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Wednesday 22 June 2022 12:17:46 PM
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने ओडिशा के आदिवासी जनजातीय समूह संथाल से आनेवाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव-2022 में एनडीए का राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के इस कदम को ऐतिहासिक और महिला सशक्तिकरण केलिए उसकी ईमानदार प्रतिबद्धता बताया है तो सिद्ध भी किया है और कोई भी भारतीय भाजपा में रहकर किसी भी सर्वोच्च पद पर आसीन होने का ख्वाब देख सकता है या किसी भी भाजपा कार्यकर्ता को ऐसे प्रतिष्ठापूर्ण अवसर मिल सकते हैं, जबकि कहीं और ऐसा कम ही संभव है। द्रौपदी मुर्मू ने कभी नहीं सोचा थाकि एक दिन उन्हें ऐसा अवसर मिलेगा, उन्हें तो टीवी पर न्यूज़ देखी कि भाजपा ने उनका नाम राष्ट्रपति पद केलिए तय कर दिया है। द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से खासतौर से जनजातीय बहुल्य छत्तीसगढ़, झारखंड और दूसरे आदिवासी जनजातीय बहुल इलाकों में इस समय जश्न का माहौल है, जो पहलीबार अपने समूह को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति के पद पर देखेगा। भारतीय जनता पार्टी का यह फैसला देश के दूरगामी राजनीतिक दृष्टिकोण और उसकी जमीन पर लंबे विस्तार के रूपमें देखा जा रहा है।
आदिवासी जातीय समूह संथाल की द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के ऐसे बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले से आती हैं, जहां जीवन कठिन और गरीबी और बेहद पिछड़ापन एक सच्चाई है, जहां शिक्षा भी दुर्लभ मानी जाती थी, द्रौपदी मुर्मू ने इस संसाधन विहीन क्षेत्र में न केवल शिक्षा हासिल की, बल्कि शिक्षक बनीं। उन्होंने अपने जीवन संघर्ष में लोगों का दुखदर्द बांटा और सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर भी अपनी सक्रियता बढ़ाई। द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूपमें अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया। वर्ष 2000 और 2004 में वह बीजेपी के टिकट पर रायरंगपुर सीट से विधायक चुनी गईं। वे बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुकी हैं। द्रौपदी मुर्मू झारखंड की ऐसी पहली राज्यपाल बनीं, जिन्होंने अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। वे वर्ष 2015 से 2021 तक झारखंड के राज्यपाल का पद संभाला। ओडिशा राज्य से देश के राष्ट्रपति पद तक पहुंचने वाली वे पहली शख्सियत होंगी। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने राष्ट्रपति पद केलिए द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया है।
द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक से लेकर भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार नामित होने तक का सफर उनके लिए बेहद लंबा और मुश्किलभरा रहा है। उन्होंने राजनीति और समाजसेवा में जीवन के लगभग दो दशक बिताए हैं। द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था। द्रौपदी मुर्मू ने गरीबी और अन्य समस्याओं से जुझते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया और ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूपमें अपना करियर शुरू किया था। द्रौपदी मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक केलिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। रायरंगपुर से दो बार विधायक रहीं द्रौपदी मुर्मू ने 2009 में तबभी अपनी विधानसभा से जीती थीं, जब बीजू जनता दल ने चुनाव से कुछ ही पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी संगठन के नेताओं, एनडीए के नेताओं, सरकार में मंत्रियों और सामाजिक शिक्षक क्षेत्र के नेताओं ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्हें बधाई दी है। उनके सामने विपक्ष ने भाजपा के पूर्व नेता और इस समय तृणमूल कांग्रेस के नेता यशवंत सिन्हा को उतारा है। जाहिर हैकि संख्याबल की दृष्टि से द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना निश्चित है। गौरतलब हैकि इनसे पहले देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दलित समाज से आते हैं। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने घोषणा कीकि भाजपा संसदीय बोर्ड ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार केलिए 20 नामों पर चर्चा की थी, जिसके बाद पूर्वी भारत से एक आदिवासी महिला को चुनने का निर्णय लिया गया और द्रौपदी मुर्मू इस पद केलिए एनडीए की प्रत्याशी घोषित की जाती हैं।
द्रौपदी मुर्मू आदिवासी यानी एक वनवासी महिला का सारा जीवन कितना संघर्षमय एवं जुझारू रहा है, उनकी यह कहानी सुनी नहीं जा सकती। पति और दो बेटों की मृत्यु के बाद एक महिला कैसे संकटों से गुजरती है, कैसे अपने को संभालती है, विषम स्थितियों में पढ़ाई करती है, अपनी समाजसेवा की इच्छा का भी निर्वहन करती है, गरीबों के कल्याण केलिए कार्य करती है, समाज के अवगुणों का भी सामना करती है, तबभी चट्टान की तरह उस मुकाम तक पहुंचती है, जहां पहुंचना दुर्लभ से दुर्लभ है। दूरदर्शन पर प्रसारित उनके जीवनवृत में उनका अनकहा दुखदर्द उन लोगों को हौसला देता है, जो संघर्ष से भाग खड़े होते हैं। द्रौपदी मुर्मू ने बतायाकि वह अपने बच्चों की उम्र में लोगों के बीच बैठकर परीक्षाएं पास करते-करते ग्रेजुएट हुईं, सरकारी नौकरी प्राप्त की, दो बेटों और पति के निधन के बाद खुद और बेटियों तथा उनके परिवार को संभाला, छोटी नौकरी से बढ़ते हुए परीक्षा देते देते क्लास टू की पोस्ट तक पहुंची, फिर राजनीति में आना विधायक बनना, उड़ीसा में मंत्री बनना और फिर केंद्र में मंत्री, राज्यपाल बनना यह उनके जीवन का सफर है। द्रौपदी मुर्मू भाजपा गठबंधन सरकार में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाने पर बहुत भावुक हैं।
द्रौपदी मुर्मू कहती हैंकि मुझे हर वह व्यक्ति, चाहे वह मेरी विचारधारा का हो या ना हो जो भी जीवन में संघर्ष करके आगे बढ़ा है, वह उनके लिए एक आदर्श है। वैसे भी भारत के वनवासियों को ईसाई नेटवर्क और मिशनरियों के धर्मांतरण के मकड़जाल से बचाने के लिए कट्टर हिंदू वनवासी का सामने आना जरूरी था, विशेषकर पढ़ी लिखी, संस्कारी, जुझारू और समझ रखने वाली स्त्री-शक्ति का मुख्य पद पर आना आवश्यक था। द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने केबाद विपक्ष के उम्मीदवार जशवंत सिन्हा पर दबाव बढ़ रहा हैकि उन्हें द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने से इनकार कर देना चाहिए, क्योंकि वह स्वयं भी अपने को नारी सशक्तिकरण का पक्षधर कहते आए हैं। विपक्ष भी दबाव में है और उसके कई घटक असमंजस में हैं कि वे किधर जाएं, क्योंकि एनडीए ने देश को जो राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार दिया है, वह इस पद केलिए सर्वश्रेष्ठ है। विपक्ष के ऐसे में द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ मतदान करने से शायद उनकी अंतरआत्मा भी रोकेगी।