स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Sunday 20 November 2022 04:16:52 PM
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में एक महीने तक चलने वाले 'काशी तमिल संगमम्' का शुभारंभ कर दिया है, जिसका उद्देश्य देशके दो सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन शिक्षा केंद्रों तमिलनाडु एवं काशी केबीच सदियों पुराने संबंधों का उत्सव मनाना, फिरसे इसे मजबूत करना और खोज करना है। विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने देशमें संगमों के महत्व पर कहाकि चाहे वह नदियों, विचारधारा, विज्ञान या ज्ञान का संगम हो, भारत में संस्कृति और परंपराओं के हर संगम का उत्सव मनाया जाता और सम्मानित किया जाता है। उन्होंने कहाकि वास्तव में यह भारत की शक्ति और विशेषताओं का उत्सव है, इस प्रकार यह काशी-तमिल संगम को अद्वितीय बनाता है। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने पुस्तक 'तिरुक्कुरल' का 13 भाषाओं में इसके अनुवाद केसाथ विमोचन किया। उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रम का अवलोकन करने केबाद आरती भी देखी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी और तमिलनाडु के संबंधों पर कहाकि काशी जहां एकओर भारत की सांस्कृतिक राजधानी है, वहीं तमिलनाडु और तमिल संस्कृति भारत की प्राचीनता एवं गौरव का केंद्र है। गंगा और यमुना नदियों के संगम की तुलना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि काशी-तमिल संगम समान रूपसे पवित्र है, जिसमें अनंत अवसर और शक्तियां समाहित हैं। प्रधानमंत्री ने इस महत्वपूर्ण उत्सव केलिए शिक्षा मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार को शुभकामनाएं दीं एवं इसमें अपना समर्थन देने केलिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-आईआईटी मद्रास और बीएचयू जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों को धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने विशेष रूपसे काशी एवं तमिलनाडु के विद्यार्थियों और विद्वानों कोभी बधाई और शुभकामनाएं दीं। प्रधानमंत्री ने कहाकि काशी और तमिलनाडु हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के कालातीत केंद्र हैं। उन्होंने बतायाकि संस्कृत और तमिल दोनों सबसे प्राचीन भाषाओं मेंसे एक हैं, जिनका वर्तमान में अस्तित्व मौजूद है। प्रधानमंत्री ने कहाकि काशी में बाबा विश्वनाथ हैं, जबकि तमिलनाडु में भगवान रामेश्वरम का आशीर्वाद है, काशी और तमिलनाडु दोनों शिव की भक्ति में डूबे हुए हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि चाहे संगीत हो, साहित्य हो या कला, काशी और तमिलनाडु सदैव कला के स्रोत रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि ये दोनों स्थान भारत के श्रेष्ठतम आचार्यों की जन्मस्थली और कर्मभूमि के रूपमें पहचाने जाते हैं। उन्होंने रेखांकित कियाकि काशी और तमिलनाडु में समान ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है। उन्होंने कहाकि पारंपरिक तमिल विवाह बारात केदौरान आजभी काशी यात्रा का जिक्र होता है। उन्होंने रेखांकित कियाकि तमिलनाडु का काशी केप्रति असीम प्रेम एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को प्रदर्शित करता है, जो हमारे पूर्वजों की जीवनशैली थी। प्रधानमंत्री ने काशी के विकास में तमिलनाडु के योगदान को रेखांकित किया और याद दिलायाकि तमिलनाडु में जन्म लेनेवाले डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति थे। उन्होंने वैदिक विद्वान राजेश्वर शास्त्री का भी उल्लेख किया, जो तमिलनाडु में अपनी जड़ें होनेके बावजूद काशी में रहते थे। उन्होंने कहाकि काशी के हनुमान घाट पर रहनेवाले पट्टाभिराम शास्त्री कोभी काशी के लोग बहुत याद करते हैं। प्रधानमंत्री ने काशी काम कोटेश्वर पंचायतन मंदिर केबारे में जानकारी दी, जो हरिश्चंद्र घाट के किनारे एक तमिल मंदिर है और केदारघाट पर दोसौ साल पुराना कुमारस्वामी मैट और मार्कंडे आश्रम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि तमिलनाडु के कई लोग केदारघाट और हनुमान घाट के किनारे रह रहे हैं और उन्होंने कई पीढ़ियों से काशी के लिए अपार योगदान दिया है। प्रधानमंत्री ने महान कवि और क्रांतिकारी सुब्रमण्यम भारती का भी उल्लेख किया, जो तमिलनाडु के रहनेवाले थे, लेकिन कई वर्षों तक काशी में रहे। उन्होंने सुब्रमण्यम भारती को समर्पित पीठ स्थापित करने में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के गौरव और विशेषाधिकार की जानकारी प्रदान की। प्रधानमंत्री ने कहाकि काशी-तमिल संगम आजादी के अमृतकाल के दौरान हो रहा है और अमृतकाल में हमारे संकल्प समूचे देशकी एकता से पूरे होंगे। उन्होंने कहाकि भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जो हजारों वर्ष