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बुलंदशहर। उत्तर प्रदेश में जन सामान्य की जरूरी आवश्यकताओं और समस्याओं के निस्तारण में नागरिक प्रशासन की विफलताओं का अंबार लगा है। कभी जो समस्याएं चुटकी में निपटा दी जाती थीं उन पर भी स्थानीय प्रशासन काबू पाने में विफल साबित हो रहा है। यह जिला प्रशासन की विफलता का एक पुख्ता प्रमाण है कि वह बिजली की समस्या को दूर करने की मांग को लेकर गांव के एक खेत में तीन दिन से भूख हड़ताल पर बैठे श्रीराम बंसल को इस बात से संतुष्ट करने में विफल साबित हो रहा है कि उनकी बिजली की समस्या का समाधान हो जाएगा। जिला प्रशासन की क्लास वन और क्लास टू अधिकारियों की फौज की उपयोगिता यहां शून्य नजर आ रही है और वह श्रीराम बंसल की भूख हड़ताल से निपटने के लिए थर्ड डिग्री इस्तेमाल करने पर उतर आई है। प्रदेश की जनता का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि बिजली मांगने पर जिला प्रशासन समस्या के समाधान की बजाए धमका रहा है और दरोगा को भेजकर जेल भेजने को उतारू है।
यह समस्या अकेले श्रीराम बंसल की नहीं है बल्कि पूरे गांव इलाके की है जिस पर बिजली विभाग के अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया और शिकायतकर्ताओं को टरकाते रहे। डीएम बुलंदशहर शशि भूषण लाल सुशील के पास पहुंचे तो वह भी बोदे और असहाय ही साबित हुए,जिसके बाद गांव के लोगों को आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ा। ये अधिकारी श्रीराम बंसल को भूख हड़ताल से मर जाने देते यदि उत्तर प्रदेश की चक्रवर्ती मुख्यमंत्री मायावती का 27 फरवरी को बुलंदशहर में औचक निरीक्षण का प्रस्तावित कार्यक्रम नहीं होता। जिलाधिकारी सहित जिला प्रशासन के अधिकारियों को अपनी बीवी, बच्चों, मायावती के भाई भतीजों और रिश्तेदारों को दिल्ली में पिकनिक मनवाने या शॉपिंग कराने से ही फुर्सत नहीं मिलती है इसलिए जिले की ऐसी समस्याएं एक नहीं बल्कि हजार हों उनमें उनकी कोई दिलचस्पी या चिंता नहीं रहती या दिखाई देती है। उन्हें मालूम है कि उनकी नौकरी लखनऊ में एनेक्सी के पंचम तल से चलती है न कि श्रीराम बंसल जैसे लोगों से। जिलाधिकारी बुलंदशहर शशि भूषण लाल सुशील की प्रशासनिक योग्यता पर यहीं पर ही एक प्रश्न चिन्ह लग जाता है कि वे कैसे डीएम हैं और किस तरह जिला चला रहे हैं कि इतनी छोटी समस्या का समाधान भी उनसे बाहर है? ध्यान रहे कि जिलाधिकारी भी एक प्रकार से जिले का मुख्यमंत्री कहलाता है और उसके अधीन जिले की संपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था रहती है।
इकसठ वर्षीय श्रीराम बंसल आईआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रह चुके हैं और अपने गांव खंडोई, ब्लॉक उंचागांव, थाना नरसेना, सब डिवीजन सियाना के लिए केवल यह मांग कर रहे हैं कि यहां सुचारू रूप से बिजली की आपूर्ति की जाए और जो अव्यवस्था फैली हुई है वह दूर की जाए। श्रीराम बंसल का कहना है कि उत्तर प्रदेश में 6 से 7 मेगावाट बिजली उपलब्ध रहती है और राज्य में कुल बिजली की खपत करीब 8 मेगावाट है। उनका कहना है कि इस 6-7 मेगावाट बिजली की आपूर्ति यदि थोड़ी भी व्यवस्थित कर दी जाए तो पूरे प्रदेश को उसके ग्रामीण इलाकों सहित कम से कम 20 घंटे निर्बाध रूप से बिजली की आपूर्ति हो सकती है। सच्चाई यह है कि गांव को चार घंटे भी सुचारू रूप से बिजली नहीं मिल रही है। वो कहते हैं कि बिजली विभाग बड़े पैमाने पर औद्योगिक इकाईंयों को बिजली की चोरी कराता है जिससे आपूर्ति में भारी असंतुलन आया हुआ है। उनका दावा है कि यह कोई बड़ी समस्या नहीं है और वे अपने गांव के लिए बिजली की आपूर्ति की बात कर रहे हैं तो उनकी बात न सुनकर और उसका समाधान न कर इलाके के थानेदार और एसडीएम को भेजा जा रहा है कि या तो भूख हड़ताल खत्म कर दो नहीं तो गिरफ्तार करके जेल भेज देंगे। श्रीराम बंसल कहते हैं कि क्या हम अपराधी हैं और क्या हम अपने घर के लिए किसी से कृपापूर्वक बिजली मांग रहे हैं?
