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Tuesday 1 November 2022 05:29:39 PM
गौतमबुद्धनगर। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज ग्रेटर नोएडा में सातवें भारत जल सप्ताह का उद्घाटन किया और बतायाकि पांच दिन तक चलनेवाले इस आयोजन में देश-विदेश से आए विशेषज्ञ जल जैसे समसामयिक मुद्दे पर चर्चा करेंगे और इसके संरक्षण के उपाय सुझाएंगे। राष्ट्रपति ने इस आयोजन केलिए जल शक्तिमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, उनके सहयोगियों और उत्तर प्रदेश सरकार की सराहना की। राष्ट्रपति ने कहाकि जल के बिना किसीभी जीवन की कल्पना असंभव है, भारतीय सभ्यता मेतो जीवन में और जीवन केबाद की यात्रा मेभी जल का महत्व है। उन्होंने ऋषि भगीरथ का जिक्र किया, जिन्होंने अपने पुरखों को मोक्ष दिलाने केलिए तपस्या की और गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। राष्ट्रपति ने कहाकि विज्ञान के इस युग में यह कहानी भलेही मिथक लगे पर इसका सार है-जल का हमारे जीवन में महत्व। उन्होंने कहाकि भारतीय सभ्यता में पानी को दैव रूपमें जाना जाता है, पानी के समस्त स्रोतों को पवित्र माना गया है, लगभग हर धार्मिक स्थल नदी केतट पर है, ताल, तलैया और पोखरों का स्थान समाज में पवित्रता का होता है, पर वर्तमान समय पर नज़र डालें तो कईबार स्थिति चिंताजनक लगती है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि आनेवाले वर्षों में बढ़ती हुई जनसंख्या को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना बहुत बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहाकि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण हमारी नदियों और जलाशयों की हालत क्षीण हो रही है, गांवों के पोखरे सूख रहे हैं, कई स्थानीय नदियां विलुप्त हो गई हैं, कृषि और उद्योगों में जल का दोहन जरूरत से ज्यादा हो रहा है, धरती पर पर्यावरण संतुलन बिगड़ने लगा है, मौसम का मिजाज बदल रहा है और बेमौसम अतिवृष्टि आम बात हो गई है। उन्होंने कहाकि इस तरह की परिस्थिति में पानी के प्रबंधन पर विचार-विमर्श करना बहुतही सराहनीय कदम है, इसके कई पहलू हैं, मिसाल के तौरपर कृषि क्षेत्रमें विविधता केसाथ ऐसी फसलें उगाई जाएं, जिनमें पानी की खपत कम हो। राष्ट्रपति ने उल्लेख कियाकि गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र अपने भौगोलिक स्थिति के कारण जल अभाव क्षेत्र था, बीस-पच्चीस साल पहले महिलाओं का सिरपर घड़ा लेकर पानी लाना एक आम दिनचर्या थी, शहरों में पानी टैंकरों से पानी की आपूर्ति होती थी, पानी माफिया का बोल-बाला था, आज यह सब इतिहास का विषय है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बतायाकि सौनी योजना वहां पानी के प्रबंधन का उत्कृष्ट उदाहरण है, अन्य कई राज्यों नेभी इस तरह के सफल प्रयोग किए हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हैकि जल सप्ताह के दौरान जल से जुड़े विभिन्न विषयों पर सेमिनार और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनमें न सिर्फ जल संरक्षण, बल्कि पर्यावरण कृषि और विकास से जुड़े अनेक पहलुओं पर भी चर्चा होगी। उन्होंने कहाकि ये मुद्दे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व केलिए प्रासंगिक हैं, जल का मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा सेभी जुड़ा हुआ है, क्योंकि उपलब्ध स्वच्छ जल का बहुत बड़ा हिस्सा दो या अधिक देशों केबीच में फैला हुआ है, यह संयुक्त जल संसाधन किसीभी देश द्वारा दूसरे देशके खिलाफ हथियार के रूपमें प्रयोग किया जा सकता है और अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष का रूप लेसकता है, इसलिए जल संरक्षण और प्रबंधन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी आवश्यक है। राष्ट्रपति ने कहाकि खुशी कीबात हैकि डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, इज़राइल और यूरोपीय संघ इस आयोजन में भाग ले रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त कीकि इस मंच पर विचारों और प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान से सभी को लाभ होगा।
