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Monday 25 July 2022 03:12:32 PM
नई दिल्ली। देश की पहली जनजाति और दूसरी महिला राष्ट्रपति के रूपमें द्रौपदी मुर्मू ने आज संसद के सेंट्रल हॉल में पारंपरिक रूपसे भारत के पंद्रहवें राष्ट्रपति के पद की शपथ ली। देशके मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस अवसर पर भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचित करने केलिए सभी सांसदों और विधानसभा सदस्यों का हार्दिक आभार व्यक्त किया और कहाकि उनका मत देश के करोड़ों नागरिकों के विश्वास की अभिव्यक्ति है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि मैं भारत के समस्त नागरिकों की आशा-आकांक्षा और अधिकारों की प्रतीक इस संसद से देशवासियों का विनम्रता से अभिनंदन करती हूं, वे आत्मीयता, विश्वास और सहयोग के नए दायित्व को निभाने में उनकी बहुत बड़ी ताकत होंगे। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि उन्हें देश ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कालखंड में राष्ट्रपति चुना है, जब हम अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और आजसे कुछ दिन बादही देश अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे करेगा। शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने उद्गार व्यक्त किए।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि ये भी एक संयोग हैकि जब देश अपनी आजादी का 50वां पर्व मना रहा था, तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी और आज आजादी के 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि ऐसे ऐतिहासिक समय में जब भारत अगले 25 वर्ष के विजन को हासिल करने केलिए पूरी ऊर्जा से जुटा हुआ है, मुझे ये जिम्मेदारी मिलना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है। उन्होंने कहाकि मैं देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति भी हूं, जिसका जन्म आज़ाद भारत में हुआ है। उन्होंने कहाकि हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने आजाद हिंदुस्तान के नागरिकों से जो अपेक्षाएं की थीं, उनकी पूर्ति केलिए इस अमृतकाल में हमें तेजगति से काम करना है। राष्ट्रपति ने कहाकि इन 25 वर्ष में अमृतकाल की सिद्धि का रास्ता दो पटरियों पर आगे बढ़ेगा-सबका प्रयास और सबका कर्तव्य। उन्होंने कहाकि 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस भी है, ये दिन भारत की सेनाओं के शौर्य और संयम दोनों का ही प्रतीक है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश की सेनाओं और देशवासियों को कारगिल विजय दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं दीं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि मैंने अपनी जीवनयात्रा पूर्वी भारत में ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू की थी, मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूं, वहां मेरे लिए प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना भी एक सपने जैसा ही था, लेकिन अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जानेवाली अपने गांव की पहली बेटी बनी। उन्होंने कहाकि मैं जनजातीय समाज से हूं और वार्ड पार्षद से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तकका अवसर मुझे मिला है, जोकि लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि ये हमारे लोकतंत्र की ही शक्ति हैकि उसमें एक गरीब घर में पैदा हुई बेटी, दूर-सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी, भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है और राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है, मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है एवं उन्हें पूरा भी कर सकता है। उन्होंने कहाकि मेरे लिए ये बहुत संतोष की बात हैकि जो सदियों से वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वे ग़रीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझमें अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं।
द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि भारत के राष्ट्रपति के पद पर मेरे निर्वाचन में देश के ग़रीब का आशीर्वाद शामिल है, देश की करोड़ों महिलाओं और बेटियों के सपनों और सामर्थ्य की झलक है, मेरे इस निर्वाचन में पुरानी लीक से हटकर नए रास्तों पर चलने वाले भारत के आज के युवाओं का साहस भी शामिल है, ऐसे प्रगतिशील भारत का नेतृत्व करते हुए आज मैं खुद को गौरवांवित महसूस कर रही हूं। राष्ट्रपति ने कहाकि मैं आज समस्त देशवासियों विशेषकर भारत के युवाओं को तथा भारत की महिलाओं को ये विश्वास दिलाती हूंकि इस पद पर कार्य करते हुए मेरे लिए उनके हित सर्वोपरि होंगे। उन्होंने कहाकि मेरे सामने भारत के राष्ट्रपति पद की ऐसी महान विरासत है, जिसने विश्व में भारतीय लोकतन्त्र की प्रतिष्ठा को निरंतर मजबूत किया है। उन्होंने कहाकि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से लेकर रामनाथ कोविंद तक अनेक विभूतियों ने इस पद को सुशोभित किया है, इस पद के साथ साथ देश ने इस महान परंपरा के प्रतिनिधित्व का दायित्व भी मुझे सौंपा है और संविधान के आलोक में मैं पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करूंगी।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहाकि भारत के लोकतांत्रिक-सांस्कृतिक आदर्श और सभी देशवासी हमेशा मेरी ऊर्जा के स्रोत रहेंगे। उन्होंने कहाकि हमारे स्वाधीनता संग्राम ने एक राष्ट्र के तौर पर भारत की नई यात्रा की रूपरेखा तैयार की थी, हमारा स्वाधीनता संग्राम उन संघर्षों और बलिदानों की अविरल धारा था, जिसने आज़ाद भारत केलिए कितने ही आदर्शों और संभावनाओं को सींचा था। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि बापू ने हमें स्वराज, स्वदेशी, स्वच्छता और सत्याग्रह से भारत के सांस्कृतिक आदर्शों की स्थापना का मार्ग दिखाया था, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर, शहीद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनगिनत स्वाधीनता सेनानियों ने राष्ट्र के स्वाभिमान को सर्वोपरि रखने की शिक्षा दी। उन्होंने कहाकि रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी गाइदिन्ल्यू और रानी चेन्नम्मा जैसी अनेक वीरांगनाओं ने राष्ट्ररक्षा और राष्ट्रनिर्माण में नारीशक्ति की भूमिका को नई ऊंचाई दी, संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी योगदान को और सशक्त किया, सामाजिक उत्थान एवं देशप्रेम केलिए ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली।