श्रीराम बंसल 20 फ़रवरी से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उन्होंने किसी राजनीतिक दल से कोई सहयोग नहीं मांगा है भले ही मंगलवार को कुछ कांग्रेसी उनके पास गए थे। उनकी भूख हड़ताल में और भी लोग जुड़ गए हैं। उन्होंने इस भूख हड़ताल को राजनीति से दूर रखा है लेकिन जिला प्रशासन के अधिकांश निकम्मे और भ्रष्ट अधिकारियों में एक भी ऐसा नहीं है जो कि शांतिपूर्ण तरीके से इस भूख हड़ताल को तुड़वा सके और जो समस्या है गांव को उससे निजात दिला सके। जिलाधिकारी हों या हों एसडीएम, ये छोटे-छोटे मामलों में भी ईगो की समस्या से ग्रस्त रहते हैं, इसलिए वे चाहते हैं कि उनके सामने कोई मुंह नहीं खोले और जन समस्या पर नहीं बोले। यह कोई बड़ी समस्या नहीं थी, लेकिन जिला प्रशासन की मूर्खतापूर्ण शैली इसे बड़ी समस्या बनने का मौका दे रही है। भूख हड़ताल का तीसरा दिन है और मायावती के बुलंदशहर आगमन के डर से प्रशासन और पुलिस गांव वालों की समस्या को न्यायोचित ढंग से जनहित में सुलझाने के बजाय उनको गिरफ्तार कर जूस पिलाकर यह प्रचार पाने को आमादा है कि उसने समस्या का समाधान कर दिया है। श्रीराम बंसल कह रहे हैं कि इलाके का दरोगा अवनीश मिश्रा आया था और धमकी देकर गया है कि तुम्हें गिरफ्तार कर जूस पिलाऊंगा, फिर देखता हूं कि कैसे तुम्हारी भूख हड़ताल चलती है। गांव के लोगों ने भी इस दरोगा को सबक सिखाने की ठान ली है। वे कहते हैं कि जिला प्रशासन की यह बेहद शर्मनाक अवस्था है।
कुछ जागरूक लोगों ने इस समस्या पर बुलंदशहर के जिलाधिकारी शशिभूषण लाल सुशील से उनके मोबाईल नंबर 09454417563 पर उनसे आग्रह किया थाकि वे खुद इस मामले को देखें जिससे किसी इंसान को जन समस्या के कारण भूख हड़ताल पर न बैठना पड़े, लेकिन जिलाधिकारी असहाय नजर आए।लगा कि उनका जिले की प्रशासन व्यवस्था पर कोई नियंत्रण नहीं है और वे इसमें कुछ नहीं कर पाए हैं। इससे यह बात भी साबित हो चुकी है कि पूरी की पूरी व्यवस्था मुफ्त की तनख्वाह ले रही है और एक इंसान को अपनी मूलभूत जरूरत के लिए भूख हड़ताल पर बैठकर अपनी मौत की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। बुलंदशहर की यह भूख हड़ताल प्रदेश की करीब 25 करोड़ की आबादी में कुछ नहीं समझी जा सकती है लेकिन इसका संदेश हुक्मरानों के लिए डूब मरने की बात है। वे मुख्यमंत्री मायावती और उनकेप्यादों की चापलूसी करके जिला चला रहे हैं और आम जनता पर डंडे बरसाने को या जेल भेजने को तैयार हैं। शायद यही वो तथाकथित हुक्मरान हैं जिनकी नाकामियां विद्रोह को जन्म देती हैं और जिनके कारण सरकारों को जनता का कोपभाजन होता पड़ता है। श्रीराम बंसल को पुलिस उठाएगी और जेल भी भेज देगी, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया में जो देर-सबेर होगा, वह दूर-दराज तक फैलेगा और न तब जाने कितने श्रीराम बंसल सड़कों पर होंगे।
