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Friday 17 February 2023 01:55:29 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने दक्षिण अफ्रीका से 18 फरवरी को 12 चीतों को भारत लाए जाने की घोषणा करते हुए मीडिया को बताया हैकि इन चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया जाएगा। उन्होंने कहाकि चीता को भारत वापस लाने से देश की प्राकृतिक विरासत को फिरसे स्थापित करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने स्थानांतरण केलिए अपना पूरा समर्थन देने को लेकर रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायुसेना को धन्यवाद दिया। भूपेंद्र यादव ने वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्रमें मंत्रालय की विभिन्न पहलों काभी उल्लेख किया, जिनमें प्रोजेक्ट चीता, लाइफ की अवधारणा और इसकी स्थिरता, हरित विकास यानी ग्रीन क्रेडिट, मिष्टी-मैंग्रोव संरक्षण, गज उत्सव केलिए और अन्य शामिल हैं। उन्होंने कहाकि दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, पशु चिकित्सकों, मध्य प्रदेश सरकार, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और स्थानीय समुदायों के सक्रिय समर्थन एवं भागीदारी केसाथ चीता परियोजना की सफलता केबारे में भारत सरकार आशांवित है।
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बतायाकि भारतीय वन क्षेत्रमें अंतिम चीतों को साल 1947 में दर्ज किया गया था, जहां छत्तीसगढ़ के कोरिया जिला स्थित साल के जंगलों में तीन चीतों को गोली मार दीगई थी, भारत में चीतों की संख्या में कमी के मुख्य कारणों में बड़े पैमाने पर वन से जानवरों को पकड़ने, इनाम व खेल केलिए शिकार, व्यापक आवास रूपांतरण केसाथ चीतों के शिकार क्षेत्रमें कमी शामिल थी और साल 1952 में चीतों को विलुप्त प्रजाति घोषित कर दिया गया था। उन्होंने बतायाकि भारत में चीता पुनर्वास परियोजना का लक्ष्य भारत में व्यवहार्य चीता मेटापॉपुलेशन स्थापित करना है, जो चीता को एक शीर्ष शिकारी के रूपमें अपनी कार्यात्मक भूमिका निभाने की सुविधा देता है और चीता को उसकी ऐतिहासिक सीमा के भीतर विस्तार केलिए जगह प्रदान करता है, जिससे उसके वैश्विक संरक्षण के प्रयासों में योगदान मिलता है।
चीता पुनर्वास परियोजना के प्रमुख उद्देश्य हैं-अपनी ऐतिहासिक सीमा के भीतर सुरक्षित आवासों में प्रजनन करने वाली चीता की आबादी स्थापित करने और उन्हें मेटापॉपुलेशन के रूपमें प्रबंधित करना। खुले जंगल और सवाना प्रणालियों को बहाल करने के उद्देश्य से संसाधनों को इकट्ठा करने केलिए चीता को एक करिश्माई प्रमुख और अम्ब्रेला प्रजाति के रूपमें उपयोग करना, जो इन इकोसिस्टम्स से जैव विविधता और वातावरण सेवाओं को लाभांवित करेगा, स्थानीय सामुदायिक आजीविका को बढ़ाने केलिए पर्यावरण-विकास और पर्यावरण-पर्यटन के आगामी अवसर का उपयोग करना। मुआवजे, जागरुकता और प्रबंधन की कार्रवाई के माध्यम से चीता संरक्षण क्षेत्रों के भीतर चीता या अन्य वन्यजीवों के स्थानीय समुदायों केसाथ किसीभी टकराव को तेजी से प्रबंधित करना।
भारत सरकार ने इस संबंध में नामीबिया केसाथ जी2जी परामर्शी बैठकें शुरू कीं, जिसके परिणामस्वरूप चीता संरक्षण केलिए 20 जुलाई 2022 को दोनों देशों केबीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए। इसके बाद एक पहले वन्य से वन्य अंतरमहाद्वीपीय ऐतिहासिक स्थानांतरण के रूपमें 17 सितंबर 2022 को आठ चीतों को नामीबिया से भारत लाया गया। इन चीतों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्वारंटाइन बोमास में छोड़ा था। अनिवार्य क्वारंटाइन अवधि केबाद इन चीतों को चरणबद्ध तरीके से बड़े बाड़े में छोड़ दिया गया है। सभी आठ अलग-अलग चीते प्राकृतिक व्यवहार, शरीर की स्थिति, गतिविधि पैटर्न और समग्र फिटनेस के मामले में अच्छी स्थिति में हैं। भारत में चीता पुनर्वास कार्ययोजना के अनुसार कम से कम अगले 5 वर्ष केलिए अफ्रीकी देशों से हर साल 10-12 चीतों का स्थानांतरण करने की जरूरत है। इस संबंध में चीता संरक्षण के क्षेत्रमें सहयोग केलिए भारत सरकार दक्षिण अफ्रीका केसाथ साल 2021 से द्विपक्षीय वार्ता कर रही थी। यह वार्ता जनवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर केसाथ सफलतापूर्वक संपन्न हुई।
समझौता ज्ञापन के प्रावधानों केतहत 18 फरवरी को 7 नर, 5 मादा चीतों की पहली खेप को दक्षिण अफ्रीका से भारत स्थानांतरित किया जाएगा। दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को ग्वालियर और उसके बाद हेलीकाप्टरों के माध्यम से कूनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करने का काम भारतीय वायुसेना करेगी। अंतर महाद्वीपीय स्थानांतरण अभ्यास के दौरान चीता विशेषज्ञों, पशु चिकित्सकों और वरिष्ठ अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल चीतों केसाथ जाएगा। भारत में आगमन केबाद सभी चीतों को अनिवार्य क्वारंटाइन अवधि को पूरा करने केलिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान में विशेष रूपसे बनाए गए बाड़ों में रखा जाएगा और इनकी गहन निगरानी की जाएगी। चीता पुनर्वास पर भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना को आगे बढ़ाने केलिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 20 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, पशु चिकित्सकों और वन अधिकारियों के साथ एक परामर्शी कार्यशाला की योजना बनाई गई है। कार्यशाला के परिणाम बेहतर चीता प्रबंधन का रास्ता दिखाएंगे और भारत में चीता की मेटापॉपुलेशन को सफलतापूर्वक स्थापित करने में सहायता करेंगे।