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नीतीश कुमार का फिर राजनीतिक भ्रष्टाचार!

भाजपा की बैसाखी पर नेता मुख्यमंत्री बने और उसीसे दग़ाबाज़ी

सजायाफ्ता लालू और कुनबे की बिहार में फिर से अराजकता?

Tuesday 9 August 2022 05:44:47 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

nitish-tejashwi

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए से निकलकर महागठबंधन में चले गए हैं। कहने को उनपर ईमानदारी का टैग लगा है, लेकिन राजनीतिक भ्रष्टाचार में किसी से पीछे नहीं माने जाते हैं। नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी की बैसाखी पर ही नेता केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री बने हैं और उसी से दग़ाबाजी भी करते रहे हैं। नीतीश कुमार ने आज फिर देश को अपना राजनीतिक भ्रष्टाचार दग़ाबाजी का रूप दिखाया और बिहार के लालू यादव सिंडिकेट से फिर जा मिले, जिसके बारेमें उन्होंने विधानसभा में कहा थाकि रहें या मिट्टी में मिल जाएं आप लोगों के साथ भविष्य में अब कोई समझौता नहीं करेंगे। नीतीश कुमार के पाखंड की बानगी देखिए कि आज मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने केलिए वे पैदल राजभवन पहुंचे, थोड़ी ही देर बाद महागठबंधन के नेता चुन लिए गए और जब दोबारा राजभवन गए तो उनके साथ भ्रष्टाचार में राजद के सजायाफ्ता नेता लालू यादव के नए अवतार तेजस्वी यादव थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पल्टूराम का टैग भी लालू यादव परिवार ने ही लगाया था और अब फिर पूरा बिहार कह रहा हैकि यह नीतीश कुमार का राजनीतिक भ्रष्टाचार है।
नीतीश कुमार पर अभीतक सुशासन बाबू का टैग था, यह अलग बात हैकि उनका ऐसा कोई उल्लेखनीय कारनामा नहीं है, जिसपर उन्हें सुशासन बाबू मान लिया जाए, हां वे बिहार में लालू यादव और उनके परिवार के शर्मनाक भ्रष्टाचार, कांग्रेस एवं गठबंधन राजनीति की विफलताओं के कारण बिहार की अस्थिर राजनीति की मजबूरी जरूर माने जाते हैं। नीतीश कुमार भाजपा की ही राजनीतिक देन हैं, जिन्हें भाजपा ने पिछड़ों के नेता के रूपमें तैयार किया था, लेकिन वे अपने को इतना बड़ा नेता समझ बैठेकि एक समय बाद उन्होंने भाजपा को ही आंखें दिखानी शुरू कर दीं और धर्मनिर्पेक्षता के ठेकेदार भी बन गए। भाजपा ने नीतीश कुमार को केंद्रीय मंत्री और बिहार में मुख्यमंत्री क्या बनाया, वे अपने को देश के प्रधानमंत्री का विकल्प भी मान बैठे। बिहार में इसबार भाजपा गठबंधन में शामिल होकर विधानसभा चुनाव लड़े, भाजपा से कम सीटें पाए फिर भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया और फिर लालू यादव परिवार के साथ खड़े होकर भाजपा से राजनीतिक दगाबाजी की। लालू यादव कुनबे केसाथ सरकार बनाने पर वे अब और भी गंभीर सवालों से घिर गए हैं। नीतीश कुमार को बिहार को यह बताना बहुत मुश्किल होगाकि क्यों तो उन्होंने पहले लालू यादव परिवार के साथ सत्ता की पारी छोड़ी थी और अब फिर क्यों उसी परिवार के साथ चल दिए जिसे देश की राजनीति में महाभ्रष्ट अराजक और जातिवादी जंगलराज का ज़हर कहा जाता है।
