Saturday 31 December 2022 04:43:35 PM
दिनेश शर्मा
लखनऊ। भारत सरकार में रहते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायरमेंट के एकदिन पूर्व ही उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव बनाए गए दुर्गाशंकर मिश्र को इसी पद पर फिर एक साल केलिए सेवा विस्तार मिल गया है। दुर्गाशंकर मिश्र का 30 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के रूपमें एक साल पूरा हो गया और यही उनके सेवा विस्तार का अंतिम दिन भी था, लेकिन भारत सरकार ने एक और वर्ष केलिए उन्हें सेवा विस्तार दे दिया है। सवाल उठना लाजिम हैकि क्या यूपी योग्य नौकरशाहों से पामाल हो चुका है? मगर कहनेवाले बड़े दावे से कहरहे हैंकि दुर्गाशंकर मिश्र के इसबार के सेवा विस्तार में उनकी प्रशासनिक उपयोगिता के निहितार्थ कम हैं, मगर 'राजनीतिक उपयोगिता' के ज्यादा हैं और हो ना हो दुर्गाशंकर मिश्र का यह सेवा विस्तार लोकसभा चुनाव होने तक चले। मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने अपने ट्वीटर हैंडल पर ट्वीट करके अपने सेवा विस्तार का इस प्रकार इजहार किया है-'परमेश्वर की असीम कृपा से अपने प्रदेश में एक वर्ष और सेवा करने का अवसर मिला है। मा॰ प्रधानमंत्री जी के नये भारत के विजन के अनुरूप मा॰ मुख्यमंत्री जी के यशस्वी मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश का चहुंमुखी विकास कर नागरिकों को बेहतर जीवन देने हेतु ज़िम्मेदारी को मैं पूरी निष्ठा से निभाऊंगा।'
दुर्गाशंकर मिश्र 1984 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वे भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर शहरी विकास मंत्रालय के सचिव सहित कई पदों पर रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की नौकरशाही में बड़ा बदलाव करते हुए राजेंद्र कुमार तिवारी को हटाकर और दुर्गाशंकर मिश्र को आईएएस से रिटायरमेंट के एकदिन पूर्व ही सेवा विस्तार देते हुए उन्हें 30 दिसंबर 2021 को उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बनाया गया था। दुर्गाशंकर मिश्र अपने एक साल के मुख्य सचिव के कार्यकाल में कितना उत्तर प्रदेश का चहुंमुखी विकास कर नागरिकों को बेहतर जीवन दे पाए, यह सबके सामने है, लेकिन यह जरूर माना जाता हैकि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद अफसरों में अपना नाम दर्ज कराने में जरूर सफल हुए हैं। इसका आधार यह बना हैकि उनकी प्रधानमंत्री की प्राथमिकता वाली शहरी विकास मंत्रालय की योजनाओं के क्रियांवयन में उल्लेखनीय भूमिका मानी जाती है। इस कारण उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के रूपमें सेवा विस्तार मिला। वैसेभी उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव होने की उनकी महत्वाकांक्षा भी थी। यद्यपि किसी रिटायर्ड नौकरशाह को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के रूपमें दूसरा सेवा विस्तार दिया गया है, दुर्गाशंकर मिश्र ऐसे पहले मुख्य सचिव हैं।
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की नौकरशाही के मुख्य सचिव जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण और शीर्ष पद पर एक रिटायर्ड नौकरशाह को सेवा विस्तार पर सेवा विस्तार सबके गले नहीं उतर रहा है, लेकिन कुछ ने इस विस्तार का सही कारण पकड़ लिया है। कईयों का कहना हैकि एक रिटायर्ड नौकरशाह की अधीनस्थ नौकरशाही कितनी सुनती होगी, यह सवाल विचार और चिंतन का विषय है। नौकरशाही कुर्सी केलिए लॉबिंग करने, अपनी मनमानी करने या फिर कलम नहीं चलाने या सरकार के फैसलों पर कमेटियां बनाने और विकास तककी फाइलों को उलझाने केलिए विख्यात है और उसीमें ही यह भी चर्चा हैकि क्या