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Friday 12 May 2023 06:15:46 PM
गांधीनगर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गांधीनगर में अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंघ के 29वें द्विवार्षिक अखिल भारतीय शिक्षक संघ अधिवेशन में भाग लिया, जिसका विषय 'शिक्षक-शिक्षा परिवर्तन के केंद्र बिंदु' था। प्रधानमंत्री ने ऐसे समय में शिक्षकों के महान योगदान पर प्रकाश डाला, जब भारत अमृतकाल में विकसित भारत के संकल्प केसाथ अग्रसर है। प्राथमिक शिक्षकों की मदद से गुजरात के मुख्यमंत्री के रूपमें शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन के अनुभव को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने बतायाकि बीच में ही स्कूल छोड़ने की दर 40 प्रतिशत से घटकर 3 प्रतिशत से भी कम हो गई है, यह सूचना गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने दी है। प्रधानमंत्री ने कहाकि गुजरात के शिक्षकों केसाथ उनके अनुभव ने उन्हें राष्ट्रीय स्तरपर एक नीतिगत ढांचा तैयार करने में भी मदद की। उन्होंने मिशन मोड में लड़कियों केलिए स्कूलों में शौचालय निर्माण का उदाहरण दिया। उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों में विज्ञान शिक्षा शुरू करने की भी बात कही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बतायाकि विश्व के नेताओं के मन में भारतीय शिक्षकों केलिए उच्च सम्मान का भाव है। उन्होंने कहाकि जबभी वह विदेश के गणमान्य व्यक्तियों से मिलते हैं तो उन्हें अक्सर यह सुनने को मिलता है। प्रधानमंत्री ने याद कियाकि कैसे भूटान के राजा और सऊदी अरब के बादशाह और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने अपने भारतीय शिक्षकों के बारेमें सम्मान के भाव से बात की। प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्हें आजीवन छात्र होने पर गर्व है और उन्होंने कहाकि समाज में जो कुछभी होता है, उसे देखना सीख लिया है। प्रधानमंत्री ने शिक्षकों केसाथ अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहाकि 21वीं सदी के परिवर्तनशील समय में भारत की शिक्षा प्रणाली, शिक्षक और छात्रों में बदलाव आ रहा है। उन्होंने कहाकि पहले संसाधनों और बुनियादी ढांचे के मामले में चुनौतियां थीं, लेकिन छात्रों ने बड़ी चुनौती पेश नहीं की, अब जबकि बुनियादी ढांचे और संसाधनों की चुनौतियों का धीरे-धीरे समाधान किया जा रहा है, छात्रों में असीमित जिज्ञासा है। उन्होंने कहाकि ये आत्मविश्वासी और निर्भीक युवा छात्र शिक्षक को चुनौती देते हैं और चर्चा को पारंपरिक सीमाओं से परे नए विस्तार तक ले जाते हैं।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि शिक्षकों को अपडेट रहने केलिए प्रेरित किया जाता है, क्योंकि छात्रों केपास जानकारी के अनेक स्रोत होते हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि हमारी शिक्षा प्रणाली का भविष्य इस बातपर निर्भर करता हैकि इन चुनौतियों का समाधान शिक्षक कैसे करते हैं। उन्होंने कहाकि इन चुनौतियों को शिक्षकों को व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के अवसरों के रूपमें देखना चाहिए, ये चुनौतियां हमें शिक्षण, गैर शिक्षण और पुनः शिक्षण का अवसर देती हैं। उन्होंने शिक्षकों का आह्वान कियाकि वे शिक्षक केसाथ विद्यार्थियों के मार्गदर्शक और विश्वसनीय परामर्शदाता बनें। प्रधानमंत्री ने दोहरायाकि दुनिया की कोईभी तकनीक यह नहीं सिखा सकतीकि किसीभी विषय की गहन समझ कैसे प्राप्त की जाए और जब सूचना की अधिकता होती है तो मुख्य विषय पर ध्यान केंद्रित करना छात्रों केलिए चुनौती बन जाता है। उन्होंने कहाकि इस विषय पर गहन शिक्षण के माध्यम से एक तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि 21वीं सदी में छात्रों के जीवन में शिक्षकों की भूमिका पहले से भी अधिक सार्थक हो गई है। उन्होंने कहाकि यह हर माता-पिता की इच्छा होती हैकि उनके बच्चों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पढ़ाएं और इन पर उनकी पूरी उम्मीदें टिकी होती हैं।
प्रधानमंत्री ने कहाकि छात्र न केवल पढ़ाए जा रहे विषय की समझ प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि धैर्य, साहस, स्नेह और निष्पक्ष व्यवहार केसाथ संवाद करना और अपने विचारों को प्रस्तुत करना भी सीख रहे हैं। प्रधानमंत्री ने प्राथमिक शिक्षकों के महत्व पर प्रकाश डाला और उल्लेख कियाकि वे परिवार के अतिरिक्त उन पहले व्यक्तियों में से हैं, जो बच्चे केसाथ सर्वाधिक समय बिताते हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि एक शिक्षक की जिम्मेदारियों का अनुभव राष्ट्र की भविष्य की पीढ़ियों को सुदृढ़ बनाएगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारेमें प्रधानमंत्री ने नीति निर्माण में लाखों शिक्षकों