दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। हिंदुस्तान के शीर्षतम राजनेता, नौकरशाह, प्रचंड साधू सन्यासी और मीडिया तक 'नीरा राडियाओं' के कब्जे में हैं। यह चित्र इसी सच्चाई को प्रकट करता है। एक ब्रिटिश महिला दलाल और जासूस नीरा राडिया की भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और देश के प्रभावशाली साधू संतों तक भी कितनी नज़दीक और आसान पहुंच है, इस फोटो में देखिए! यह वही नीरा राडिया है, जो भारतीय राजनीतिज्ञों और यहां की मीडिया और देश की सल्तनत को अपनी उंगलियों पर नचाती आ रही है। हिंदुस्तान की भोली-भाली जनता को नहीं पता है कि जिन्हें वह देशभक्त, अपना आदर्श और हितरक्षक मानती है, वे किन-किनके साथ खड़े होकर हिंदुस्तान के निर्माण की बजाय उसे खोखला कर रहे हैं।
सीधी सी समझने वाली बात है कि केनिया में भारतीय मूल के दंपत्ति के यहां जन्मी, इंग्लैंड आकर भारतीय मूल के एक गुजराती व्यवसायी जनक राडिया से शादी करने वाली, तीन संतानों की मां और बाद में पति से अलग होकर हिंदुस्तान में घुसपैठियों और जासूसों के असली रूप में अपना जाल-बट्टा फैलाकर, ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त नीरा राडिया हिंदुस्तान के सत्ता प्रतिष्ठानों में जरूर गुल खिला रही होगी। यह समझना भी मुश्किल नहीं है कि राडिया के 'मिशन' को जिन्होंने हिंदुस्तान में फलने-फूलने दिया, वे भी कोई मामूली आदमी नहीं होंगे और यदि उनमें अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान नेता हों, तो नीरा राडिया के 'खेल' पर कौन शक करेगा? क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी की ईमानदारी, उनके राष्ट्रवाद और उनपर देश को बड़ा नाज़ और भरोसा जो है। देश के निर्माण के नाम पर देश को बर्बादी के कगार पर ले जाकर खड़ा करने वाले कई फैसले और महाघोटाले इनके भी कार्यकाल में हुए हैं।
आप माने या न मानें, देश में स्पेक्ट्रम घोटाले की नींव इन्हीं के कार्यकाल में पड़ी थी, जिसको मनमोहन सिंह सरकार में खूब फलने-फूलने का मौका मिला और अब यह ज्वालामुखी बनकर एक-एक को भस्म करता जा रहा है। यह चित्र काफी पहले दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध संत के यहां लिया गया है और बहुत पहले वहां की एक क्षेत्रीय पत्रिका में भी छप चुका है। हो सकता है कि उस समय इस ग्रुप चित्र को लेने के पीछे यह मंशा नहीं रही हो कि नीरा राडिया कोई विवादास्पद दलाल या कोई जासूस है, जो अटल बिहारी वाजपेयी के बराबर में खड़ी है। इस ग्रुप फोटो में मौजूद सभी लोग सहज भाव में और किसी के आग्रह पर अपना चित्र देते दिख रहे हैं। इसे इत्तेफाक कह सकते हैं कि यह चित्र आज नीरा राडिया की पहुंच और उसके मिशन को समझने में और राजनेताओं की 'इन जैसियों' और 'जैसों' से निकटता को प्रतिबिंबित एवं स्थापित कर रहा है।
हिंदुस्तान आकर हरियाणा के नेता राव वीरेंद्र सिंह के पोते के साथ एक पीआर एजेंसी शुरू करने वाली नीरा राडिया रातों-रात सत्ता प्रतिष्ठानों और उद्योगपतियों की आवश्यकता बन गई। आज नीरा राडिया का सर्वत्र साम्राज्य है, जिसमें अनेक नेता, नौकरशाह, उद्योगपति और मीडियावाले आते हैं और जाते हैं। इंग्लैण्ड में रहने के दौरान उसने सुन रखा था कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व में कई बड़ी कमजोरियां हैं, जिनका आर्थिक घोटालेबाज़ थोड़े ही प्रयास में बड़ा लाभ उठा ले जाते हैं और यदि घोटालों का भंडाफोड़ होता भी है तो भारत की संसद में थोड़े बहुत हंगामें के बाद मामला ठंडा पड़ जाता है, किसी के खिलाफ ठोस कार्रवाई भी नहीं हो पाती है, इसीलिए उसने हिंदुस्तान आकर अपना कारोबार शुरू किया। 