Wednesday 12 January 2022 02:35:48 PM
दिनेश शर्मा
लखनऊ। आज उत्तर प्रदेश भाजपा में जो हो रहा है, वह आश्चर्यजनक नहीं है। भाजपा हाईकमान को भी पता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके मंत्रियों और संगठन में गहरी नाराज़गी है, जो समय-समय पर विस्फोटक भी बनी, मगर भाजपा हाईकमान ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। राजनीति में कभीभी कुछ भी संभव है, मगर उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक प्रबंधन को यह घटनाक्रम कलसे रह-रहकर चुनौती दे रहा हैकि चुनाव के मौके पर भाजपा इस नाराज़गी का खामियाजा भुगतने को तैयार रहे। यद्यपि उत्तर प्रदेश में पिछड़ेवर्ग के एक शक्तिशाली नेता बनने और कहलाने के बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य सदैव आयाराम और गयाराम ही बने रहे हैं, दबाव की राजनीति करने के कारण वे विश्वसनीय राजनेता नहीं बन पाए हैं। भाजपा छोड़ने के बाद वह एक बात बार-बार और साफ-साफ कह रहे हैंकि सम्मान पर चोट और सरकार एवं संगठन में घोर उपेक्षा के कारण उन्होंने ऐसा किया है। स्वामी प्रसाद मौर्य का मंत्रीपद और भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा भाजपा को कितना और क्यों नुकसान पहुंचाएगा, स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने इस्तीफे में इसका कारण भी स्पष्ट कर दिया है। निष्कर्ष सामने हैं कि नाराज़गी भाजपा से नहीं है, बल्कि योगी आदित्यनाथ से है।
स्वामी प्रसाद मौर्य ऐसे कोई पहले नेता या मंत्री नहीं हैं, जिनको मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी उपेक्षा और अपमान की घोर शिकायत है। योगी मंत्रिमंडल और भाजपा में इस समय स्वामी प्रसाद मौर्यों की लंबी लिस्ट है। भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल सुहेलदेव पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर तो बहुत पहले ही सरकार में अपनी उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने सबसे पहले योगी आदित्यनाथ के खराब व्यवहार के खिलाफ मंत्री पद छोड़ दिया था। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हें अपने साथ ले लिया है, अब वे वहां जा रहे हैं। देखना होगा कि वे सपा केलिए कितने लाभदायक और भाजपा केलिए कितने नुकसानदायक सिद्ध होंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य वास्तव में एक कद्दावर नेता हैं, जिनकी पिछड़ों में काफी अच्छी पैठ है। उनकी पुत्री संघमित्रा मौर्य बदायूं से भारतीय जनता पार्टी की सांसद हैं। उनका बयान आया हैकि वह भाजपा नहीं छोड़ रही हैं। प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने स्वामी प्रसाद मौर्य से सहानुभूति जताई है और भाजपा नेतृत्व से कहा हैकि उन्हें भाजपा से जाने से रोका जाना चाहिए, वे ज़मीनी नेता हैं, मगर दूसरी तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य कह रहे हैं कि अब उनका फैसला कोई नहीं बदल सकता और वे सपा में जाएंगे।
स्वामी प्रसाद मौर्य पडरौना विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं वे मायावती पर भी उनकी उपेक्षा और अपमान का आरोप लगाकर बसपा छोड़कर भाजपा में आए थे। स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि उन्होंने इन 5 वर्ष में योगी मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री की उपेक्षा और दर उपेक्षा झेली है, उन्होंने कई बार यह बात भाजपा हाईकमान से कही है, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। ओमप्रकाश राजभर का भी यही कहना है कि उन्होंने अनेक बार भारतीय जनता पार्टी हाईकमान को बताया कि जिले का दरोगा भी उनकी नहीं सुन रहा है और मुख्यमंत्री तो उनकी बात सुनते ही नहीं हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी हाईकमान ने भी उनकी बात की उपेक्षा की, जिस कारण उन्हें भाजपा सरकार से अलग होना पड़ा। ओमप्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे अनेक मंत्री और विधायक भारतीय जनता पार्टी में हैं जो योगी आदित्यनाथ के व्यवहार और उपेक्षा के कारण खून का घूंट पीते रहे हैं और अब उनके आक्रोश का बम फूट रहा है। स्वामी प्रसाद मौर्य को मनाने की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन अब भाजपा में उनकी वापसी नामुमकिन लग रही है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक-एककर आक्रोश बाहर आ रहा है। यह आक्रोश और कहां तक फैलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाराज़ विधायकों की संख्या कोई कम नहीं है। अनेक मंत्री, विधायक, भाजपा के नेता एवं कार्यकर्ता ऐसे हैं, जिनकी यह शिकायत हैकि उनकी उनके क्षेत्र के अधिकारी, लेखपाल, दरोगा सिपाही भी नहीं सुनते हैं, डीएम-एसपी तो उनका फोन उठाते ही नहीं हैं, जिससे वह अपने क्षेत्र