राष्ट्रपति ने कहाकि पानी का मुद्दा बहुआयामी और जटिल है, जिसके समाधान केलिए सबके प्रयास की जरूरत है और भारत सरकार का जलशक्ति मंत्रालय इस कार्य को लेकर संकल्पबद्ध है। उन्होंने कहाकि भारत सरकार ने वर्ष 2019 में जल जीवन मिशन की शुरुआत की थी, जिसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक हर ग्रामीण घरमें नलसे जल पहुंचाना है। उन्होंने कहाकि जल जीवन मिशन के प्रारंभ के समय देशमें जहां केवल 3.23 करोड़ ग्रामीण घरोंमें नलसे जलकी आपूर्ति होती थी, वहीं अब करीब 10.43 करोड़ घरों में नलसे जलकी आपूर्ति हो रही है, इस मिशन से गांव के लोगों को स्वच्छ पानी पीने केलिए मिल रहा है, जिससे जलजनित बीमारियों में उल्लेखनीय कमी आई है। उन्होंने कहाकि नल से घर-घर जल की आपूर्ति ने पानीकी बरबादी को तो रोका ही है, साथही उसके दूषित होने की संभावना को भी कम किया है। राष्ट्रपति ने कहाकि मिशन से हमारी बहनों-बेटियों को पानी केलिए समय और ऊर्जा नष्ट नहीं करनी पड़ रही है, महिलाएं अब इस ऊर्जा और समय को अन्य रचनात्मक कार्यों में लगा पा रही हैं। उन्होंने कहाकि पानी हमारे किसानों और कृषि केलिए भी एक प्रमुख संसाधन है, एक अनुमान के अनुसार हमारे देशमें जल संसाधन का करीब 80 प्रतिशत भाग कृषि कार्यों में उपयोग किया जाता है, अत: सिंचाई में जल का समुचित उपयोग और प्रबंधन, जल संरक्षण केलिए बहुतही महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि वर्ष 2015 में शुरू की गई 'प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना' इस क्षेत्रमें एक बड़ी पहल है, देशमें सिंचित क्षेत्र को बढ़ाने केलिए यह राष्ट्रव्यापी योजना लागू की जा रही है, जल संरक्षण लक्ष्यों के अनुरूप यह योजना प्रति बूंद अधिक फसल सुनिश्चित करने केलिए सटीक सिंचाई और जल संरक्षण प्रौद्योगिकियों को अपनाने कीभी परिकल्पना करती है। उन्होंने कहाकि सरकार ने जल संरक्षण और जल संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देने केलिए जल शक्ति अभियान शुरू किया है, जिसके अंतर्गत पारंपरिक और अन्य जल निकायों का नवीनीकरण, बोरवेल का पुन: उपयोग और पुनर्भरण, वाटरशेड विकास और गहन वनरोपण से जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिया जा रहा है। द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि आगामी दशक में भारत की शहरी आबादी के तेज गति से बढ़ने का अनुमान है, शहरीकरण के फलस्वरूप जल प्रबंधन और जल प्रशासन प्रणाली की आवश्यकता होगी, इससे जल का समान और सतत वितरण तथा रीसाइक्लिंग जैसे कार्य प्रभावी रूपसे हो सकेंगे और इनको पूरा करने में प्रौद्योगिकी की अहम भूमिका होगी, इसलिए मेरी वैज्ञानिक, नगर योजनाकार और नवप्रवर्तक से अपील हैकि वे इन कार्यों केलिए अत्याधुनिक तकनीक विकसित करने का प्रयास करें।
राष्ट्रपति ने कहाकि हमने दो जल योद्धाओं की सफलता की कहानियां सुनीं, जिस प्रकार उन्होंने अपने क्षेत्र में तमाम बाधाओं को पार करते हुए तालाबों का निर्माण किया और कृषि तथा किसानों के जीवन को बदला है, वह प्रेरणादायक है। राष्ट्रपति ने कहाकि इनके जैसे और भी असंख्य लोग हैं, जो जल और पर्यावरण संरक्षण में सराहनीय योगदान दे रहे हैं। उन्होंने कहाकि हम सब जानते हैंकि जल सीमित है और इसका समुचित उपयोग और रीसाइक्लिंग ही इस संसाधन को लंबे समय तक बनाए रख सकता है, इसलिए हम सबका प्रयास होना चाहिएकि इस संसाधन का मितव्ययता केसाथ उपभोग करें, इसके दुरुपयोग केप्रति खुदभी जागरुक रहें और लोगों कोभी जागरुक करें। राष्ट्रपति ने उम्मीद जताईकि जल सप्ताह के दौरान विचार मंथन से जो अमृत निकलेगा, वह इस पृथ्वी के और मानवता के कल्याण का रास्ता होगा। उन्होंने आम लोगों, किसानों, उद्योगपतियों और विशेषकर बच्चों से अपील कीकि वे जल संरक्षण को अपने आचार-व्यवहार का हिस्सा बनाएं, क्योंकि ऐसा करकेही हम आनेवाली पीढ़ियों को एक बेहतर और सुरक्षित कल दे सकेंगे।