'राडियाओं' को मालूम है कि भारतीय राजनेताओं, नौकरशाहों, दलालों और मीडियावालों से अनैतिक गठजोड़ों और भ्रष्टाचार में कमाई गई अकूत दौलत विदेशी बैंकों में जमा है और जो राजनेता, नौकरशाह, व्यवसायी और मीडियावाले अमरीका, ब्रिटेन या दूसरे देशों में जाते हैं, उनमें से अधिकांश अपने देश के लिए व्यवसायिक, सांस्कृतिक हित अथवा अध्ययन के लिए कम, बल्कि उससे ज्यादा अपने निजी हितों में सक्रिय रहकर और अपने मिशन पर रहकर अकूत दौलत जमा करने जाते हैं। इसी सोच और मिशन पर नीरा राडिया ने भारत को अपना कारोबारी क्षेत्र बनाया और हर तरह से अपेक्षा से भी ज्यादा सफलताएं हासिल कीं।
नीरा राडिया ने थोड़े ही समय में कहां-कहां सेंधमारी की, यह इसी से पता चल सकता है कि उसका देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के यहां आना-जाना था। सत्ता के शीर्ष स्तर पर इस प्रकार के उच्च संपर्कों के मायने होते हैं, उसके बाद कोई भी व्यक्ति सरकार के गुप्त स्थानों तक अपनी सहज पहुंच बना सकता है और औद्योगिक जगत के लोगों को उनके हितों की रक्षा के लिए आकर्षित कर सकता है। नीरा राडिया ने यही किया और एक समय बाद उसने देश के शीर्ष औद्योगिक घरानों को अपने जाल में फंसाया। रिलायंस समूह के चेयरमैन मुकेश अंबानी, टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा, मीडिया में एनडीटीवी की एंकर व पत्रकार बरखा दत्त, वीर सिंघवी, इंडिया टुडे के मुखौटे प्रभु चावला को अपनी पीआर एजेंसी में शामिल किया और शुरू किया अपना खेल। इस दौरान बड़े-बड़े नेता, राजनेता, उद्योगपति और पत्रकार गुलाम बनाए गए। एनडीए सरकार में मंत्री रहे अनंत कुमार, नीरा राडिया को अटल बिहारी वाजपेयी तक ले गए और आगे का रास्ता नीरा राडिया ने खुद ही तय कर लिया और कहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी के दामाद कहे जाने वाले रंजन भट्टाचार्य ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई। इससे नीरा राडिया का प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर संसद और देश के संवेदनशील मंत्रालयों की गोपनीय और महत्वपूर्ण फाइलों तक बिना बाधा के पहुंचना आसान हुआ।
नीरा राडिया का रास्ता किसी ने नहीं रोका और वह यूपीए की सरकार में भी अपना इकबाल बनाए रखने में सफल रही है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि के करीबी और स्पेक्ट्रम घोटाले के 'राजा' को मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में संचार मंत्री बनवाने में सामने आए ऑडियो टेप इस सच्चाई की काफी हद तक पुष्टि करते हैं। यह जांच का विषय है कि एक ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त महिला, भारत के शीर्ष राजनेताओं और संवेदनशील मंत्रालयों तक कैसे पहुंची? इस बात की क्या गारंटी है कि वह अमरीका, ब्रिटेन या इस्राइल के लिए जासूसी भी नहीं कर रही होगी? नीरा राडिया के पिता का व्यवसाय हवाई जहाज के कलपुर्जे बेचने का रहा है और वह स्वयं सिंगापुर एयरलाइंस की रतन टाटा के साथ असफल डील में मुख्य वार्ताकार रही है। नीरा राडिया पूरी तरह से मुकेश अंबानी की सभी कंपनियों और रतन टाटा की करीब 90 प्रतिशत कंपनियों का पीआर कार्य देख रही है। इन दोनों औद्योगिक घरानों के पास इस काम के लिए योग्य से योग्य व्यक्ति मौजूद हैं तो फिर इन्हें नीरा राडिया की जरूरत क्यों पड़ी? देश के इन दो बड़े औद्योगिक घरानों और कुछ और भी व्यवसायिक घरानों का एक ब्रिटिश महिला पर इतने बड़े विश्वास का आखिर आधार क्या है? जाहिर है कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ खड़ी इस महिला के लिए संसद, मंत्रालय, किसी भी उच्च सुरक्षायुक्त गलियारे या कार्यालय में दाखिल होना और हर दरवाज़े को इशारे में खुलवाना कोई मुश्किल काम नहीं हो सकता।
