है तो वह भारत के अंदर है, हजारों साल का हमारा इतिहास और संस्कृति का धाराप्रवाह इनके अंदर समाहित है, हमें उसे आगे बढ़ाना है। अमित शाह ने कहाकि भाषा जितनी सशक्त और समृद्ध होगी, संस्कृति और सभ्यता उतनी ही विस्तृत, सशक्त और चिरंजीव होगी। अमित शाह ने युवाओं का आह्वान कियाकि वे अपनी भाषा से जुड़ाव और लगाव तथा अपनी भाषा के उपयोग से कभी भी शर्म न रखें, क्योंकि अपनी भाषा गौरव का विषय है। उन्होंने कहाकि स्वभाषा व्यक्ति के विकास केलिए बहुत महत्वपूर्ण है, अगर हमें आत्मसम्मान चाहिए तो हमें राजभाषा और स्वभाषा, दोनों को मज़बूत करना होगा। गृहमंत्री ने कहाकि लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है, जब प्रशासन की भाषा स्वभाषा और राजभाषा हो, गृह मंत्रालय में शत-प्रतिशत काम राजभाषा में होता है और बहुत सारे विभाग भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहाकि अमृत काल में हमने कुछ लक्ष्य तय किए हैं कि देश की शिक्षा, प्रशासन, न्याय व्यवस्था, तकनीक की भाषा स्थानीय और राजभाषा हो, जनसंचार और मनोरंजन की भाषा भी स्थानीय और राजभाषा हो, राजभाषा और स्वभाषा के प्रचार के लिए किसी केसाथ संघर्ष की जरूरत नहीं है, इसका बढ़ना अब नियति है।
अमित शाह ने कहाकि हमें हिंदी के शब्दकोश को भी समृद्ध करने की जरूरत है, इसके लिए भी हमें काम करना चाहिए। उन्होंने कहाकि दो दिनी सम्मेलन में कई विषयों पर चर्चा की जाएगी, स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्र भारत में संपर्क की भाषा का एक विषय है, मीडिया में हिंदी का प्रभाव और योगदान एक विषय है, राजभाषा के रूपमें हिंदी की विकास यात्रा और योगदान विषय और इसके पूरे इतिहास पर चर्चा होगी। वैश्विक संदर्भ में हिंदी के सामने चुनौतियां चर्चा का विषय है। भाषा चिंतन की भारतीय परंपरा और संस्कृति के निर्माण में हिंदी की भूमिका पर चर्चा होगी और न्यायपालिका में हिंदी के प्रयोग पर चर्चा होगी। सम्मेलन में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय, अजय कुमार मिश्रा, निशिथ प्रमाणिक, सांसद और सचिव राजभाषा सहित देशभर के विद्वान शामिल हुए। दो दिवसीय राजभाषा सम्मेलन के दौरान कई समानांतर सत्रों में हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ाने के विषय में विचार और मंथन किया जाएगा।