दिनेश सिंह
न्यू जर्सी। अमरीका में रह रहे भारतीयों में अब यह बात उठ रही है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था में उनके गैर भारतीय मुल्कों से भी ज्यादा उल्लेखनीय योगदान के बावजूद भारतीयों के साथ सबसे ज्यादा नस्लीय भेदभाव और उन पर भद्दी नस्लीय टिप्पणियां बढ़ती जा रही हैं। इसकी शिकायत करना भी गुनाह है, मामले को आगे बढ़ने ही नहीं दिया जाता है। यहां ऐसे कई मामले पुख्ता प्रमाणों के बावजूद दफन कर दिए गए। भारतीय समुदाय के ही अनेक 'बड़े लोगों' और 'गुटों' की इन मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं है जिस कारण गैर भारतीयों में भी अब भारतीय समुदाय को खुलेआम कॉकरोच, बोदा, बिकाऊ और लालची तक कहा जाने लगा है। जैसा कि आपने सुन रखा है कि इंग्लैण्ड में पहले से ही भारतीयों का नामकरण 'इंडियन डॉग' है और अच्छी तरह से जान लीजिए कि अमरीका में इन्हें 'इंडियन कॉकरोच' कहा जाता है।
अमरीका में भारतीयों को कोई चाहे कितना बुरा कहकर चला जाए इसका कोई संज्ञान नहीं लिया जाता है। कुछ भारतीय अगर पलटकर कानूनी रूप से कुछ कहने या करने की बात करते भी हैं तो उनकी बात यहां नक्कारखाने में तूती की आवाज़ है। ऐसे अनेक दृष्टांत हैं जिनमें भारतीय लोग बुरी तरह अपमानित हुए लेकिन भारतीय समुदाय की एक लॉबी को तो केवल किसी भी तरह से अरबपति बनने से मतलब है उसे न भारत की चिंता है और न भारत के मान सम्मान की चिंता। अमरीका में भारतीयों से ज्यादा प्रभावशाली और शक्तिशाली तो बाकी अन्य देशों के अप्रवासी हैं जो किसी भी अमरीकी या इस्राइली की टिप्पणी पर उनके कपड़े फाड़ने को तैयार हो जाते हैं और उन्हें अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांगनी पड़ती है और उसकी मुआवजे के तौर पर आर्थिक क्षतिपूर्ति अलग।
उदाहरण के तौर पर इस मामले को लें- सन् 2006 में अमेरिका में इस्राइली प्रेसिडेंट माइकल स्वार्टज के नेतृत्व वाली पुलिस यूनियन ने बोला था कि भारतीय लोग तिलचट्टे, जानवर, अशिक्षित और गैरकानूनी हैं और वे भारत वापस जाएं। दो सौ वर्ष से भी ज्यादा के अमेरिकी इतिहास में इतने बुरे अपशब्द किसी भी अल्पसंख्यक और कमजोर जाति के लिए भी नहीं बोले गए होंगे। अमरीका में बसे कुछ भारतीयों ने किसी तरह हिम्मत करके इस नस्लभेदी टिप्पणी की सूचना भारतीय मीडिया के दिग्गज पत्रकारों और सभी टीवी चैनलों को भी दी थी मगर किसी ने इसका संज्ञान नहीं लिया। न्यू जर्सी में भारतीय काउंसलेट में प्रवासी भारतीय मंत्री व्यालार रवि, विदेश राज्य मंत्री आनंद शर्मा और भारत के अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को भी यह बात बताई गई थी, इसके बावजूद, भारत में या विदेशों में रहने वाले भारतीयों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, धार्मिक नेताओं और उद्योगपतियों ने इस पर न कोई एतराज प्रकट किया और न कोई टिप्पणी ही की। सामान्य तौर पर विधिक रूप से विरोध दर्ज कराने की बात तो बहुत दूर की है। पुलिस यूनियन