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बांधवगढ़ वन में दुर्लभ पुरातात्विक अवशेष

बांधवगढ़ के दुर्ग का रामायण काल से ऐतिहासिक संबंध

नरेंद्र मोदी सरकार का ऐतिहासिक खोजों पर भी फोकस

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 29 September 2022 12:44:00 PM

rare archaeological remains in bandhavgarh forest

भोपाल। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने एक प्रमुख खोज में मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ वन अभ्यारण्य में अद्भुत पुरातात्विक अवशेषों का पता लगाया है। एएसआई की खोज के दौरान कलचुरीकाल के 26 प्राचीन मंदिर एवं अवशेष जो 9वीं शताब्दी सीई से 11वीं शताब्दी सीई तकके हैं और 26 गुफाएं जो दूसरी शताब्दी सीई से 5वीं शताब्दी सीई ज्यादातर बौद्ध धर्म से संबंधित हैं, दूसरी शताब्दी सीई से 5वीं शताब्दी सीई तकके 2 मठ, 2 स्तूप, 24 ब्राह्मी शिलालेख 46 मूर्तियां, 20 बिखरे हुए अवशेष और 19 जल संरचनाएं हैं, जो दूसरी से 15वीं शताब्दी केबीच की हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार 46 मूर्तियों मेसे एक वराह मूर्ति भी है, जो सबसे बड़ी मूर्तियों मेसे एक है। इनके अलावा और जो अवशेषों या चीजों का पता चला है, वे राजश्री भीमसेन, महाराजा पोथासिरी और भट्टदेव के शासनकाल से जुड़ी हैं। शिलालेखों में कौशांबी, मथुरा, पावता (पर्वत), वेजभरदा और सपतनैरिका जैसी जगहों का जिक्र है। एएसआई की टीम ने बांधवगढ़ बाघ अभ्यारण्य क्षेत्र में करीब 170 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में महीनों तक खोज अभियान चलाया, जिसमें इन प्राचीन चीजों का पता चला। गौरतलब हैकि यहां 1938 के बाद पहलीबार खोज का काम शुरू किया गया था। एएसआई के जबलपुर सर्कल के तहत यह खोज की गई।
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान उन प्रसिद्ध बाघों केलिए लोकप्रिय है, जो पर्यटकों को अपने अद्वितीय दर्शन से तृप्त कर देते हैं। बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान केवल एक राष्ट्रीय उद्यान ही नहीं है, यह अपने में दुर्लभ इतिहास से भी समृद्धशाली है और माना जाता है कि यहां पर पुरातत्व की प्राचीन और अमूल्य धरोहरें भी हैं, जो तत्कालीन राजाओं के समयकाल की जीवनशैली और दुर्लभ परिसंपत्तियां हैं। बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में दुर्ग भी है जो एक विशाल चट्टान पर स्थित है और जिसकी ऊंचाई 811 मीटर है। जिस पहाड़ी पर यह दुर्ग है, जो इस पहाड़ी को एक आवास योग्य पठार बनाता है। इस पहाड़ी को वन के ताला एवं मागधी दोनों क्षेत्रों से देखा जा सकता है। दुर्ग एवं इसकी धरोहर के दर्शन केलिए विशेष मार्ग पर जाना पड़ता है। गौरतलब हैकि नरेंद्र मोदी सरकार में देशमें इस प्रकार की खोजें हो रही हैं और विदेशों से भारतीय सनातन और इतिहास की दुर्लभ वस्तुएं भारत लाई जा रही हैं।
भारत की अधिकांश किंवदंतियों के समान बांधवगढ़ दुर्ग का सम्बंध महाकाव्य रामायण से भी जुड़ा है। ऐसी मान्यता हैकि यह दुर्ग भगवान राम के अनुज वीरवर लक्ष्मण का था, जिसके कारण इसका नाम बांधवगढ़ पड़ा। बांधवगढ़ से प्राप्त कुछ प्राचीन ब्राह्मी शिलालेखों के आधार पर पुरातत्वविद इसे ईसापूर्व युग का मानते हैं। पुरातात्विक साक्ष्य इस दुर्ग की संरचना को दसवीं सदी का मानते हैं, जो यह दर्शाता हैकि यह दुर्ग ज्ञात ऐतिहासिक कालतक अनवरत बसा हुआ था। माना जाता हैकि बघेलवंश के शासकों ने सत्रहवीं सदी के आरंभ तक इस दुर्ग से शासन किया था, जिसके पश्चात उन्होंने अपनी राजधानी यहां से 120 किलोमीटर दूर रीवा में स्थानांतरित कर दी थी। इस दुर्ग पर अब भी राज परिवार का स्वामित्व है। यहां अद्भुत पुरातात्विक अवशेषों का मिलना स्वाभाविक है और आशा की जाती हैकि यहां पर खोज में और भी दुर्लभ पुरावशेष एवं प्रामाणिक इतिहास का पता चलेगा।

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