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Saturday 17 September 2022 01:39:20 PM
ग्वालियर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने जन्मदिन पर देशवासियों को नामीबिया से लाए गए आठ चीतों का उपहार दिया। प्रधानमंत्री ने तीन चीतों को मध्यप्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा और कहाकि देशमें वन्यजीवों के संरक्षण के प्रयासों को एक नई ताकत मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि इसके पीछे हमारी वर्षों की मेहनत है, एक ऐसा कार्य, राजनैतिक दृष्टि से जिसे कोई महत्व नहीं देता, उसके पीछे भी हमने भरपूर ऊर्जा लगाई, इसके लिए एक विस्तृत चीता एक्शन प्लान तैयार किया गया, हमारे वैज्ञानिकों ने लंबी रिसर्च की, साउथ अफ्रीकन और नामीबियाई एक्स्पर्ट्स केसाथ मिलकर काम किया, हमारी टीम्स वहां गईं, वहां के एक्स्पर्ट्स भी भारत आए, देशमें चीतों केलिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र केलिए वैज्ञानिक सर्वे किएगए और तब कुनो नेशनल पार्क को इसके लिए चुना गया और आज हमारी वो मेहनत परिणाम के रूपमें हमारे सामने है। प्रधानमंत्री ने कहाकि मानवता के सामने ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं, जब समय का चक्र हमें अतीत को सुधार करके भविष्य के निर्माण का मौका देता है, आज सौभाग्य से हमारे सामने एक ऐसाही क्षण है, दशकों पहले जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिरसे जोड़ने का मौका मिला है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारत की धरती पर आज चीता लौट आए हैं और इनसे भारतकी प्रकृतिप्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है। उन्होंने इसे ऐतिहासिक अवसर बताया और मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का धन्यवाद किया, जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर लौटे हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि ये चीते न केवल प्रकृति केप्रति हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराएंगे, बल्कि हमारे मानवीय मूल्यों और परम्पराओं से भी अवगत कराएंगे। प्रधानमंत्री ने कहाकि जब हम अपनी जड़ों से दूर होते हैं तो बहुत कुछ खो बैठते हैं, इसलिए ही आजादी के इस अमृतकाल में हमने 'अपनी विरासत पर गर्व' और 'गुलामी की मानसिकता से मुक्ति' जैसे पंच प्राणों के महत्व को दोहराया है। उन्होंने कहाकि पिछली सदियों में हमने वो समय भी देखा है, जब प्रकृति के दोहन को शक्तिप्रदर्शन और आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया था, वर्ष 1947 में जब देशमें केवल आखिरी तीन चीते बचे थे तो उनका भी जंगलों में निष्ठुरता और गैर-ज़िम्मेदारी से शिकार कर लिया गया और ये दुर्भाग्य रहाकि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास केलिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। उन्होंने कहाकि अब देश नई ऊर्जा केसाथ चीतों के पुनर्वास केलिए जुट गया है।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि ये बात सही हैकि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है, विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं। उन्होंने कहाकि कुनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे तो यहां का चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र फिर से बहाल होगा, जैव विविधता और बढ़ेगी, आनेवाले दिनों में यहां पारिस्थितिकी पर्यटन भी बढ़ेगा, यहां विकास की नई संभावनाएं जन्म लेंगी, रोज़गार अवसर बढ़ेंगे। प्रधानमंत्री ने कहाकि कुनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों को देखने केलिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा, आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्रसे अनजान हैं, कुनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों कोभी कुछ महीने का समय देना होगा, हमें अपने प्रयासों को विफल नहीं होने देना है। उन्होंने कहाकि दुनिया आज जबप्रकृति और पर्यावरण की ओर देखती है तो सतत विकास की बात करती है, लेकिन प्रकृति और पर्यावरण, पशु और पक्षी, भारत केलिए ये केवल स्थिरता और सुरक्षा के विषय नहीं हैं, ये हमारी संवेदनशीलता