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Monday 28 November 2022 06:28:31 PM
पणजी। फिल्म निर्देशक ग्नानवेल का कहना हैकि 'जय भीम' सिर्फ एक शब्द नहीं है, बल्कि एक भावना है और उनकी जय भीम फिल्म अपने वास्तविक लक्ष्य को तभी प्राप्त करेगी, जब सभी उत्पीड़ित समुदाय शिक्षा के माध्यम से सशक्त हो जाएंगे। निर्देशक ग्नानवेल ने कहाकि इस फिल्म ने निश्चित रूपसे अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू प्रतिनिधियों के रोंगटे खड़े कर दिए हैं तथा उनके जीवन में परिवर्तन ला दिया है, जो सही है उसके लिए बोलना और उसके पक्ष में खड़ा होना, परिणाम चाहे जो भी हो। ग्नानवेल ने फिल्म महोत्सव के दौरान टेबल टॉक्स सत्र में फिल्म के शीर्षक 'जय भीम' रखने के विचार साझा किए। उन्होंने कहाकि उनके लिए जय भीम शब्द शोषित और हाशिये पर रहनेवाले लोगों का पर्याय है, जिनके हितों केलिए बाबासाहेब डॉ भीमराव रामजी आम्बेडकर हमेशा खड़े रहे।
फिल्म जय भीम को मिली अकल्पनीय प्रशंसा पर खुशी व्यक्त करते हुए ग्नानवेल ने कहाकि यह फिल्म इसलिए सभी से जुड़ सकी, क्योंकि इसने एक ऐसे विषय को उठाया है, जो सार्वभौमिक है। निर्देशक ग्नानवेल ने कहाकि जय भीम केबाद मैंने जातिगत भेदभाव, कानून के कार्यांवयन और न्याय प्रणाली की खामियों के बारेमें ऐसी सैकड़ों कहानियां सुनीं। उन्होंने कहाकि वह अपनी फिल्म के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैंकि अन्याय के खिलाफ लड़ाई में संविधान ही असली हथियार है। ग्नानवेल ने कहाकि वास्तविक जीवन में कोई महानायक नहीं होता, शिक्षा के जरिये शक्तिसम्पन्न बनकर व्यक्ति खुद अपना महानायक बनता है। उन्होंने कहाकि उनकी फिल्म का उद्देश्य उसी समय पूरा होगा, जब सारे शोषित अधिकार सम्पन्न हो जाएंगे। जय भीम ज्वलंत मुद्दों पर खरे और पैने तेवरों वाली फिल्म है, जिसमें जनजातीय दम्पती राजाकुन्नू और सेनगनी के जीवन व संघर्षों को दर्शाया गया है। यह दम्पती ऊंची जाति वाले लोगों की मनमानी और इच्छा के अनुसार जीने पर बाध्य हैं, ये उनके यहां घरेलू कामकाज करते हैं।
जय भीम फिल्म बनाने की कड़वी शैली उस समय नज़र आती है, जब राजाकुन्नू को ऐसे अपराध केलिए गिरफ्तार कर लिया जाता है, जो उसने किया ही नहीं। इसके बाद फिल्म प्रतिरोध के भयंकर क्षणों को दर्शाती है। फिल्म में दिखाया गया हैकि किस तरह ताकतवर लोग, कमजोर वर्ग के लोगों को अपमानित करते हैं, उनपर जुल्म करते हैं। सामाजिक बदलाव में सिनेमा की भूमिका के बारेमें ग्नानवेल ने कहाकि वैसे फिल्म में एक मसीहा है, जो शोषित लोगों केलिए लड़ता है, लेकिन उनकी फिल्म का संदेश महान विद्वान बाबासाहेब डॉ भीमराव रामजी आम्बेडकर के विचारों को ध्वनित करती हैकि शिक्षा ही एकमात्र