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Monday 8 August 2022 04:08:57 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को आज राज्यसभा में विदाई दी गई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन को संबोधित करते हुए कहा हैकि वेंकैयाजी ने विशिष्ट तरीके से सदन चलाने केलिए ऐसे मानदंड स्थापित किए हैं, जो इस पदपर आसीन होने वालों को प्रेरित करते रहेंगे। उन्होंने आशा व्यक्त कीकि वेंकैयाजी ने जो विरासत स्थापित की है, राज्यसभा उसका अनुसरण करेगी, देश केप्रति अपनी जवाबदेही के अनुसार कार्य करेगी। प्रधानमंत्री ने सदन केलिए यह बहुत ही भावुक पल बताया, जहां कितने ही ऐतिहासिक पल उनकी गरिमामयी उपस्थिति से जुड़े हुए हैं, वे अनेक बार वे कहते रहे हैंकि मैंने राजनीति से सन्यास ले लिया है, लेकिन सार्वजनिक जीवन से नहीं थका हूं। प्रधानमंत्री ने कहाकि हमारी तमाम सहमतियों असहमतियों के बावजूद आज वेंकैया नायडू को विदाई देने केलिए सदन के सभी सदस्य एकसाथ उपस्थित हैं, यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा के सभापति और देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के कार्यकाल केलिए उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने कहाकि इस सदन को नेतृत्व देने की उनकी जिम्मेदारी भले ही पूरी हो रही हो, लेकिन भविष्य में उनके अनुभवों का लाभ देश और हम जैसे अनेक सार्वजनिक जीवन के कार्यकर्ताओं को भी मिलता रहेगा। प्रधानमंत्री ने कहाकि आजादी के अमृत महोत्सव में आज जब देश अपने अगले 25 वर्ष की नई यात्रा शुरू कर रहा है, तब देश का नेतृत्व भी एक तरह से एक नए युग के हाथों में है, हमसब जानते हैंकि इसबार हम एक ऐसा 15 अगस्त मना रहे हैं, जब देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, स्पीकर, प्रधानमंत्री सबके सब वो लोग हैं, जो आजाद भारत में पैदा हुए हैं और सबके सब बहुतही साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं, मैं समझता हूंकि इसका अपना एक महत्व है। प्रधानमंत्री ने वेंकैया नायडू से कहाकि वे देशके एक ऐसे उपराष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अपनी सभी भूमिकाओं में हमेशा युवाओं केलिए काम किया है, सदन में भी हमेशा युवा सांसदों को आगे बढ़ाया, उन्हें प्रोत्साहन दिया है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि वेंकैया नायडू का युवाओं को हमेशा मार्गदर्शन मिला है और युवा भी उनसे मिलने केलिए हमेशा उत्सुक रहे हैं, सदन के बाहर उनके भाषण करीब करीब 25 प्रतिशत युवाओं केबीच में रहे हैं, ये भी अपने आपमें एक बहुत बड़ी बात है। उन्होंने कहाकि पार्टी कार्यकर्ता के रूपमें उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता रही है, एक विधायक के रूपमें उनका कामकाज, सांसद के रूपमें सदन में उनकी सक्रियता, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूपमें उनका सांघिक कौशल्य और लीडरशिप, कैबिनेट मंत्री के रूपमें उनकी मेहनत, नवाचार का उनका प्रयास और उससे प्राप्त सफलताएं देश केलिए बहुत उपकारक रही हैं। उन्होंने कहाकि मैं इस सदन के जरिये प्रत्येक सांसद और देशके हर युवा से कहना चाहूंगा किवो समाज, देश और लोकतंत्र के बारेमें वेंकैया नायडू से बहुत कुछ सीख सकते हैं, लिसनिंग, लर्निंग, लीडिंग, कनेक्टिंग, कम्युनिकेटिंग, चेजिंग और रिफ्लेक्टिंग, रिकनेक्टिंग जैसी किताबें उनके बारेमें बहुत कुछ बताती हैं, इनके ये अनुभव युवाओं के गाइड और लोकतंत्र को मजबूत करेंगे। प्रधानमंत्री ने कहाकि उनकी किताबों के टाइटल में उनकी शब्द प्रतिभा झलकती है, जिसके लिए वे जाने जाते हैं।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि उनके वन लाइनर्स विक लाइनर्स होते हैं और विन लाइनर्स भी होते हैं, यानी उसके बाद कुछ और कहने की जरूरत ही नहीं रह जाती। प्रधानमंत्री ने कहाकि उनका प्रत्येक शब्द सुना जाता है, पसंद किया जाता है और कभीभी काउंटर नहीं किया जाता है। उन्होंने कहाकि कैसे कोई अपनी भाषा की ताकत के रूपमें और सहजता से इस सामर्थ्य केलिए जाना जाए और कौशल से स्थितियों की दिशा मोड़ने का सामर्थ्य रखे, सचमुच में उनके इस सामर्थ्य को मैं बधाई देता हूं। प्रधानमंत्री ने कहाकि किसी भी संवाद की सफलता का पैमाना यही हैकि उसका गहरा इंपैक्ट हो, लोग उसे याद रखें और जोभी कहें उसके बारे में लोग सोचने केलिए मजबूर हों, अभिव्यक्ति की इस कला में वेंकैयाजी की दक्षता