और आध्यात्मिकता का भी आधार हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि हमारे कितने बच्चों को यह पतातक नहीं हैकि चीता उनके देशसे पिछली शताब्दी में ही लुप्त हो चुका है, आज अफ्रीका के कुछ देशों व ईरान में चीता पाए जाते हैं, लेकिन भारत का नाम उस लिस्ट से बहुत पहले हटा दिया गया था। उन्होंने कहाकि आनेवाले वर्षों में बच्चों को इस विडम्बना से नहीं गुजरना पड़ेगा, वो चीता को अपने ही देशमें कुनो नेशनल पार्क में दौड़ता देख पाएंगे, चीता के जरिए आज हमारे जंगल और जीवन का एक बड़ा शून्य भर रहा है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि आज 21वीं सदी का भारत पूरी दुनिया को संदेश दे रहा हैकि अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी कोई विरोधाभाषी क्षेत्र नहीं है, पर्यावरण की रक्षा केसाथ ही देशकी प्रगति भी हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है। उन्होंने कहाकि एक ओर हम विश्व की तेजीसे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं तो साथही देशके वनक्षेत्रों का विस्तार भी तेजी से हो रहा है। उन्होंने कहाकि 2014 में हमारी सरकार बनने केबाद से देशमें करीब-करीब ढाई सौ नए संरक्षित क्षेत्र जोड़े गए हैं, हमारे यहां एशियाई शेरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है, गुजरात देशमें एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है, इसके पीछे दशकों की मेहनत, रिसर्च बेस्ड नीतियां और जनभागीदारी की बड़ी भूमिका है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि हमने गुजरात में एक संकल्प लिया थाकि हम जंगली जीवों केलिए सम्मान बढ़ाएंगे और संघर्ष घटाएंगे, आज उस सोच का प्रभाव परिणाम के रूपमें हमारे सामने है, देशमें भी शेरों की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था हमने उसे समय से पहले हासिल कर लिया है, असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है, हाथियों की संख्या भी पिछले वर्ष में बढ़कर 30 हजार से ज्यादा हो गई है। प्रधानमंत्री ने कहाकि देशमें प्रकृति और पर्यावरण के दृष्टिकोण से जो एक और बड़ा काम हुआ है, वो है वेटलैंड का विस्तार! भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों का जीवन और उनकी जरूरतें आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी पर निर्भर करती हैं, देशमें 75 वेटलैंड्स को रामसर साइट्स के रूपमें घोषित किया गया है, जिनमें 26 साइट्स 4 वर्ष में ही जोड़ी गई हैं। उन्होंने कहाकि देशके इन प्रयासों का प्रभाव आनेवाली सदियों तक दिखेगा, और प्रगति के नए पथ प्रशस्त करेगा। गौरतलब हैकि इनमें पांच मादा और तीन नर चीता हैं और इन्हें कुछ दिनों केलिए क्वारंटीन में रखा जाएगा। नामीबिया से लाए गए चीतों को प्रोजेक्ट चीता केतहत भारत में रहने केलिए लाया गया है, जो बड़े जंगली मांसाहारी जानवर के अंतर-महाद्वीपीय स्थानांतरण से जुड़ी दुनिया की पहली परियोजना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि हमें वैश्विक समस्याओं, समाधानों, यहां तककि अपने जीवन को भी समग्र तरीके में देखने की जरूरत है, इसीलिए आज भारत ने विश्व केलिए जीवनशैली, पर्यावरण केलिए जीवनशैली जैसा जीवन-मंत्र दिया है। उन्होंने कहाकि आज इंटरनेशनल सोलर अलायंस जैसे प्रयासों से भारत दुनिया को एक मंच दे रहा है, एक दृष्टि दे रहा है, इन प्रयासों की सफलता दुनिया की दिशा और भविष्य तय करेगी, इसलिए, आज समय हैकि हम ग्लोबल चुनौतियों को दुनिया की नहीं अपनी व्यक्तिगत चुनौती भी मानें, हमारे जीवन में एक छोटा सा बदलाव पूरी पृथ्वी के भविष्य केलिए एक आधार बन सकता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्हें विश्वास हैकि भारत के प्रयास और परम्पराएं इस दिशा में पूरी मानवता का पथप्रदर्शन करेंगी, बेहतर विश्व के सपने को ताकत देंगी। उन्होंने खुशी व्यक्त कीकि आजादी के अमृतकाल में कर्तव्य और विश्वास का ये अमृत हमारी विरासत, हमारी धरोहरों और अब चीतों कोभी भारत की धरती पर पुनर्जीवित कर रहा है। उन्होंने कहाकि चीतों के भारत आने से खुले जंगल और चारागाह इकोसिस्टम की फिरसे बहाली करने में मदद मिलेगी तथा स्थानीय समुदाय केलिए आजीविका के अवसरों में भी वृद्धि होगी।