द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि मुझे खुशी है कि देशभर में आजादी की लड़ाई में जनजातीय समुदाय के योगदान को समर्पित अनेक म्यूजियम बनवाए जा रहे हैं। उन्होंने कहाकि एक संसदीय लोकतंत्र के रूपमें 75 वर्ष में भारत ने प्रगति के संकल्प को सहभागिता एवं सर्वसम्मति से आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहाकि विविधताओं से भरे अपने देश में हम अनेक भाषा, धर्म, संप्रदाय, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाजों को अपनाते हुए ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के निर्माण में सक्रिय हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि यह नए संकल्पों का कालखंड है, जिसमें आज भारत हर क्षेत्र में विकास का नया अध्याय जोड़ रहा है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि कोरोना महामारी के वैश्विक संकट का सामना करने में भारत ने जिस तरह का सामर्थ्य दिखाया है, उसने पूरे विश्व में भारत की साख बढ़ाई है, हम हिंदुस्तानियों ने अपने प्रयासों से न सिर्फ इस वैश्विक चुनौती का सामना किया, बल्कि दुनिया के सामने नए मापदंड भी स्थापित किए हैं। उन्होंने कहाकि कुछ ही दिन पहले भारत ने कोरोना वैक्सीन की 200 करोड़ डोज़ लगाने का कीर्तिमान बनाया है, इस पूरी लड़ाई में भारत के लोगों ने जिस संयम, साहस और सहयोग का परिचय दिया, वो एक समाज के रूपमें हमारी बढ़ती हुई शक्ति और संवेदनशीलता का प्रतीक है।
राष्ट्रपति ने कहाकि भारत ने मुश्किल हालात में न केवल खुद को संभाला बल्कि दुनिया की भी मदद की, जिससे दुनिया भारत को नए विश्वास से देख रही है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि दुनिया की आर्थिक स्थिरता, सप्लाई चेन की सुगमता और वैश्विक शांति केलिए दुनिया को भारत से बहुत उम्मीदें हैं। उन्होंने कहाकि भारत आगामी महीनों में G-20 ग्रुप की मेजबानी भी करने जा रहा है, इसमें दुनिया के बीस बड़े देश भारत की अध्यक्षता में वैश्विक विषयों पर मंथन करेंगे। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि मुझे विश्वास हैकि इस मंथन से जो निष्कर्ष और नीतियां निर्धारित होंगी, उनसे आने वाले दशकों की दिशा तय होगी। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि दशकों पहले मुझे रायरंगपुर में ऑरोबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूपमें कार्य करने का अवसर मिला था, कुछ ही दिन बाद गुरूदेव अरबिंदो की 150वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी, शिक्षा के बारेमें उनके विचारों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि जनप्रतिनिधि और फिर राज्यपाल के रूपमें भी मेरा शिक्षण संस्थानों के साथ सक्रिय जुड़ाव रहा है। उन्होंने कहाकि मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है, अटलजी कहा करते थेकि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते, बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं, आज हम इसे सच होते देख रहे हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि लोकल केलिए वोकल से लेकर डिजिटल इंडिया तक हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा आज का भारत विश्व केसाथ कदम से कदम मिलाकर ‘औद्योगिक क्रांति फोर पॉइंट ओ’ केलिए पूरी तरह तैयार है। उन्होंने कहाकि रिकॉर्ड संख्या में बन रहे स्टार्ट-अप्स, नए-नए इनोवेशन, दूर-सुदूर क्षेत्रों में डिजिटल टेक्नोलॉजी की स्वीकार्यता में भारत के युवाओं की बड़ी भूमिका है, बीते वर्षों में भारत ने जिस तरह महिला सशक्तिकरण केलिए निर्णय लिए हैं, नीतियां बनाई हैं, उससे भी देश में एक नई शक्ति का संचार हुआ है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि ने कहाकि मैं चाहती हूंकि हमारी सभी बहनें और बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्रमें अपना योगदान बढ़ाती रहें। उन्होंने कहाकि मैं अपने देश के युवाओं से कहना चाहती हूंकि वे न केवल अपने भविष्य का निर्माण कर रहे हैं, बल्कि भविष्य के भारत की नींव भी रख रहे हैं, देश के राष्ट्रपति के तौरपर मेरा हमेशा उनको पूरा सहयोग रहेगा। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि विकास और प्रगतिशीलता का अर्थ निरंतर आगे बढ़ना होता है, साथही अपने अतीत का ज्ञान भी उतना ही आवश्यक है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि आज जब विश्व टिकाऊ ग्रह की बात कर रहा है तो उसमें भारत की प्राचीन परंपराओं, हमारे अतीत की स्थायी जीवनशैली की भूमिका और बढ़ जाती है।
राष्ट्रपति ने कहाकि मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है, मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है, हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं, यही संवेदनशीलता आज वैश्विक अनिवार्यता बन गई है। उन्होंने कहाकि मुझे इस बात की प्रसन्नता हैकि भारत पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में विश्व का मार्गदर्शन कर रहा है, मैंने अपने अबतक के जीवन में जनसेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि श्रीजगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई की कविता की एक पंक्ति है-मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ, अर्थात अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है, जगत कल्याण की इसी भावना के साथ मैं आप सबके विश्वास पर खरा उतरने केलिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने केलिए सदैव तत्पर रहूंगी। उन्होंने कहाकि आइए हम सभी एकजुट होकर समर्पित भाव से कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ें तथा वैभवशाली एवं आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करें। शपथ ग्रहण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, न्यायधीश, दोनों सदनों के सदस्य और अतिथिगण मौजूद थे।