विकास मिश्रा’
इटावा,।उप्र। इटावा में जिलाधिकारी कार्यालय की प्राचीर पर चिथड़ों में लटका राष्ट्रीय ध्वज आप भी देखिए। यह भारतीय लोकतंत्र का गर्दिश का दौर है और जिलाधिकारी के अपनी कलक्ट्रेट के घटिया प्रबंधन का एक प्रमाण। जिलाधिकारी इटावा एस प्रियदर्शी से पूछिए कि उनके भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन का क्या औचित्य है? क्योंकि वे भारतीय संविधान की दृष्टि में एक श्रेष्ठ प्रशासनिक अधिकारी माने जाते हैं और यदि राष्ट्रीय ध्वज की यह दुर्गति भी उनकी नज़रें नहीं देख सकी हैं तो वे अपने जिले में बाकी और क्या देख रहे हैं? इस अपमान का दोष भी मंत्रियों और नेताओं को जाएगा? जिलाधिकारी भले ही इस पर लाख सफाई दें लेकिन उनकी जागरूकता एवं जिम्मेदारी पर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
जिस तिरंगे की खातिर अनगिनत लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये उस तिरंगे का अपमान इटावा में सरकारी इमारत पर हुआ। कई टुकड़ों मे चिथड़े हुआ राष्ट्र ध्वज जिलाधिकारी कार्यालय की प्राचीर पर टंगा और पड़ा रहा लेकिन राष्ट्र ध्वज के प्रति जिलाधिकारी कार्यालय को नहीं लगा कि कलेक्ट्रेट जैसी जगह पर तिरंगे की उपेक्षा का इतना गंभीर अपराध हो रहा है। ये वो कार्यालय है जहां जिलाधिकारी एवं जिले के सभी वरिष्ठ अधिकारी ज्यादा देर तक जिले का समस्त सरकारी काम-काज निपटाते हैं, जहां तिरंगा फहराना पूरे जिले में तिरंगा फहराना माना जाता है। साफ जाहिर होता है कि राष्ट्रध्वज के प्रति इटावा के जिलाधिकारी कितने संवेदनहीन, लापरवाह हो गये हैं यह कब से हो रहा है इस पर भले ही मीडिया की भी अब नज़र पहुंची हो लेकिन इस वक्त इटावा में जिलाधिकारी के पद पर जो भी हों उन्हें ही जिम्मेदार माना जाएगा।
यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि एक जिलाधिकारी को क्या करना चाहिए लेकिन एक गैर जिम्मेदार जिलाधिकारी को यह बताना जरूरी हो गया है कि राष्ट्रीय ध्वज भारतवासियों के लिये मान-सम्मान, स्वाभिमान और राष्ट्र के लिये गर्व का प्रतीक है। अंग्रेजी शासन में तिरंगा फहराह दिया जाना मान लिया जाता था कि उस स्थान पर भारतीयों की सत्ता स्थापित हो गई है। तिरंगे के लिये एक ध्वज संहिता है, जिससे कोई उसका अपमान न कर सके, लेकिन इटावा के जिलाधिकारी कार्यालय की प्राचीर पर लगा तिरंगा किसी भी कारण से कई टुकडों मे बंट गया और इसे समय रहते देखा नहीं गया। इसकी केसरिया रंग की पट्टी लहराती रही और हरे एवं सफेद रंग की पट्टी चक्र सहित अलग- अलग टुकडों मे बंटी प्राचीर की दीवार पर पड़ी रही। अफसोस कि उसे कोई सम्मान पूर्वक उठाने वाला नहीं था।
भारत मे तिरंगे के लिये बनायी गयी ध्वज संहिता मे इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि तिरंगे का भूमि एवं फर्श से स्पर्श नहीं होना चाहिये लेकिन यहां तो तिरंगा कई टुकडों मे बंट कर घंटों जमीन पर पडा रहा। इटावा के कलक्ट्रेट परिसर मे जहां जनपद के जिलाधिकारी से लेकर सभी वरिष्ठ अधिकारी बैठते हैं वहां पर जिले की जनता ने राष्ट्रीय ध्वज तार-तार होते देखा। जिलाधिकारी कार्यालय मे एक अधिकारी की यह जिम्मेदारी होती है कि वह राष्ट्र ध्वज की देखरेख करे लेकिन आज जिस तरह से राष्ट्र ध्वज का अपमान हुआ उससे साफ लगता है कि राष्ट्र ध्वज के प्रति क्या सम्मान है। इस मामले पर जब जिलाधिकारी एस प्रियदर्शी से बात करनी चाही तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया, जबकि उन्हें इस विषय पर किसी भी गलतफहमी को दूर करने के लिए इस मामले में तत्काल स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी तब इस घटना पर विभिन्न प्रकार के लोकापवाद नहीं उठते। जिलाधिकारी के नकारात्मक रवैये से इस मामले को और ज्यादा हवा मिली है। जिलाधिकारी के चेहरे पर भी इस बात का जरा भी अफसोस नही दिखा। ऐसे अधिकारी जनता और देश के प्रति कितने जिम्मेदार और संवेदनशील होंगे, अंदाजा लगाईए।