नीतीश कुमार से आज यहभी सवाल शुरू हो गया हैकि उन्हें राजनीति में भाजपा के अलावा और किसने आगे बढ़ाया? वह रातोंरात धर्मनिर्पेक्ष कैसे हो गए हैं और भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कैसे टिकेंगे? उनसे ये भी सवाल हो रहा हैकि उनकी भ्रष्टाचार और ईमानदारी की परिभाषा क्या है, किसीभी तरह कुर्सी पर बने रहना और दग़ाबाजी क्या होती है? कहने वाले तो आज यहांतक कहरहे हैंकि नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर अंतिम दौर में है, क्योंकि उनकी सत्ता की महत्वाकांक्षा जगजाहिर है, देशमें इन्हें कौन महागठबंधन का नेता स्वीकार करेगा? नीतीश कुमार आज अपने मुंहपर मास्क लगाकर राज्यपाल से मिलने गए थे और उनपर कटाक्ष भी हो रहे थेकि वे मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहे हैं। नीतीश कुमार राजनीति में शुरू से ही भरोसेमंद नेता नहीं माने जाते हैं, तथापि बीजेपी ने बिहार के विकास और अराजकता से बाहर निकालने केलिए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया। भारतीय जनता पार्टी ने जनतादल यू के साथ चुनाव लड़कर और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने की कोशिश की थी, लेकिन नीतीश कुमार ने ही स्थिरता को झटका दे दिया।
लालू यादव परिवार के भ्रष्टाचार के सामने बिहार में राजनीतिक स्थिरता विकास और कानून के राज का एजेंडा कभी नहीं रहा और आज जो परिदृश्य है, वह बहुत निराशाजनक माना जा रहा है। नीतीश कुमार केलिए यह अत्यंत शर्मनाक स्थिति हैकि वे राजनीति में अपने को भरोसेमंद राजनेता सिद्ध नहीं कर पाए। नीतीश कुमार बीजेपी केलिए एक लाइब्लिटी बन गए थे। बीजेपी उनको समर्थन देकर नुकसान में जा रही थी। बीजेपी अब बिहार में भी और राज्यों की तरह मुख्यमंत्री का चेहरा लाएगी, जिसके लिए उसके पास पर्याप्त समय है। नीतीश कुमार केवल कुर्मियों और कोरी जाति के नेता माने जाते हैं, वह कभीभी संपूर्ण पिछड़े वर्ग के नेता नहीं हो पाए। राष्ट्रीय क्षितिज पर जहांतक पिछड़े वर्ग के नेतृत्वकर्ता का सवाल आता है तो यह निर्विवाद हैकि नरेंद्र मोदी ही देश के पिछड़े वर्ग के सबसे शक्तिशाली और सर्वमान्य नेता हैं, जिनके सामने किसी और के कोई मायने नहीं हैं। नीतीश कुमार को बीजेपी ने बहुत ढोया है। बिहार में वह भाजपा के साथ रहकर ही सरकार और सुशासन का चेहरा बन सके हैं, बिहार में विकास की जो राह निकली है, वह भी भाजपा की ही देन मानी जाती है, जिसमें नीतीश कुमार डबल इंजन की सरकार का लाभ उठा रहे थे।
माना जा रहा हैकि नीतीश कुमार को अब वह अवसर कदापि नहीं मिल पाएगा और उनकी सारी ऊर्जा बिहार की राजनीति की उठापटक में ही जाएगी, जिसमें बिहार का विकास शून्य हो जाएगा। बिहार में नए गठबंधन का बीजेपी का सामना करना अब आसान नहीं होगा। विश्लेषक आज भलेही नीतीश कुमार और राजद के नए रिश्तों को किसीभी रूपमें देख रहे हों, लेकिन वह रूप कम से कम इनके लिए आशावादी नहीं है। देशका राजनेता कहलाने केलिए यह भी जरूरी हैकि कम से कम उस राजनेता पर ऐसा टैग न होकि जहां सत्ता है वहां नीतीश कुमार हैं। कैसे-कैसे टैग दिए जा रहे हैं-सुशासन बाबू से लेकर पल्टू चाचा तक आ गिरे हैं नीतीश कुमार। नीतीश कुमार के इस फैसले से बिहार का विकास अवरुद्ध होगा और राज्य में अराजकता फैलेगी। नीतीश कुमार को राजनीतिक रूपसे बड़ा नुकसान होगा। भाजपा के नेता अश्विनी चौबे ने बहुत बड़ी बात कही हैकि नीतीश कुमार को भाजपा ने केंद्रीय मंत्री से लेकर बिहार का मुख्यमंत्री तक बनाया है और जो बिहार के विकास को तोड़ेगा तो उसकी भी हमेशा केलिए कमर टूट जाएगी, जबकि भाजपा ने नीतीश कुमार के साथ चलकर बहुत कुर्बानियां दी हैं। बिहार की जनता को नीतीश कुमार यह दिन दिखाएंगे, इसकी आशा नहीं थी, क्योंकि लालू यादव परिवार के मंसूबे बहुत खतरनाक रहे हैं और वह दिन दूर नहीं लगता है कि बिहार अपराधियों अराजकता और भ्रष्टाचार का फिरसे गढ़ बन जाएगा।

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