के योगदान पर गर्व व्यक्त किया। उन्होंने कहाकि आज भारत 21वीं सदी में आवश्यकताओं के अनुरूप नई व्यवस्थाएं बना रहा है और इसे ध्यान में रखते हुए एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गई है। उन्होंने कहाकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति पुरानी अप्रासंगिक शिक्षा प्रणाली का स्थान ले रही है, जो छात्रों को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित रखती थी, नई नीति व्यावहारिक समझ पर आधारित है। प्रधानमंत्री ने अपने बचपन के सीखने के व्यक्तिगत अनुभवों को याद किया और सीखने की प्रक्रिया में शिक्षक की व्यक्तिगत भागीदारी के सकारात्मक लाभ पर बल दिया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा के प्रावधान पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि भलेही भारत में 200 से अधिक वर्ष तक अंग्रेजों का शासन रहा हो, लेकिन अंग्रेजी भाषा मुट्ठीभर आबादी तक सीमित है। उन्होंने उल्लेख कियाकि क्षेत्रीय भाषाओं में अपने विषय की शिक्षा ग्रहण करने वाले प्राथमिक शिक्षकों को इस बात से परेशानी अनुभव हो रही है, क्योंकि अंग्रेजी में शिक्षण को प्राथमिकता दी गई, क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देनेवाले शिक्षकों की नौकरियां समाप्ति के कागार पर चली गईं, लेकिन वर्तमान सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षण की शुरुआत करके इस परिदृश्य को बदल दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि सरकार क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा पर जोर दे रही है, जिससे शिक्षकों के जीवन में भी सुधार होगा। प्रधानमंत्री ने ऐसा वातावरण बनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जहां लोग शिक्षक बनने केलिए स्वतः आगे आएं। उन्होंने व्यावसाय के रूपमें शिक्षक की स्थिति को आकर्षक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहाकि प्रत्येक शिक्षक को अपने हृदय की गहराई से एक शिक्षक होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री के रूपमें अपने कार्यकाल के दौरान अपनी दो व्यक्तिगत इच्छाओं को याद किया, पहला अपने स्कूल के दोस्तों को मुख्यमंत्री आवास पर बुलाना और दूसरा अपने सभी शिक्षकों को सम्मानित करना।
नरेंद्र मोदी ने कहाकि आजभी वह अपने शिक्षकों के संपर्क में हैं। उन्होंने शिक्षकों और छात्रों केबीच व्यक्तिगत संबंधों में कमी की प्रवृत्ति पर क्षोभ व्यक्त किया, हालांकि उन्होंने कहाकि खेल के क्षेत्र में यह बंधन अभीभी मजबूत है। प्रधानमंत्री ने कहाकि छात्रों और स्कूल केबीच का संबंध टूट गया है, क्योंकि छात्र स्कूल छोड़ने केबाद स्कूल के बारेमें भूल जाते हैं, यहां तककि प्रबंधन को भी संस्था की स्थापना की तारीख की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहाकि स्कूल का जन्मदिन मनाने से स्कूलों और छात्रों केबीच अलगाव दूर होगा। स्कूलों में उपलब्ध कराए जानेवाले भोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरा समाज एक साथ आ रहा है, ताकि कोईभी बच्चा स्कूल में भूखा न रहे। उन्होंने मध्याह्न भोजन के दौरान बच्चों को भोजन परोसने केलिए गांवों के बुजुर्गों को आमंत्रित करने काभी सुझाव दिया, ताकि बच्चों में परंपराएं विकसित होती रहें और वे परोसे जा रहे भोजन के बारेमें आपसी बातचीत के माध्यम से एक इंटरैक्टिव अनुभव भी प्राप्त कर सकें। प्रधानमंत्री ने एक जनजातीय क्षेत्र में शिक्षिका के योगदान को याद किया, जो बच्चों के रूमाल बनाने केलिए अपनी पुरानी साड़ी के हिस्सों को काटती थी और किनारों पर सिलाई करती थी, इसका उपयोग चेहरे या नाक पोंछने केलिए किया जा सकता था।
प्रधानमंत्री ने एक जनजातीय स्कूल का एक उदाहरण भी साझा किया, जहां एक शिक्षक ने स्कूल में एक दर्पण रखा, ताकि बच्चे अपने को देख सके और स्कूल की गरिमा के अनुरूप तैयार होकर आएं। प्रधानमंत्री ने कहाकि इस सूक्ष्म बदलाव से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने में बड़ा अंतर आया। संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने रेखांकित कियाकि शिक्षकों का एक छोटा सा बदलाव युवा छात्रों के जीवन में बड़े बदलाव ला सकता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि सभी शिक्षक भारतीय परंपराओं को विकसित करेंगे, जहां गुरु या शिक्षक को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है और ये शिक्षक विकसित भारत के सपनों को साकार करेंगे। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, सांसद सीआर पाटिल, केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला, केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ मुंजपरा महेंद्रभाई, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष रामपाल सिंह और गुजरात सरकार के मंत्री उपस्थित थे।