नीरा राडिया के घर की कोई जासूसी नहीं कर सकता। पिछले दिनों जब उसके घर पर स्पेक्ट्रम घोटाले के संबंध में छानबीन हुई थी, तो उसके घर पर जो बगिंग डिवाइस लगी पाई गई, वह इस्राइल की है। यह मशीन नीरा राडिया के यहां कैसे आई, क्योंकि ये खुले बाज़ार में मौजूद नहीं है। इस मशीन का इस्तेमाल इस्राइल की इंटेलीजेंस एजेंसी करती है और यह इतनी शक्तिशाली मशीन है कि उसके सामने कोई और मशीन, नीरा राडिया के घर की जासूसी नहीं कर सकती। अंदाजा लगाया जा सकता है कि राडिया चारों तरफ से उच्च सुरक्षा से लैस होकर भारत में अपने मिशन में सक्रिय है। इतनी बड़ी संलिप्तता के बावजूद उस पर एवं उससे जुड़े लोगों पर अभी तक गिरफ्तारी जैसी कोई भी कार्रवाई नहीं होना जनसामान्य में चर्चा और आश्चर्य का विषय है।
कहना न होगा कि देश के कई बड़े आर्थिक घोटाले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही हुए हैं। सत्यम कंप्यूटर का घोटाला हो या स्पेक्ट्रम घोटाला, देश पर महंगाई की मार हो या देश की सुरक्षा में सेंधमारियों की श्रंखला, कश्मीर की बद्तर हालत हो या विदेशी मामलों में भारत की विफलताएं, ये सब मनमोहन सिंह के खाते में हैं। देखा जाए तो स्पेक्ट्रम घोटाले की शुरूआत ही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय में हुई है। स्पेक्ट्रम नीति इनके समय में बनी थी, जिस पर अब तक की सरकार चलती रही। देश के कई रक्षा घोटाले भी इन्हीं के समय के माने जाते हैं। सेना में टैंक घोटाला, ताबूत घोटाला या मिसाइलों की विवादास्पद डील इन्हीं के कार्यकाल में हुई, इसलिए भाजपा और कांग्रेस को अच्छी तरह मालूम है कि देश को खोखला करने में कौन-कौन लगे हुए हैं। स्पेक्ट्रम घोटाले में जेपीसी जांच की मांग भी घोटालेबाजों को बचाने के प्रयास से ज्यादा कुछ नहीं हैं। इस मामले के सारे आरोपी देश के सामने हैं और वे सरेआम राजनीति और बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन केंद्र की मनमोहन सरकार अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए धृतराष्ट्र की तरह चुप और तमाशा देख रही है।
मीडिया का नमक खाकर राडियों के इशारों पर पेशे और देश से गद्दारी करने वाले महाप्रभुओं, बरखाओं और सिंघवियों ने अपने संपर्कों के जो साम्राज्य खड़े किए, उनकी असलियत भी सामने आ रही है। यूं तो हिंदुस्तानी मीडिया में इन तरहों के और भी बहुत से चेहरे हैं, जिनके चेहरे से नकाब उतरना बाकी है, लेकिन जिन चेहरों से नकाब उतरी है, उन्हीं के कलंक को झेलना भारतीय मीडिया के लिए मुश्किल हो रहा है। मीडिया को आज चुभते हुए व्यंग्यों, तानों और लांछनों से गुजरना पड़ रहा है। लोग व्यंग्यात्मक शैली में मीडिया वालों से पूछते हैं कि 'आप मीडिया से हैं या राडिया से?' यह शर्मनाक स्थिति नीरा राडिया की मीडिया में घुसपैठ से पैदा हुई है। मीडिया को और भी क्षेत्रों में कुछ ऐसी ही स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे मीडिया वाले भी यहां दिन-रात सक्रिय हैं, जो देश में अलगाववादी और देशद्रोही शक्तियों के लिए छोटे-बड़े स्तर पर काम करते आ रहे हैं। वे विघटनकारियों को उनके मिशन में सहयोग देने के लिए किसी न किसी रूप में पगार पाते हैं। पेड न्यूज़ भी ऐसे ही मीडियावालों की उपज है। अपनी वरिष्ठता और संपर्कों को भुनाने में ये कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। मीडिया के कुछ लोग अलगाववादियों और दूसरे देशों की खुफिया एजेंसियों को देश की संवेदनशील सूचनाएं और विजुअल्स उपलब्ध कराते आ रहे हैं।
