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Friday 12 May 2023 05:28:41 PM
नई दिल्ली। औपनिवेशिक काल के कारागार अधिनियम की समीक्षा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के निर्णायक मार्गदर्शन में आज की ज़रूरतों और सुधार पर ज़ोर देने केलिए कारागार अधिनियम को संशोधित करने का निर्णय लिया गया है। वर्तमान कारागार अधिनियम-1894 आज़ादीपूर्व का अधिनियम है और लगभग 130 वर्ष पुराना है। यह अधिनियम मुख्य रूपसे अपराधियों को हिरासत में रखने, जेलों में अनुशासन और व्यवस्था लागू करने पर केंद्रित है, इसमें कैदियों के सुधार और पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं है। बीते कुछ दशक में विश्वस्तर पर जेलों और कैदियों के बारेमें एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ है। आज जेलों को सज़ा के स्थान के रूपमें नहीं, बल्कि ऐसे सुधारात्मक और परिवर्तन करने वाले संस्थानों के रूपमें देखा जाता है, जहां कैदियों के व्यवहार में बदलाव लाकर उन्हें कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूपमें समाज के साथ दोबारा जोड़ा जाता है।
भारतीय संविधान के अनुसार कारागार या हिरासत में लिएगए व्यक्ति एक राज्य के विषय हैं। जेल प्रबंधन और कैदियों के प्रशासन की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकारों की है, जो स्वयं इस संबंध में वैधानिक प्रावधान बनाने में सक्षम हैं। हालांकि आपराधिक न्याय प्रणाली में कुशल जेल प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए भारत सरकार इस संबंध में राज्यों एवं संघशासित प्रदेशों की सहायता करने को बहुत महत्व देती है। कुछ वर्ष में गृह मंत्रालय ने देखा हैकि मौजूदा कारागार अधिनियम में कई खामियां हैं, जो कुछ ऐसे राज्यों को छोड़कर, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जेल प्रशासन को नियंत्रित करता है, जिन्होंने नए कारागार अधिनियम लागू किए हैं। मौजूदा अधिनियम में सुधारोन्मुखी प्रावधानों के अभाव के अलावा आधुनिक समय की जरूरतों और जेल प्रबंधन की आवश्यकताओं के अनुरूप अधिनियम को संशोधित और अपग्रेड करने की आवश्यकता महसूस की गई।
गृह मंत्रालय ने कारागार अधिनियम-1894 के संशोधन का ज़िम्मा पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो को सौंपा और ब्यूरो ने राज्य कारागार प्रशासन, सुधार विशेषज्ञों आदि से विस्तृत विचार-विमर्श केबाद इसका एक प्रारूप तैयार किया है। वर्तमान कारागार अधिनियम की मौजूदा कमियों, जिनमें जेल प्रबंधन में प्रौद्योगिकी का उपयोग, पैरोल, फर्लो प्रदान करने, अच्छे आचरण को बढ़ावा देने केलिए कैदियों की सजा माफ करने, महिला या ट्रांसजेंडर कैदियों केलिए विशेष प्रावधान, कैदियों की शारीरिक और मानसिक कुशलता के प्रावधान करने तथा कैदियों के सुधार और पुनर्वास पर ध्यान आदि शामिल हैं को दूर करने के उद्देश्य से गृह मंत्रालय ने एक व्यापक आदर्श कारागार अधिनियम-2023 को अंतिम रूप दिया है, जो राज्यों केलिए मार्गदर्शक दस्तावेज के रूपमें काम कर सकता है। इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने कारागार अधिनियम-1894, कैदी अधिनियम-1900 और कैदियों का स्थानांतरण अधिनियम-1950 की भी समीक्षा की है और इन अधिनियमों के प्रासंगिक प्रावधानों को आदर्श कारागार अधिनियम-2023 में शामिल कर लिया है।
राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन आदर्श कारागार अधिनियम-2023 में अपनी ज़रूरत के अनुसार संशोधन करके इसे अपने यहां लागू कर सकते हैं और मौजूदा तीन अधिनियमों को निरस्त कर सकते हैं। नए मॉडल कारागार अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं में हैं-सुरक्षा मूल्यांकन और कैदियों को अलग-अलग रखने, वैयक्तिक सजा योजना बनाने केलिए प्रावधान, शिकायत निवारण, कारागार विकास बोर्ड, बंदियों केप्रति व्यवहार में परिवर्तन, महिला कैदियों, ट्रांसजेंडर आदि को अलग रखने का प्रावधान, कारागार प्रशासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी के उपयोग का प्रावधान, अदालतों केसाथ वीडियो कॉंफ्रेंसिंग, जेलों में वैज्ञानिक और तकनीकी पहल आदि का प्रावधान, जेलों में प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे मोबाइल फोन आदि का प्रयोग करने वाले बंदियों एवं जेल कर्मचारियों केलिए दंड का प्रावधान।
आदर्श कारागार अधिनियम-2023 की विशेषताओं में उच्च सुरक्षा जेल, ओपन जेल आदि की स्थापना एवं प्रबंधन के संबंध में प्रावधान, खूंखार और आदतन अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों से समाज को बचाने का प्रावधान, कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने, अच्छे आचरण को बढ़ावा देने केलिए पैरोल, फर्लो और समय से पहले रिहाई आदि के लिए प्रावधान, कैदियों के व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास और उन्हें समाज से दोबारा जोड़ने पर बल देना जैसे प्रयासों को प्रमुख रूपसे शामिल किया गया है। गौरतलब हैकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार देश में हर क्षेत्र में सुधार केप्रति कटिबद्ध है और सरकार के इस निर्णय से देशभर के कारागारों के प्रबंधन और कैदियों के प्रशासन में सुधार और पारदर्शिता आएगी।