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Thursday 14 July 2022 01:30:30 PM
सारनाथ/ नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आषाढ़ पूर्णिमा पर वीडियो संदेश के जरिए सारनाथ में धर्मचक्र प्रवर्तन दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहाकि बौद्ध धर्म भारत की महानतम आध्यात्मिक परंपराओं में से एक है। उन्होंने कहाकि लगभग 2500 वर्ष पूर्व आज हीके दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ की पवित्र भूमि पर अपने प्रथम पांच शिष्यों को पहला प्रवचन दिया था, उसे ही धर्मचक्र प्रवर्तनसूत्र के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहाकि भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से जुड़े कई पवित्र स्थल भारत में हैं, इनमें से चार मुख्य स्थान हैं-पहला बोधगया जहां उन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया, दूसरा-सारनाथ जहां उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया, तीसरा-श्रावस्ती जहां उन्होंने अधिकांश चतुर्मास बिताए और अधिकांश उपदेश दिए एवं चौथा-कुशीनगर जहां उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। राष्ट्रपति ने कहाकि भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण केबाद उनकी शिक्षाओं से जुड़े कई मठ, तीर्थस्थल, विश्वविद्यालय आदि स्थापित हुए, जो ज्ञान के केंद्र हैं, आज ये सभी स्थल बुद्ध सर्किट के अंग हैं, जो देश-विदेश से तीर्थयात्रियों और धार्मिक पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि आषाढ़ पूर्णिमा का दिन इसलिए भी अत्यंत पवित्र है, क्योंकि परंपरानुसार इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध ने अपनी माता महामाया के गर्भ में प्रवेश किया था तथा ठीक दस महीने बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन उनका जन्म हुआ था। रामनाथ कोविंद ने कहाकि भगवान बुद्ध ने अपने प्रथम उपदेश के माध्यम से मध्यम मार्ग को ‘धम्म’ के बीज रूपमें आरोपित किया। उन्होंने चार आर्य सत्यों के माध्यम से सांसारिक दुखों के कारण से लोगों को अवगत कराया तथा उनका निदान भी बताया, जिसे द्वादश निदान कहते हैं, इस प्रकार भगवान बुद्ध ने एक कुशल वैद्य की तरह न केवल मनुष्य के सार्वभौमिक रोगों की पहचान की, अपितु उन्होंने ‘तृष्णा’ को दुख का प्रमुख कारण बताया। भगवान बुद्ध ने यहभी स्पष्ट कियाकि दुखों के अंत का एक मात्र उपाय है तृष्णाओं की समाप्ति, उनके अनुसार अष्टांगिक मार्ग पर चलकर मनुष्य दुख से छुटकारा पा सकता है। राष्ट्रपति ने कहाकि सौभाग्य से बिहार के राज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति के रूपमें मुझे भगवान बुद्ध से जुड़े अनेक समारोहों में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता रहा है, वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन के उद्घाटन का अवसर प्राप्त हुआ था, वर्ष 2019 में राजगीर में 'विश्व शांति स्तूप' की स्वर्ण जयंती समारोह में भी मैं शामिल हुआ था।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि भारत में विद्यमान विश्व के प्राचीनतम गणराज्यों में लोगों को शिक्षा देनेवाले भगवान बुद्ध की स्मृति में निर्मित सांची स्तूप की बनावट राष्ट्रपति भवन की पहचान है, क्योंकि राष्ट्रपति भवन के गुंबद की बनावट सांची स्तूप पर ही आधारित है, आधुनिक युग मेंभी राष्ट्रपति भवन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का सबसे महत्वपूर्ण भवन है। उन्होंने कहाकि जिस पीपल के पेड़ के नीचे समाधिस्थ होकर सिद्धार्थ गौतम ने बुद्धत्व प्राप्त किया था, उसका एक छोटा सा पौधा मंगवाकर नवंबर 2017 में राष्ट्रपति भवन के एक बगीचे में मैंने लगाया था, आज वह पौधा लगभग साढ़े सात फुट ऊंचा हो गया है, उसके बाद सन 2021 में राष्ट्रपति भवन परिसर के एक उद्यान में उसी पीपल का एक और पौधा लगाया, ये पौधे भगवान बुद्ध की विरासत केसाथ जीवंत संबंध के रूपमें राष्ट्रपति भवन में विद्यमान रहेंगे। रामनाथ कोविंद ने कहाकि राष्ट्रपति भवन के सबसे प्रमुख कक्ष अर्थात दरबार हॉल में राष्ट्रपति की कुर्सी के पीछे भगवान बुद्ध की लगभग पंद्रह सौ साल पुरानी एक मूर्ति रखी गई है, यह मूर्ति गुप्तकाल के दौरान प्रचलित भारतीय-यूनानी मूर्तिकला का सुंदर उदाहरण है।