की जनता के काम करने में विफल हैं और ऊपर से भाजपा नेतृत्व का यह दबाव कि आप क्षेत्र में काम कीजिए साथ में यह शिकायत भीकि आप क्षेत्र में काम नहीं करते हैं, आपका रिपोर्ट कार्ड ख़राब है। सवाल यह हैकि जब जिलों के अधिकारियों को मुख्यमंत्री का यह संदेश हैकि वह किसी की नहीं सुनें, तबफिर जाहिर सी बात है कि मंत्रियों और विधायकों के रुतबे का भी कोई मतलब नहीं रह जाता है। अनेक ऐसे अवसरों पर यह बात सामने आई हैकि जिलों में विधायकों और मंत्रियों तक की बात बिल्कुल भी नहीं सुनी जा रही है, वह अपने कार्यकर्ताओं को मुंह दिखाने की स्थिति में भी नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश के अनेक मंत्रियों और विधायकों का आक्रोश हैकि योगी आदित्यनाथ ने कभी भी उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया है, बल्कि उनसे उल्टे रूखा व्यवहार किया है। मुख्यमंत्री केवल अपनी मनमानी करते हैं। वास्तव में यह अक्सर सुना जाता रहा है कि योगी आदित्यनाथ का अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से भी अच्छा संवाद नहीं रहा है और यहां तक कहा जाता हैकि वह उनसे भी अभद्रता करते रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ता किंकर्तव्यविमूढ़ हैं जिससे उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपने क्षेत्र की जनता को क्या जवाब दें और किस मुंह से उससे कहें कि वह बीजेपी को वोट करे, क्योंकि उनके कोई काम ही होते हैं। योगी आदित्यनाथ के विरोध का बम एक दिन फूटना ही था, जिसकी ऐन चुनाव पर स्वामी प्रसाद मौर्य ने शुरुआत कर दी है। योगी आदित्यनाथ आखिर किसके लिए सरकार चला रहे हैं? कई मुद्दे हैं जो मंत्रियों और विधायकों ने योगी आदित्यनाथ के सामने उठाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने अनसुना किया, क्योंकि उन्हें भारतीय जनता पार्टी हाईकमान का आशीर्वाद जो प्राप्त हैकि वह जो चाहे करें, उन्हें कोई रोकेगा या टोकेगा नहीं, जबकि एक मुख्यमंत्री का स्थानीय प्रशासन पर नियंत्रण और जनप्रतिनिधियों का मान-सम्मान उनकी सरकार की प्राथमिकता होती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने शपथ ग्रहण के बाद कहा था कि जो गलत लोग हैं वह अपने को सुधार लें अन्यथा उनके विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इससे आशा लगी थीकि उत्तर प्रदेश में शासन-प्रशासन का पुराना ढर्रा बदलेगा, मगर शपथ ग्रहण के 7 दिन बाद ही योगी आदित्यनाथ ने यह भी कह दिया कि अधिकारी किसी की ना सुनें। अधिकारियों ने इसका मतलब यह लगा लिया कि एमएलए हो या एमपी, मंत्री हो या जनप्रतिनिधि, उनकी नहीं सुनी जाएगी और जो लखनऊ से आदेश आएगा उसीका पालन किया जाएगा। इस कारण अधिकारियों ने अड़ियल रुख अपना लिया और उन्होंने जनप्रतिनिधियों की इतनी घोर उपेक्षा कीकि आज स्वामी प्रसाद मौर्य का भी मंत्री पद और भाजपा से भी इस्तीफा हो गया है। उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में जो अबतक कोई नहीं कह पाया वह कल स्वामी प्रसाद मौर्य ने कह और कर दिया है। योगी आदित्यनाथ सरकार की कार्यप्रणाली का यह एक कड़वा निष्कर्ष है। राजनीतिक हल्कों में कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा अच्छा शगुन नहीं है। यूं तो किसी के जाने और आने से इतने बड़े दल पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन फर्क किस बात से पड़ा है यह महत्वपूर्ण है और फर्क यह है कि योगी आदित्यनाथ पर सरकार और संगठन के भीतर भी अक्षमता, मनमानी हठधर्मी और अभद्रता के आरोप लग रहे हैं।
यह सुना जाता रहा है कि योगी सरकार में कुछ आक्रोश है, लेकिन वह बगावती रुख नहीं ले पाया था, इसका कारण यह था कि योगी आदित्यनाथ सरकार को भारतीय जनता पार्टी और उसके गठबंधन के सवा तीनसौ विधायकों का समर्थन था। योगी आदित्यनाथ पर सबसे बड़ा आरोप जातिवाद का है, जिसका उत्तर प्रदेश में बोलबाला दिखाई देता है, यह बात भारतीय जनता पार्टी का भी हर वह व्यक्ति बोलता है। राज्य सरकार के नियुक्ति विभाग में इस जातिवाद की पड़ताल की जा सकती है। उत्तर प्रदेश में गोवंश के छुट्टा घूमने फसल चौपट करने पर स्थानीय प्रशासन ने कोई काम नहीं किया और यह गांव में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। स्थानीय प्रशासन के अधिकारी मनमानी करते हैं, उनका जनता से कोई संवाद नहीं है। पुलिस और थानों में किसी का सम्मान नहीं बचा है, कोरोना में पुलिस ने अभद्रता और मनमानी की है, ये वह आरोप है जिन पर भाजपा ने कभी गौर नहीं किया। भारतीय जनता पार्टी के लोग केवल योगी आदित्यनाथ की झूंठी प्रशंसा करते ही नज़र आए हैं, जिसका परिणाम आक्रोश बनकर सामने है और सामने है चुनाव, जिसमें भाजपा साढे़ तीन सौ के पार सीटें जीतने का दावा कर रही है। देखना है कि आगे क्या होता है।