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Saturday 6 May 2023 11:50:37 AM
नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने वैशाख बुद्ध पूर्णिमा श्रद्धा और भक्तिभाव केसाथ मनाई एवं हिमालयी बौद्ध सांस्कृतिक संघ के समन्वय से राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। संग्रहालय में ही पवित्र बुद्ध से जुड़े स्मृतिचिन्ह रखे हुए हैं। संस्कृति और विदेश मामलों की राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी भी कार्यक्रम में शामिल हुईं। उन्होंने कहाकि बुद्ध का शांति, अहिंसा और सत्य का मार्ग आजभी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 2500 साल पहले था। उन्होंने कहाकि हमें सिर्फ इसका स्मरण करने की ही आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसे उसीतरह से बढ़ावा देने की जरूरत है, जैसे यह सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे लिए अनुकरणीय रूपसे प्रेरणास्रोत है। मीनाक्षी लेखी ने वैशाख बुद्ध पूर्णिमा पर राष्ट्रीय संग्रहालय में मौजूद लोगों से बुद्ध के विचारों को आत्मसात करने का आह्वान किया।
राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने भगवान बुद्ध के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहाकि हमारे सभी विचार सुगंध की तरह हैं, इसीलिए हम जितना सकारात्मक होंगे, हमारे विचार भी वैसे ही होंगे, जिनका लाभ स्वयं केसाथ अन्य लोग या हमसे जुड़े लोगों को भी सकारात्मक ऊर्जावान बनाएंगे। उन्होंने कहाकि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान कई भिक्षु भगवान बुद्ध की शिक्षा लेकर कई देशों में गए, इस संबंध में हम सभी रक्त, विचार और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहाकि संदेश समान रहता है, विचार और कर्म में दयालु बनो और हर किसी के जीवन में सही कार्य का पालन करो। संस्कृति मंत्रालय, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ और हिमालयी बौद्ध सांस्कृतिक संघ केसाथ शाक्यमुनि के आशीर्वाद से बुद्ध का जन्म, उनके ज्ञान प्राप्त करने का दिन और महापरिनिर्वाण दिवस को मनाने केलिए यह कार्यक्रम हुआ था। राष्ट्रीय संग्रहालय में भगवान बुद्ध से जुड़े स्मृतिचिन्ह रखे जाने से पहले राष्ट्रीय एकता, सद्भाव और विश्वशांति केलिए प्रार्थना की गई थी।
वैशाख बुद्ध पूर्णिमा पर कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और भिक्षुओं के मंगलाचरण प्रार्थना केसाथ हुई। डेपुंग गोमांग मठ के सम्मानित अतिथि कुंडलिंग तक्षक छोकत्रुल रिनपोछे की ओरसे धम्म वार्ता प्रस्तुत की गई। उन्होंने कहाकि भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का सार हिमालय के ग्लेशियरों के मीठे पानी की तरह ताजा और महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहाकि उनकी शिक्षाओं का संरक्षण, अध्ययन और अभ्यास करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे समकालीन दुनिया का दर्द दूर करने केलिए आवश्यक हैं। उन्होंने कहाकि अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार दूसरों की सेवा करना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डॉ विनय सहस्रबुद्धे कार्यक्रम में विशेष अतिथि थे। उन्होंने कहाकि भगवान बुद्ध भारत की अवधारणा के केंद्र में हैं, भारत और बुद्ध गहन रूपसे जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहाकि भारतीयों में बुद्ध की शिक्षाएं और विचार आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराओं में अद्वितीय हैं।
संस्कृति मंत्रालय केतहत विभिन्न स्वायत्त बौद्ध संगठनों और अनुदान प्राप्त संस्थानों ने भी इस अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए। केंद्रीय बौद्ध अध्ययन संस्थान लेह के कर्मचारियों और छात्रों ने लेह के पोलो ग्राउंड में लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन और लद्दाख गोन्पा एसोसिएशन के भव्य समारोह में भाग लिया, छात्रों ने मंगलाचरण किया, बुद्ध के पहले उपदेश और वितरण को दर्शाने वाली दो झांकियां भी प्रदर्शित कीं। केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान सारनाथ में बुद्ध जयंती समारोह मनाया गया, इसके बाद शोध पत्रिका ‘धिह’ के 63वें संस्करण का विमोचन किया गया। नव नालंदा महाविहार नालंदा बिहार के भिक्षु और छात्रों ने बुद्ध मंदिर में पारंपरिक पूजा की, इसके बाद 'बौद्ध धर्म और बिहार' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन कल्चर स्टडीज दाहुंग अरुणाचल प्रदेश की ओरसे पूजा समारोह और अन्य अनुष्ठानों के प्रदर्शन केसाथ वाद-विवाद प्रतियोगिता भी हुई।
जेंटसे गादेन रबग्याल लिंग मठ अरुणाचल प्रदेश ने अपने भिक्षु छात्रों के माध्यम से विश्वशांति प्रार्थना और मंगलचरण का आयोजन किया। बुद्ध जयंती मनाने केलिए तिब्बत हाउस में आकांक्षी बोधिसत्व संस्कार का आयोजन किया गया। तवांग मठ अरुणाचल प्रदेश ने बुद्ध के उपदेश शांति और शांति विषय पर भाषण-सह-व्याख्यान प्रतियोगिता आयोजित करके इस शुभ अवसर को मनाया। लाइब्रेरी ऑफ़ तिब्बतन वर्क्स एंड आर्काइव्स धर्मशाला हिमाचल प्रदेश ने पशु चेतना सम्मेलन आयोजित किया। वैशाख बुद्ध पूर्णिमा विश्वभर के बौद्ध अनुयायियों केबीच वर्ष का सबसे पवित्र दिन माना जाता है, क्योंकि यह तथागत भगवान गौतम बुद्ध के जीवन की तीन मुख्य घटनाओं-जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का प्रतीक है। भारत में बौद्ध धर्म की उत्पत्ति केबाद से यह दिन विशेष महत्व रखता है। वर्ष 1999 में संयुक्तराष्ट्र ने 'यूएन डे ऑफ वैशाख' के रूपमें इसे मान्यता दी थी।