राष्ट्रपति ने कहाकि भगवान बुद्ध के सिर के चारों ओर निर्मित प्रभामंडल, उनके मुखमंडल की शांति, आंखों में करुणा और हाथ की अभय मुद्रा का सुखद प्रभाव सभी देखने वालों पर पड़ता है, इस प्रकार भौतिक शक्ति तथा सांसारिक वैभव का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से निर्मित भवन में अहिंसा, करुणा और शांति का आध्यात्मिक अनुभव होता है। उनहोंने कहाकि हमारे लोकतंत्र पर बौद्ध आदर्शों और प्रतीकों का गहरा प्रभाव है, हमारा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है, जिसमें धर्म चक्र भी उत्कीर्ण है। राष्ट्रपति ने कहाकि लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी के पीछे धर्म चक्र प्रवर्तनाय सूत्र अंकित है। उन्होंने कहाकि हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी बाबासाहब डॉ भीमराव आंबेडकर ने भी यह स्पष्ट किया हैकि हमारे संसदीय लोकतंत्र में प्राचीन बौद्ध संघों की अनेक प्रक्रियाएं अपनाई गई हैं। उन्होंने कहाकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी महाकारुणिक बुद्ध के सार्वभौमिक प्रेम और करुणा के आदर्शों का पालन किया करते थे, भगवान बुद्ध की शिक्षाएं गांधीजी के जीवन और आदर्शों में भी प्रतिबिंबित होती हैं, बौद्ध धर्म का गांधीजी पर ऐसा प्रभाव थाकि उन्होंने 'नम्यो हो रेंगे क्यो' मंत्र सीख लिया था और उनके प्रार्थना सत्र इसी मंत्र के साथ शुरू हुआ करते थे।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि भगवान बुद्ध ने कहा थाकि 'नत्थि शांतिपरं सुखम्' जिसका अर्थ है 'शांति से बड़ा कोई आनंद नहीं है'। भगवान बुद्ध के उपदेशों में आंतरिक शांति पर जोर दिया गया है, शांति और विकास एक दूसरे को सुदृढ़ बनाते हैं। उन्होंने कहाकि आषाढ़ पूर्णिमा के पवित्र दिन इन शिक्षाओं को स्मरण करने का उद्देश्य यही है कि सभी लोग भगवान बुद्ध के उपदेशों के सम्यक अर्थों को अपने चरित्र तथा मन में ढालें तथा विश्व की समस्त बुराइयों और असमानताओं को दूर करके शांति एवं करुणायुक्त एक संवेदनशील विश्व का निर्माण करें। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के सहयोग से आजादी का अमृत महोत्सव के तहत अषाढ़ पूर्णिमा दिवस मनाया। इसी कार्यक्रम दौरान केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री मिनाक्षी लेखी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश पढ़ा, प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में विश्व शांति केलिए भगवान बुद्ध के उपदेशों और आदर्शों पर चलने की अपील की। उन्होंने कहाकि आत्मविकास के साथ-साथ समाज और देश के विकास में महात्मा बुद्ध की ओर से दिए प्रवचन महत्वपूर्ण हैं।
संस्कृति राज्यमंत्री ने कहाकि केंद्र सरकार बुद्धा सर्किट के विकास और बौद्ध पर्यटकों को बेहतरीन सुविधा उपलब्ध कराने केलिए तत्पर है। आषाढ़ पूर्णिमा पर सारनाथ में आयोजित धर्मचक्र प्रवर्तन दिवस समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहाकि भगवान बुद्ध समरसता के समर्थक, सामाजिक समानता पर जोर देने वाले और अंधविश्वास से दूर रहने का संदेश देते हैं, उनका संदेश बुद्धि और विवेक की शरण में जाने का है, भगवान बुद्ध निरंतर बुद्धि को शुद्ध करने का भी संदेश देते हैं, उनके उपदेशों को अपनाकर ही विश्व में फैले अराजकता से मुक्ति पाया जा सकता है। राज्यपाल और संस्कृति राज्यमंत्री ने धमेख स्तूप और मूलगंध कूटी विहार में जाकर पूजा-अर्चना की। इस मौके पर विश्व शांति केलिए 400 से अधिक बौद्ध भिक्षुओं ने धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र का पाठ किया। कार्यक्रम में आईबीसी के महासचिव धम्मपिया, संयुक्त सचिव अमिता प्रसाद साराभाई और डीजे अभिजीत हलदर भी उपस्थित थे।