से सहज सांस्कृतिक एकता में जीरहा है। नरेंद्र मोदी ने हजारों वर्ष पुरानी इस परंपरा और विरासत को मजबूती देने के प्रयासों के अभाव पर खेदभी प्रकट किया। उन्होंने कहाकि काशी-तमिल संगमम् हमें हमारे कर्तव्यों का बोध कराने और राष्ट्रीय एकता को मजबूती प्रदान करने की ऊर्जा के स्रोत के रूपमें आज इस संकल्प का मंच बनेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भाषायी सीमाओं को तोड़ने और बौद्धिक दूरी को पाटने के इसी दृष्टिकोण केसाथ स्वामी कुमारगुरुपर काशी आए और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया तथा काशी में केदारेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया, बाद में उनके शिष्यों ने कावेरी नदी के तट पर तंजावुर में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। प्रधानमंत्री ने तमिल विद्वानों और काशी केबीच संबंध को दोहराते हुए तमिल का राज्यगीत लिखने वाले मनोनमनियम सुंदरनर जैसे व्यक्तित्वों और काशी केसाथ उनके गुरु के संबंध का उल्लेख किया। उन्होंने उत्तर और दक्षिण को जोड़ने में राजाजी की रामायण और महाभारत की भूमिका कोभी याद किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह उनका अनुभव हैकि रामानुजाचार्य, शंकराचार्य, राजाजी से लेकर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे दक्षिण भारत के विद्वानों को समझे बिना हम भारतीय दर्शन को नहीं समझ सकते। पंच प्रण का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि समृद्ध विरासत वाले देश को अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहाकि तमिल के दुनिया की सबसे प्राचीन जीवित भाषाओं में से एक होनेके बावजूद हमारे द्वारा इसे पूरी तरह सम्मान नहीं दिया जाता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि 130 करोड़ भारतीयों की जिम्मेदारी हैकि वे तमिल की विरासत को संरक्षित करें और इसे समृद्ध करें, यदि हम तमिल की उपेक्षा करते हैं तो हम राष्ट्र का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं और यदि हम तमिल को सीमाओं में बांधकर रखते हैं तो हम इसे बहुत नुकसान पहुंचाएंगे। उन्होंने कहाकि हमें याद रखना होगाकि हमें भाषाई मतभेदों को दूर करना है और भावनात्मक एकता स्थापित करनी है। प्रधानमंत्री ने कहाकि संगमम् शब्दों से अधिक अनुभव करने का विषय है। उन्होंने आशा व्यक्त कीकि काशी के लोग यादगार आतिथ्य प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। प्रधानमंत्री ने इच्छा व्यक्त कीकि इस तरह के आयोजन तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों में आयोजित हों और देश के अन्य हिस्सों के युवा वहां जाएं और वहां की संस्कृति को आत्मसात करें। प्रधानमंत्री ने कहाकि अनुसंधान के माध्यम से संगमम् के लाभों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है और यह बीज एक विशाल वृक्ष बने। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, डॉ एल मुरुगन, पूर्व केंद्रीय मंत्री पॉन राधाकृष्णन, विश्वप्रसिद्ध संगीतकार और राज्यसभा के सदस्य इलैईराजा, बीएचयू के वाइस चांसलर सुधीर जैन, आईआईटी मद्रास के डायरेक्टर प्रोफेसर कामाकोट्टि और बड़ी संख्या में तमिलनाडु एवं काशी के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
प्रधानमंत्री की सोच से निर्देशित 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के विचार को बढ़ावा देना सरकार के प्रमुख फोकस क्षेत्रों में से एक रहा है। इस सोच को प्रदर्शित करने वाली एक और पहल के रूपमें काशी में एक महीने के कार्यक्रम 'काशी तमिल संगमम्' का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्देश्य देश के दो सबसे महत्वपूर्ण व प्राचीन शिक्षा केंद्रों-तमिलनाडु और काशी के बीच सदियों पुराने संबंधों का उत्सव मनाना, फिरसे इसे मजबूत करना और खोज करना है। दोनों क्षेत्रों के विद्वानों, छात्रों, दार्शनिकों, व्यापारियों, कारीगरों व कलाकारों आदि सहित जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को एकसाथ आने, अपने ज्ञान, संस्कृति व सर्वश्रेष्ठ तौर-तरीकों को साझा करने और एक दूसरे के अनुभवों से सीखने का अवसर प्रदान करना है। तमिलनाडु से प्रतिनिधि काशी में एक तरह के व्यापार, पेशे और रुचि के संबंध में स्थानीय लोगों केसाथ बातचीत करने के लिए संगोष्ठियों व स्थलों के दौरे आदि में हिस्सा लेंगे। काशी-तमिल के हथकरघा, हस्तशिल्प, ओडीओपी उत्पादों, पुस्तकों, वृत्तचित्रों, पाकशैली, कलारूपों, इतिहास व पर्यटन स्थलों आदि की प्रदर्शनी भी लगाई है। यह प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 केतहत ज्ञान की आधुनिक प्रणालियों केसाथ भारतीय ज्ञान प्रणालियों की संपदा को एकीकृत करने पर जोरदेने के अनुरूप है। कार्यक्रम केलिए दो कार्यांवयन एजेंसियां-आईआईटी मद्रास और बीएचयू हैं।