उत्तर प्रदेश को रिटायर्ड नौकरशाह चलाएंगे और क्या इस पद केलिए उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में योग्य आईएएस नहीं रहे हैं? क्या इससे नौकरशाही के मनोबल पर नकारात्मक असर नहीं पड़ रहा है? इस तरह से कौन नौकरशाह अपनी प्रशासनिक दक्षता कार्यक्षमता और निर्णय लेने की क्षमता का प्रदर्शन कर पाएगा? हर नौकरशाह की तीन तमन्नाएं होती हैंकि वह अपने जीवन में जिले का डीएम राज्य के मुख्य सचिव और भारत सरकार के कैबिनेट सचिव की कुर्सी तक पहुंचे। एक आईएएस ऑफिसर इन तीन पदों तक पहुंचने केलिए क्या नहीं करता है? अर्थात इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ता है, लेकिन एक रिटायर्ड नौकरशाह की पदस्थापना कईयों के सारे रास्ते बंद कर देती है, इस कारण न जाने कितने डिप्रेशन में भी चले जाते हैं।
एक नौकरशाह की यह भी तमन्ना होती हैकि वह अपने मूल काडर राज्य से प्रतिनियुक्ति पर भारत सरकार में भी जरूर जाए, लेकिन हर आईएएस अफसर को यह मौका नहीं मिलता, इसके लिए उसे अपनी दक्षता निष्ठा और बेदाग़ कार्यप्रणाली सिद्ध करनी होती है, जिससे वह जांचों से डरकर कलम नहीं चलाता है और अपना महत्व और उपयोगिता समाप्त कर बैठता है। उत्तर प्रदेश में यही अनुभव किया जाता हैकि ऐसे नौकरशाहों की संख्या कम नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा है। ऐसे ही कारणों से राज्यों के नौकरशाहों का भारत सरकार में जाना कठिन होता है। यदि उसे भारत सरकार में अवसर मिलता है तो वह वरिष्ठता निष्ठा पसंद और अपने सर्विस रिकार्ड के आधार पर ही कैबिनेट सचिव की कुर्सी का सपना देख सकता है, अन्यथा फिर उसे अपने ही राज्य के मुख्य सचिव की कुर्सी तक ही संतोष कर लेना होता है, मगर उसमें भी यह सवाल और शर्त हैकि वह राज्य सरकार के नेतृत्व की पसंद हैकि नहीं? चाहे वह अपने बैच का टॉपर ही क्यों न हो, अपने महत्व और दावे के बाद भी उसे यदि यह सुअवसर नहीं मिल पाता है तो वह अपने संवर्ग के बीच भी खास स्थान नहीं बना पाता है। दुर्गाशंकर मिश्र कैबिनेट सचिव तक तो नहीं पहुंच पाए, हां! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बनने की इच्छा जरूर पूरी कर दी है, जिसमें उन्होंने अपनी निष्ठा साबित करके दूसरा सेवा विस्तार पा लिया है।
यूपी के संदर्भ में ऐसा लगता हैकि भारत सरकार का सत्ता प्रतिष्ठान या यह कहिए कि आला कमान उत्तर प्रदेश में नौकरशाही की पदस्थापनाओं से कहीं संतुष्ट नहीं है। राजनीतिक दृष्टिकोण से भी आला कमान में कुछ न कुछ चल रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की 55 सीटों पर पराजय एक आंतरिक मुद्दा एवं राजनीतिक मंथन है। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक की कुर्सी पर भी अभी तक देवेंद्र सिंह चौहान काम चलाऊ डीजीपी हैं। राज्य सरकार ने अपने पैनल में उनको डीजीपी बनाने का जो प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा था, वह अभीतक ठंडे बस्ते में है। इतने बड़े राज्य की पुलिस का मुखिया अभीतक एडहॉक हो तो उत्तर प्रदेश की पुलिस पर उसका क्या नियंत्रण होगा? यूपी पुलिस का प्रशासनिक नियंत्रण किसके भरोसे है? एक एडहॉक डीजीपी के भरोसे? भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों में अफरा-तफरी है। देवेंद्र सिंह चौहान के बारेमें यहांतक चर्चा हैकि इनको डीजीपी बनवाने के पीछे सोनिया गांधी का करीबी एक कांग्रेस नेता है, जो क्रिकेट की राजनीति भी करता है। देवेंद्र सिंह चौहान को तीन सीनियर बाईपास करके डीजीपी का चार्ज दिया गया है। राज्य के नेतृत्व से यह सवाल पूछा जा रहा हैकि कानून व्यवस्था और सुरक्षा से जुड़े इतने बड़े पद पर नियुक्ति केलिए क्या नीति और तैयारी होती है?