और न्यू जर्सी की सरकार से किसी भारतीय या भारत सरकार ने मांफी मांगने को भी नहीं कहा। सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि भारतीयों को तिलचट्टे कहने वालों का न्यू जर्सी और न्यू यार्क के अप्रवासी भारतीय संगठन और उनके नेता अपनी सार्वजनिक सभाओं और कार्यक्रमों में गर्मजोशी से आदर सम्मान करते हैं और उन भारतीयों की घोर उपेक्षा करते हैं जिनकी कड़ी मेहनत से अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत रहती है। ये ही वो भारतीय हैं जो यहां के रंग-भेदी टिप्प्णियों को खून के घूंट की तरह पीते हैं और भारतीय हुक्मरान उन पर बेशर्मी से चुप्पी मारकर बैठे रहते हैं।
अब जरा अमरीका में रह रहे गैर भारतीयों के हनक के साथ रहने के तरीकों पर गौर करें जो अपने जाति, देश, समुदाय या धर्म आध्यात्म के बारे में किसी भी नस्लीय टिप्पणी का मुंहतोड़ जवाब देते हैं। न्यू जर्सी की रटगर्स यूनिवर्सिटी की अमेरिकी अफ्रीकी महिला फुटबाल टीम के मैच हारने पर सीबीएस टीवी शो के डान आइमस ने केवल यह बोला था कि इनको खेलने ही क्यों दिया जाता है जब ये जीत नहीं सकती हैं, ये तो नैपी हैपिड होस हैं। इस टिप्पणी को लेकर अफ्रीकी समुदाय के राजनेता, पत्रकार, धार्मिक नेता, कलाकार और अन्य लोग एक जुट हो गए। उन्होंने इस टिप्पणी को मुद्दा बना लिया और डान आइमस को सीबीएस टीवी से बाहर निकलवा करके ही दम लिया। डान आइमस और सीबीएस टीवी के प्रबंधकों को इस टिप्पणी के लिए सार्वजनिक रूप से अफ्रीकियों से मांफी भी मांगनी पड़ी। यही नहीं अपनी टिप्पणी के कारण हीन भावना से ग्रस्त हो गए डॉन अडिमस ने अफ्रीकी संगठनों को लाखों डॉलर धन भी दिया और कहा कि वह मूर्खता में ऐसा कह गए थे, फिर भी करीब ढाई साल बाद जाकरडान आइमस को रॉयटर शो में काम करने का मौका मिल सका।
डान आइमस वही हैं जिनकी गिनती मार्च 2007 तक अमेरिका के पच्चीस सबसे प्रभावशाली और धनवान व्यक्तियों में होती थी। इस घटनाक्रम के बाद डान आइमस अपनी पुरानी फॉर्म में वापस नहीं लौट सके। अफ्रीकी समुदाय ने उन्हें जो सबक सिखाया वह आज तक अमरीकियों की नजरों के सामने रहता है। भारतीय तो इनसे भी ज्यादा हैसियत रखते हैं लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि यहां अनेक भारतीय थूका हुआ चाटने से भी संकोच नहीं करते हैं। एक और दृष्टांत लीजिए! सन् 2008 में अमेरिका में रहने वाले चीनी समुदाय के बारे में सीएनएन के वरिष्ठ पत्रकार जैक कैफरटी ने अपने एक कार्यक्रम में बोला कि चायनीज गोमस हैं। अमेरिकी चीनी समुदाय ने सीएनएन के हॉलीवुड कार्यालय का घेराव किया और अदालत में 1.3 बिलियन डालर का मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया। जैक कैफरटी और सीएनएन के प्रबंधकों ने सार्वजनिक रूप से इस टिप्पणी के लिए चीनी समुदाय से मांफी मांगी और अदालत के बाहर क्या इस मामले में और क्या समझौता हुआ इसकी कोई सार्वजनिक सूचना नहीं है।
