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Wednesday 21 December 2022 03:28:44 PM
कवलूर (तमिलनाडु)। वेणु बापू वेधशाला कवलूर में 40 इंच के टेलीस्कोप की कई तारकीय खोजों को इस वर्ष 15-16 दिसंबर को इसके संचालन के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में समारोह आयोजित किया गया। प्रोफेसर वेणु बप्पू के स्थापित इस टेलीस्कोप ने यूरेनस ग्रह के चारों ओर रिंग की उपस्थिति, यूरेनस के एक नए उपग्रह गेनीमेड के चारों ओर एक वातावरण की उपस्थिति जैसी प्रमुख खोजों के साथही खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो बृहस्पति का एक उपग्रह है। इस टेलीस्कोप केसाथ किएगए महत्वपूर्ण शोधों में कई 'भविष्य के तारों' की खोज और अध्ययन, विशाल सितारों में लिथियम की कमी, ज्वालापुन्जों में प्रकाशिक परिवर्तनशीलता, प्रसिद्ध सुपरनोवा एसएन 1987ए की गतिशीलता आदि शामिल हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के संस्थान भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के अंतर्गत इस वेधशाला को अपने टेलीस्कोप बैक एंड उपकरणों के कारण इंजीनियरों और खगोलविदों ने प्रासंगिक बनाकर रखा है और यह टेलिस्कोप अन्य टेलिस्कोपों केसाथ अबभी प्रतिस्पर्धी है। वर्ष 1976 में कैससेग्रेन फोटोमीटर और एशेल स्पेक्ट्रोग्राफ से शुरू होकर, 1978 में नया ग्रेटिंग स्पेक्ट्रोग्राफ, 1988 में 2016 में इसके प्रतिस्थापन केसाथ फास्ट चॉपिंग पौलीमीटर और 2021 में नवीनतम एनआईआर फोटोमीटर के माध्यम से यह वेधशाला लगातार अपनी सुविधाओं का उन्नयन कर रही है। आईआईए के निदेशक प्रोफेसर अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने कहा हैकि यह टेलीस्कोप फोटोग्राफिक प्लेटों से लेकर आधुनिक आवेश युग्मित उपकरण तक खगोलीय प्रेक्षणों में प्रौद्योगिकी परिवर्तनों का साक्ष है। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि यह सुविधा उत्पादक बनी रहेगी और आनेवाले कई वर्षों तक वैज्ञानिक इसका उपयोग करते रहेंगे।
भारत को 1960 के दशक तक यह स्पष्ट थाकि आधुनिक खगोल विज्ञान में अनुसंधान केलिए एक उच्चगुणवत्ता वाली ऑप्टिकल वेधशाला की आवश्यकता पड़ेगी और तब एक व्यापक खोजबीन केबाद प्रोफेसर वेणु बप्पू ने ऐसी वेधशाला केलिए कवलूर को उपयुक्त स्थान के रूपमें चुना। कवलुर के ऊपर का आकाश उत्कृष्ट था और इसका दक्षिणी छोर इससे उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों के आकाशों के अधिकतर भाग को देखा जा सकता था। वेधशाला का संचालन शुरू होनेके कुछ वर्ष बाद प्रोफेसर वेणु बप्पू ने तत्कालीन पूर्वी जर्मनी जेना के कार्ल जीस को 40 इंच के टेलीस्कोप केलिए ऑर्डर दिया, जिसे बाद में 1972 में स्थापित किया गया था। इस टेलीस्कोप के दर्पण का व्यास 40 इंच अथवा 102 सेमी है और इसे 1972 में स्थापित किया गया था और इसके तुरंत बादही इस वेधशाला ने महत्वपूर्ण खगोलीय खोजों की जानकारी देनी शुरू कर दी थी। टेलीस्कोप पर एक पीढ़ी से अधिक के खगोलविदों को प्रशिक्षित किया गया है। इंजीनियरों से प्राप्त विशेषज्ञता ने भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान को 1980 के दशक में पूरी तरह से स्वदेशी 90-इंच (2.34 मीटर) वाले टेलीस्कोप बनाने में सक्षम बनाया।
असाधारण टेलीस्कोप की स्वर्ण जयंती मनाने केलिए भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान ने इस 15 दिसंबर को अपने बेंगलुरु परिसर में एक दिवसीय बैठक का आयोजन किया, जिसके बाद 16 दिसंबर को कवलूर में एक समारोह आयोजित किया गया। आईआईए के कई सेवानिवृत्त खगोलविदों, इंजीनियरों और दूरबीन सहायकों को कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था और संस्थान निदेशक ने उन्हें सम्मानित किया। इस दूरबीन से हुई महत्वपूर्ण विज्ञान खोजों केसाथ-साथ उस समय के कर्मचारियों ने व्यक्तिगत यादों को साझा किया। इस अवसर पर आईआईए के छात्रों की प्रकाशित खगोल विज्ञान पत्रिका 'दूत' के 7वें अंक का भी विमोचन किया गया। कवलुर के आसपास के गांवों के प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों केलिए 40 इंच के टेलीस्कोप का चित्र बनाने केलिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसके विजेताओं को पुरस्कृत भी किया गया।