उत्तर प्रदेश के पुलिस और प्रशासनिक इतिहास में यह पहला मौका हैकि जब उत्तर प्रदेश का डीजीपी एडहॉक है और उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव रिटायर नौकरशाह है और सेवा विस्तार पर है। उत्तर प्रदेश में यह दोनों पद पुलिस और प्रशासनिक अस्थिरता के शिकार नहीं हैं तो क्या हैं? देश का लोकसभा चुनाव सामने है, चुनाव तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, जिसमें मुख्य सचिव का विषय तो स्पष्ट हो चुका है, परंतु यूपी के डीजीपी पर संशय कब खत्म होगा? इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के अपर मुख्य सचिव गृह और सूचना अवनीश अवस्थी को उनके रिटायर होने से पहले सेवा विस्तार दिलाने केलिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा था, जोकि भारत सरकार में मंजूर नहीं हुआ और रिटायर होने के बाद अवनीश अवस्थी को योगी सरकार ने अपना सलाहकार बनाया हुआ है। यहां पर भी सवाल यह हैकि इस पद पर अवनीश अवस्थी की क्या उपयोगिता है, जबकि उनका सेवाकाल भी विवादों से भरा रहा है। राज्य के एडहॉक डीजीपी की पदस्थापना में उनकी दिलचस्पी काफी चर्चा में बनी हुई है। उत्तर प्रदेश में एक पूर्व सरकार में सेवा विस्तार की परंपरा खत्म कर दी गई थी, लेकिन मुलायम सिंह यादव मायावती और अखिलेश सरकार में यह पाबंदी हटा दी गई और तबसे यह जारी है। राज्य के प्रशासनिक और दूसरे कार्मिकों के सेवा मामले में प्रशासनिक सुधार की दृष्टि से सेवा विस्तार को कभी अच्छा नहीं माना गया है, लेकिन इस दृष्टिकोण की सरकारें अनदेखी करती आ रही हैं। प्रश्न यह हैकि जो अपनी सेवा में रहते अनुकरणीय कार्य और दृष्टांत स्थापित नहीं कर पाए वे सेवा विस्तार में क्या कर पाएंगे और कौन उनकी सुनेगा, क्योंकि हर नौकरशाह मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन सेशन की तरह नहीं हो सकता।
यूपी की नौकरशाही में कार्य संस्कृति जवाब देती दिख रही है। राज्य की जनहित की योजनाओं और विकास कार्यों, अनेक विभागों के जनहित के फैसलों के खिलाफ हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिकाएं दाखिल हैं। सरकार की नीति या निर्णय के बावजूद नौकरशाह जिस काम को नहीं करना चाहते हैं, वह उसको टालने या लटकाने केलिए कमेटी बना देते हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश के गन्ना एवं चीनी उद्योग विभाग के अपर मुख्य सचिव एवं गन्ना आयुक्त संजय भूसरेड्डी का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है, जिन्हें काम नहीं करने और कमेटियां बनाकर फाइलें उलझाने का विशेषज्ञ माना जाता है। मजे की बात हैकि संजय भूसरेड्डी राज्य सरकार के खास नौकरशाहों में माने जाते हैं। बहरहाल अपवाद को छोड़कर जिलों में भी स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली निराशाजनक बनी हुई है। स्थानीय प्रशासन के सिरमौर जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान जनसामान्य की शिकायतों के निस्तारण में प्रशासन और जनसामान्य को कितना समय देते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। जिलों में प्रशासन और स्थानीय नेताओं में टकराव की गूंज आएदिन सुनाई पड़ती है, इसलिए फील्ड में प्रशासनिक अव्यवस्था और जनसामान्य की अवमानना विकास कार्यों की उपेक्षा का मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने अपने एक साल में कितना संज्ञान लिया, कितनों पर कार्रवाई की, ऐसे कुछ सवाल हैं, जो उनसे जवाब मांगते हैं।