अमेरिका में शायद भारतीय मूल के ही लोग हैं जोकि अपने नस्लीय अपमान को होते देखते रहते हैं खासकर यदि यह अपमान इस्राइली करें। इस्राइलियों के मन में भारतीयों के प्रति जो भाव हैं उसके जो भी कारण हों लेकिन भारतीयों के खिलाफ नस्लभेदी टिप्पणियां भारतीयों की बड़ी कमजोरी उजागर करती हैं। यहां पर भारतीय मूल के चिकित्सक डॉ देवेंदु सिन्हा की हत्या हुई और भारतीय समुदाय कुछ नहीं कर पाया। इनके हत्यारे जमानत पर बाहर घूम रहे हैं। भारतीय झण्डा फहराने पर न्यू जर्सी के पुलिसमैन ने तीन भारतीय व्यवसाइयों अजय पटेल, विमल जोशी और उनके तीसरे सहयोगी को बुरी तरह पीटा लेकिन इनकी किसी ने मदद नहीं की। भारतीय मूल की महिला वैज्ञानिक डॉ गीता अंगारे को मारकर पानी के टैंक में डाल दिया गया-भारतीय समुदाय नहीं बोला। भारत में हरियाणा प्रांत का रहने वाला एक लड़का कपिल गोयल कार दुर्घटना के मामले में 12 साल की सजा काट रहा है, उसका पक्ष रखने में भारतीय समुदाय ने कोई दिलचस्पी नहीं ली।मजे की बात है कि भारतीय इसे भी अपनी प्रशंसा मानते हैं कि उनको यहां तिलचट्टे यानि कॉकरोच कहा जाता है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के सामने जब यह बात आई तो इस पर उन्होंने चुप्पी साध ली।
अमरीका में भारतीय समुदाय के अनेक लोग अपने को चाहे जितना शक्तिशाली कहते हो,अमरीकी प्रशासन पर अपने प्रभाव की चाहे कितनी ही डींगे हांकते हों, भारत जाकर अपनी प्रगति गाथाओं के चाहे कितने ही रेकार्ड गिनाते हों लेकिन यहां वे अपने मूल के लोगों के दुख सुख में खड़े होने के सवाल पर बगलें झांकने लगते हैं। उनमें एक सिपाही के अत्याचारों का सामना करने की भी हिम्मत नहीं दिखाई देती। यही स्थिति रही तो वह दिन भी दूर नहीं है जब विकलिक्स जैसी साइटों पर इनकी झूठी शान की पोलपट्टियां खुलेंगी और ये भारत में अपने लोगों में और यहां भी मुंह चुराते घूमेंगे। भारतीय समुदाय के यहां कुछ ही लोग हैं जो दूसरों के दुख सुख में खड़े दिखाई देते हैं और जिनकी यहां अमरीकी प्रशासन में कुछ बात है,बाकी अपने काम निकालने तक तो ठीक माने जाते है लेकिन उससे आगे उनकी कोई हैसियत नहीं दिखाई देती।
ऐसी अपमानजनक घटनाओं पर जिनसे भारत का मान सम्मान भी जुड़ा होता है, भारतीय हुक्मरानों का रवैया बहुत ही शर्मनाक देखा गया है। सच्चाई तो यह है कि भारतीय मूल के लोगों के साथ अमेरिका में जो व्यवहार होता है उसे विदेश मंत्रालय के अधिकारी जग जाहिर नहीं होने देते। शिकायतकर्ताओं की शिकायतों को भी नज़रंदाज किया जाता है। इन नस्लीय और उपेक्षापूर्ण घटनाओं से दुखी होकर एक अमेरिकी भारतीय नेता ने जोयल स्टाईन के भारतीयों के नस्लीय अपमान का सामना करने पर सुझाव मांगा कि इस पर क्या कार्रवाई करनी चाहिए तो सुझाव आए कि जैसा अफ्रीकियों ने किया था वैसा ही किया जाना चाहिए, अदालत में मानहानि का मुकदमा भी दायर किया जाए लेकिन सब चुप हो गए, मामला ठंडा हो गया और भारतीय मूल के बेशर्म नेता फिर नस्लभेदी अमरीकियों और इस्राइलियों की प्रशंसा और आवभगत में लग गए और लगे हैं।