जरिया है, जिससे लोग अधिकार सम्पन्न हो सकते हैं। यह फिल्म न्यायमूर्ति के चंद्रू के जीवन की असली घटना पर आधारित है, जिन दिनों वे वकालत करते थे, उनकी भूमिका प्रसिद्ध अभिनेता सूर्या ने निभाई है। ग्नानवेल ने कहाकि फिल्म में उसकी विषयवस्तु ही असली नायक है, अगर विषयवस्तु जीवंत होगी तो लोग उसी तरह फिल्म बनाएंगे जैसा रचनाकार चाहता है, बादमें सबकुछ ठीक-ठाक होता जाएगा।
उल्लेखनीय हैकि अभिनेता सूर्या ने जो गैर-सरकारी संस्थान अग्राम फाउंडेशन बनाया है, उसके पीछे की प्रेरणा निर्देशक ग्नानवेल हैं। इसपर प्रकाश डालते हुए फिल्म के सहनिर्माता राजशेखर के ने कहाकि ग्नानवेल ने अपना करियर पत्रकार और लेखक के रूपमें शुरू किया था, वे वर्षों तक वंचित लोगों केलिए काम करते रहे हैं। राजशेखर के ने कहाकि फिल्म बनाने केलिए सूर्या से संपर्क किया गया था, उन्होंने एकबार कहानी सुनी तो उन्होंने फिल्म में काम करने की इच्छा व्यक्त की, यह हमारे लिए बहुत अचरज की बात थी। फिल्म बनाने की ईमानदार कोशिश और इरुला जनजाति के लोगों को फिल्म में शामिल करने के बारेमें राजशेखर ने कहाकि मणिकंदन और लिजोमोल जोस जैसे कलाकारों ने राजाकुन्नू व सेनगनी की भूमिका निभाई है। ये दोनों जनजातीय समुदाय के जीवन को करीब से देखने केलिए उनके साथ 45 दिन तक रहे थे।
जय भीम फिल्म के प्रशंसकों को खुश करने वाली ख़बर सुनाते हुए राजशेखर ने कहाकि जय भीम के सीक्वल निश्चित रूपसे बनेंगे। उन्होंने कहाकि चूंकि इसे लेकर बातचीत शुरू हो चुकी है, इसलिए वे पाइपलाइन में हैं। अभिनेता लिजोमोल जोस, जिन्हें मुख्य रूपसे मलयालम फिल्मों के लिए जाना जाता है, उन्होंने कहाकि असली चुनौती तमिल भाषी इरुला का किरदार निभाने की थी। उन्होंने बतायाकि मेरे क्राफ्ट को निखारने केलिए आदिवासी समुदाय केसाथ हमारा रहना महत्वपूर्ण साबित हुआ। अभिनेता मणिकंदन ने कहाकि ये फिल्म उन्हें काफी अप्रत्याशित रूपसे मिली। उन्होंने कहाकि मैं ऐसे लोगों से मिला और उनके साथ रहा, जो ये सोचते हैंकि उनके पास दुनिया में सबकुछ है, जबकि उनके पास हमारे जैसी कोईभी भौतिक चीजें नहीं थीं।
भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में-53 में जय भीम की स्क्रीनिंग इंडियन पैनोरमा फीचर फिल्म्स सेक्शन के तहत की गई थी। भारतीय फिल्म निर्देशक और लेखक ग्नानवेल तमिल फिल्म उद्योग में काफी प्रसिद्ध हैं और जय भीम केलिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। उनके निर्देशन की पहली फिल्म कूटथिल ओरुथन (2017) थी। 2डी एंटरटेनमेंट पुरस्कार विजेता भारतीय फिल्म निर्माण और वितरण कंपनी है, जिसमें अभिनेता, निर्माता और प्रस्तुतकर्ता सूर्या ने राजशेखर पांडियन, ज्योतिका और कार्थी केसाथ कई ब्लॉकबस्टर हिट किए हैं।