यह मामला इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर भी खूब चल रहा है और फेसबुक के सदस्य इस पर अपनी तीखी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसे जिला प्रशासन के अधिकारियों को जो अपने जिले की जनता की मूलभूत समस्याओं का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान न खोज पाएं, उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। इन समस्याओं के लिए सरकार को नहीं बल्कि इन्हें ही जिम्मेदार मानना चाहिए क्योंकि सरकार ने अपने बजट में इन्हें बड़ी धनराशि आवंटित की है जिसे सरकार नही बल्कि ये अधिकारी ही जन सामान्य के नाम पर खर्च करते हैं। एक कलेक्टर अगर असहाय नजर आए तो यह प्रशासन व्यवस्था के लिए अत्यंत चिंताजनक विषय है। प्रतिक्रियाओं में यह भी कहा जा रहा है कि जहां घूस देकर नौकरी और पोस्टिंग पाई जा रही है तो वहां जन समस्याओं के समाधान का कोई मतलब नहीं है। अब तो जिलाधिकारी के पद पर बैठे अधिकांश प्रशासनिक अधिकारी जैसेचारण और भाट हो गए हैं और उनके चौबीस घंटे जनता के लिए नहीं बल्कि अपनी सुख-सुविधाओं और अपने आकाओं के लिए समर्पित रहते हैं, इसलिए श्रीराम बंसल को भीयह समझ लेना चाहिए कि वे मर भी जाएंगे तो भी प्रशासन मेंकिसी का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है।
आज दुनिया भर में फेसबुक, ट्विटर, लिंक्ड, ऑरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चौबीस घंटे प्रबुद्घ वर्ग बैठा हुआ है और ऐसी पोस्ट आने पर ऐसे प्रशासन और प्रशासनिक अधिकारियों के बारे में अपनी बेबाक राय रखता है, इसलिए इस वर्ग में अधिकारियों के नाम का उल्लेख करके उन्हें बेनकाब किया जाए। इन साइट्स पर बैठा यही वो वर्ग है जो इन्हें सब जगह घेरने की क्षमता रखता है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स ऐसे अधिकारियों और राजनेताओंको पूरी दुनिया और उनके वर्ग में उन्हें बेनकाब करने के लिए काफी हैं और यदि जिला प्रशासन के ऐसे गैर संवेदनशील, भ्रष्ट और चापलूस अधिकारी देश दुनिया की नजरों में गिराए जाते हैं तो यह जनसामान्य के ही हित में होगा। फेसबुक के मित्रों ने आपस में आग्रह किया है कि वे भी इस दिशा में श्रीराम बंसल और उनके सहयोगियों एवं उन जैसे आंदोलन करने वालों की मदद करें, उनका मनोबल ऊंचा करें। डीएम बुलंदशहर शशिभूषण लाल सुशील को उनके घटिया प्रशासन पर लानत भेजी जाए। हालांकि अब वे मोबाईल नंबर भी नहीं उठा रहे हैं।