उदाहरण के लिए कारगिल संघर्ष के दौरान सरहद पर न्यूज़ कवरेज करने गए इलेक्ट्रानिक मीडिया के विजुअल्स तुरंत पाकिस्तानी सेना के पास पहुंचे और पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र के उन स्थानों पर सटीक और सफल निशाना साधा। भारतीय सेना को मीडिया के ऐसे न्यूज़ कवरेज से नुकसान उठाना पड़ा। यदि आपको याद हो तो कारगिल ऑपरेशन में लगे भारतीय सैनिक अधिकारियों ने उस समय यह सवाल उठाया था कि पाकिस्तानी सेना को भारतीय क्षेत्र के गुप्त बंकर किस स्रोत से पता चल रहे हैं। भारत सरकार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया कि सीमा पर और घाटी में न्यूज़ कवरेज के लिए जाने वाले कौन हैं। इसी प्रकार भारत सरकार देश-विदेश के पत्रकारों को पीआईबी की मान्यता प्रदान करने में इस तथ्य की अनदेखी करती आ रही है कि पत्रकार के वेष में खतरनाक तत्व भी मान्यता हासिल किए हुए हैं। वे लोग पत्रकार की मान्यता हासिल करने में सफल हो जाते हैं, जिनका संबंध देशद्रोहियों और दूसरे देशों की खुफिया एजेंसियों से है। जांच रिपोर्ट के अनुसार राजीव गांधी के हत्यारों में एक हत्यारा तो मीडिया का ही कार्ड लेकर उन तक पहुंचा था और विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों, राष्ट्राध्यक्षों के संवाददाता सम्मेलनों में उन पर जूता फेकना मीडियावाले का कार्य नहीं है, ये वो ही हैं और उन्हें ऐसा करने पर महिमामंडित या उन्हें मंजूर नहीं किया जा सकता है। ऐसा इसीलिए हो रहा है, क्योंकि पेशेवर और सुरक्षा पड़ताल में गंभीर लापरवाहियां बरती जा रही हैं या फिर ऐसा साजिशन किया जा रहा है। राडिया, हेडली, मीरवाइज़, यासीन मलिक, अरूंधति राय या इन जैसी प्रकृति के दूसरे चेहरे अपने मिशन के लिए मीडिया में इस कमजोरी का पूरा लाभ उठा रहे हैं।
देश में यह निराशा व्याप्त है कि बड़े-बड़े घोटाले सामने आने के बावजूद अभी तक किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश को जो भरोसा दिए जा रहे हैं, वास्तव में उसकी असली परिभाषा एक धोखा है। राजनीति से उनका कोई वास्ता नहीं है और अपने मंत्रियों और नौकरशाहों पर उनकी कोई पकड़ नहीं है। वह एक ऐसे दंतविहीन और विष रहित भुजंग की तरह माने जाते हैं, जिनसे कोई भी खिलवाड़ कर सकता है। वे स्वयं अपने को ईमानदार कह सकते हैं, लेकिन बेईमानों की सबसे बड़ी फौज उनके ही नेतृत्व में लूट खसोट मचाए हुए है। उनके कार्यकाल में हो रहे घोटाले और देश के विभिन्न हिस्सों में विघटनकारियों के उत्पात रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। हिंदुस्तान में राजनीतिक दल शेर की खाल में रंगे सियारों से अटे पड़े हैं। आज लीडरशिप का घोर संकट है, इसीलिए देश अत्यंत नाजुक दौर से गुजर रहा है। फिलहाल नागनाथ और सांपनाथ में से ही किसी एक के साथ चलने की जनता की मजबूरी हो गई है। अफसोस, कि सौ करोड़ की आबादी में एक भी देश का लीडर नहीं निकल पाया, इसलिए राडियाओं की भारत में चांदी ही चांदी है।