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Monday 28 March 2022 12:44:21 PM
हरिद्वार। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के युवाओं से आग्रह किया हैकि वे कुष्ठ प्रभावित लोगों की सेवा करने के अनुकरणीय उदाहरणों से प्रेरणा प्राप्त करें और समाज एवं लोगों के बीच कुष्ठ रोग से संबंधित भ्रांतियों को दूर करने में अपना योगदान दें। उन्होंने कहाकि एनएसएस जैसे संगठनों के माध्यम से इस रोग के उपचार केबारे में लोगों में जागरुकता फैलाई जा सकती है। उन्होंने कहाकि कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्ति को बीमारी के दौरान तथा उससे मुक्त होने केबाद भी, किसी भी अन्य रोग से प्रभावित व्यक्ति की तरह परिवार और समाज के अभिन्न अंग के रूपमें उसी तरह स्वीकार करना चाहिए जैसेकि अन्य रोग से प्रभावित व्यक्ति को किया जाता है। राष्ट्रपति ने हरिद्वार में दिव्य प्रेम सेवा मिशन के रजत जयंती समारोह के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ये विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहाकि दिव्य प्रेम सेवा मिशन के रजत जयंती समारोह में शामिल होना उनके लिए बहुत प्रसन्नता की बात है, जो अपनी स्थापना केबाद से मानवता के कल्याण में लगातार योगदान दे रहा है। उन्होंने कहाकि अध्यात्म का मूल तत्व मानवजाति का कल्याण एवं सेवा है और दिव्य प्रेम सेवा मिशन निरंतर उसी पथ पर चल रहा है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि वह इस मिशन के कार्यकलापों और विकास को तबसे देख रहे हैं, जबसे इसने हरिद्वार में एक झोपड़ी में कुष्ठ पीड़ित लोगों केलिए चिकित्सा सेवाएं आरंभ की थीं। उन्होंने मिशन के संस्थापक डॉ आशीष गौतम की सराहना करते हुए कहाकि प्रयागराज के एक युवक केलिए दो दशक पहले हरिद्वार आकर समाज की परंपराओं के विरूद्ध जाकर इस संस्था की स्थापना करना आसान नहीं था, लेकिन अपने दृढ़ निश्चय और लगन से उन्होंने एक मिसाल कायम की है। राष्ट्रपति ने कहाकि दिव्य प्रेम सेवा मिशन कई अनुकरणीय और प्रशंसनीय कार्यकलाप कर रहा है जैसे-कुष्ठ रोगियों के उपचार केलिए क्लिनिक, सामाजिक रूपसे हाशिए पर पड़े कुष्ठ रोगियों के बच्चों केलिए स्कूल, छात्रों विशेष रूपसे लड़कियों केलिए छात्रावास और वहां रह रहे बच्चों के समग्र विकास केलिए कौशल विकास केंद्र। रामनाथ कोविंद ने मिशन के संस्थापकों और उनके सहयोगियों को इस तरह की उत्कृष्ट सेवा और समर्पण केलिए बधाई दी।
राष्ट्रपति ने कहाकि हम सभी जानते हैंकि स्वतंत्रता केबाद अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया और संविधान केतहत दंडनीय अपराध बना दिया गया, संविधान के अनुच्छेद 17 में जाति और धर्म पर आधारित अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया था, लेकिन कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों केप्रति सदियों पुरानी अस्पृश्यता आज भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है, यह दुर्भाग्यपूर्ण हैकि इस बीमारी को लेकर समाज में अभी भी कई भ्रांतियां और कलंक मौजूद हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति को किसी अन्य रोग से पीड़ित व्यक्ति की तरह परिवार और समाज के अभिन्न अंग के रूपमें स्वीकार किया जाना चाहिए, ऐसा करके ही हम अपने समाज और राष्ट्र को एक संवेदनशील समाज और राष्ट्र कह सकते हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि कुष्ठ पीड़ित लोगों का मनोवैज्ञानिक पुनर्वास उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनाकि उनका शारीरिक उपचार। उन्होंने कहाकि संसद ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 पारित किया है, जिसके तहत भारतीय कुष्ठ रोग अधिनियम-1898 को निरस्त कर दिया गया है और कुष्ठ से पीड़ित लोगों के खिलाफ भेदभाव को कानूनी रूपसे समाप्त कर दिया गया है।
राष्ट्रपति ने कहाकि स्वामी विवेकानंद ने कहा थाकि जीव सेवा से बढ़कर और कोई दूसरा धर्म नहीं है, सेवा धर्म का यथार्थ अनुष्ठान करने से संसार का बंधन सुगमता से छिन्न हो जाता है। उन्होंने कहाकि कुष्ठ रोग से ठीक हुए व्यक्तियों को भी अधिनियम-2016 के लाभार्थियों की सूची में शामिल किया गया है। राष्ट्रपति ने कहाकि महात्मा गांधी अपने जीवन में मानवता की सेवा केलिए समर्पित थे और कुष्ठ रोगियों का उपचार और देखभाल करते थे, उनके अनुसार स्वयं को जानने का सबसे अच्छा तरीका मानवजाति की सेवा में स्वयं को समर्पित करना है, उनका मानना थाकि कुष्ठ भी हैजा और प्लेग जैसा रोग है, जिसका इलाज किया जा सकता है इसलिए जो इसके रोगियों को हीन समझते हैं, वे ही वास्तविक रोगी हैं, गांधीजी का संदेश आज भी प्रासंगिक है। जयंती समारोह में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, राज्यपाल सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, योगगुरू स्वामी रामदेव और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।