इस बात से हम सदन में भी और सदन के बाहर देश के सभी लोग भलीभांति परिचित हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि उनकी अभिव्यक्ति का अंदाज जितना बेबाक है, उतना ही बेजोड़ भी है, उनकी बातों में गहराई भी होती है, गंभीरता भी होती है, संवाद का उनका तरीका ऐसे ही एक किसी बात के मर्म को छू जाता है और सुनने में मधुर भी लगता है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्होंने दक्षिण में छात्र राजनीति करते हुए अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था, तब लोग कहते थेकि जिस विचारधारा से वे जुड़े थे, उसका और उस पार्टी का निकट भविष्य में तो दक्षिण में कोई सामर्थ्य नज़र नहीं आता है, लेकिन वे एक सामान्य विद्यार्थी कार्यकर्ता से यात्रा शुरू करके और दक्षिण भारत से आते हुए उस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के शीर्ष पद तक पहुंचे, ये उनकी एक अवीरत विचारनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा और कर्म केप्रति समर्पण भाव का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने कहाकि मैंने हमेश सुना हैकि वे मातृभाषा को लेकरके बहुतही मार्मिक रहे हैं, बड़े आग्रही रहे हैं, लेकिन उस बात को कहने का उनका अंदाज भी बड़ा खूबसूरत है, जब वे कहते हैंकि मातृभाषा आंखों की रौशनी की तरह होती है और दूसरी भाषा चश्मे की तरह होती है, ऐसी भावना हृदय की गहराई से ही बाहर आती है। प्रधानमंत्री ने कहाकि इस सदन को दूसरे सदन से आए विधेयकों पर निश्चित रूपसे सहमति या असहमति का अधिकार है, यह सदन उन्हें पास कर सकता है, रिजेक्ट कर सकता है या संशोधन कर सकता है पर उन्हें रोकने, बाधित करने की परिकल्पना हमारे लोकतंत्र में नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि वेंकैयाजी की मौजूदगी में सदन की कार्रवाई के दौरान हर भारतीय भाषा को विशिष्ट अहमियत दी गई है, सदन में हमारी सभी 22 अनुसूची भाषा में कोईभी माननीय सदस्य बोल सकता है, उसका इंतजाम उन्होंने किया, उनकी ये प्रतिभा, निष्ठा आगे भी सदन केलिए एक गाइड के रूपमें हमेशा काम करेगी। प्रधानमंत्री ने कहाकि कैसे संसदीय और शिष्ट तरीके से भाषा की मर्यादा में कोईभी अपनी बात प्रभावी ढंग से कह सकता है, इसके लिए वेंकैया नायडू प्रेरणापुंज बने रहेंगे। प्रधानमंत्री ने कहाकि उनकी नेतृत्व क्षमता, अनुशासन ने सदन की प्रतिबद्धता और प्रोडक्टिविटी को नई ऊंचाई दी है, उनके कार्यकाल के वर्षों में राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी 70 पर्सेंट बढ़ी है, सदन में सदस्यों की उपस्थिति बढ़ी है, इस दौरान करीब-करीब 177 बिल पास हुए या उनपर चर्चा हुई, जो अपने आपमें कीर्तिमान हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि उनके मार्गदर्शन में ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जो आधुनिक भारत की संकल्पना को साकार कर रहे हैं, उन्होंने कितने ही ऐसे निर्णय लिए हैं, जो अपर हाउस की अपर जर्नी केलिए याद किए जाएंगे।
प्रधानमंत्री ने कहाकि सचिवालय के काम में और अधिक कार्यक्षमता लाने केलिए उन्होंने एक समिति गठित की है, इसी तरह राज्यसभा सचिवालय को सुव्यवस्थित करना, सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना, पेपरलेस काम केलिए ई-आफिस सिस्टम लागू करना, उनके ऐसे कितने ही काम हैं, जिनके जरिए उच्च सदन को एक नई ऊंचाई मिली है। प्रधानमंत्री ने कहाकि वेंकैया नायडू के मार्गदर्शन में राज्यसभा में इन मानकों को पूरी गुणवत्ता से पूरा किया गया है, वे सदस्यों को निर्देश देते थे, उन्हें अपने अनुभवों का लाभ भी देते थे और अनुशासन को ध्यान में रखते हुए प्यार से डांटते भी थे। प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्होंने हमेशा इस बात पर बल दिया हैकि संसद में व्यवधान एक सीमा केबाद सदन की अवमानना के बराबर होता है, मैं उनके इन मानकों में लोकतंत्र की परिपक्वता को देखता हूं। प्रधानमंत्री ने कहाकि पहले समझा जाता थाकि अगर सदन में चर्चा के दौरान शोरगुल होने लगे तो कार्यवाही को स्थगित कर दिया जाता है, लेकिन वेंकैयाजी ने संवाद, संपर्क और समन्वय के जरिए न सिर्फ सदन को संचालित किया, बल्कि प्रोडक्टिव भी बनाया, सदन की कार्यवाही के दौरान जब सदस्यों के बीच कभी टकराव की स्थिति पैदा होती थी तो उनसे बार-बार सुनने को मिलता था-सरकार को प्रस्ताव करने दें, विपक्ष को विरोध करने दें और सदन को निपटाने दें।