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Tuesday 11 July 2023 01:25:52 PM
हम्पी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक के हम्पी में तीसरी जी20 सांस्कृति कार्य समूह की बैठक के दौरान कुल 1755 वस्तुओं केसाथ लम्बाणी वस्तुओं के सबसे बड़े प्रदर्शन केलिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड की सराहना की है। उन्होंने संस्कृति मंत्रालय के एक ट्वीट को साझा करते हुए ट्वीट किया हैकि सराहनीय प्रयास, जो लम्बाणी संस्कृति कला और शिल्प को लोकप्रिय बनाने केसाथ-साथ सांस्कृतिक पहल में नारीशक्ति की भागीदारी को प्रोत्साहित करेगा। गौरतलब हैकि जी20 के तीसरी संस्कृति कार्यसमूह की बैठक में 'संस्कृति सभीको एकजुट करती है' अभियान केतहत संस्कृति मंत्रालय के संस्कृति कार्यसमूह ने लम्बाणी कढ़ाई की वस्तुओं का बड़ी तादाद में प्रदर्शन करके गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। लम्बाणी कढ़ाई पैचों की इस अनूठी प्रदर्शनी का उद्घाटन संसदीय कार्यमंत्री प्रल्हाद जोशी ने येदुरु बसवन्ना कॉम्प्लेक्स हम्पी में किया, प्रदर्शनी का शीर्षक 'एकता के धागे' है, जो लम्बाणी कढ़ाई की कलात्मक अभिव्यक्ति और डिजाइन पारिभाषिकी का प्रचार करता है।
संदुर कुशला कला केंद्र से जुड़ी 450 से अधिक महिला कारीगरों और सांस्कृतिक कलाकारों ने 1755 पैचवर्क वाली जीआई-टैग वाली संदूर लम्बाणी कढ़ाई का उपयोग करके इन वस्तुओं को तैयार किया है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का यह प्रयास प्रधानमंत्री के मिशन 'लाइफ' यानी पर्यावरण केलिए जीवनशैली अभियान और सीडब्ल्यूजी की पहल पर्यावरण केप्रति जागरुक जीवनशैली और स्थिरता की दिशा में एक ठोस कार्य 'जीवन केलिए संस्कृति' से जुड़ा हुआ है। एक सोसायटी के रूपमें 1988 में पंजीकृत संदुर कुशल कला केंद्र का उद्देश्य पारंपरिक शिल्प को पुनर्जीवित करना और शिल्पकारों की आजीविका को बढ़ाना, उनके कौशल को बढ़ावा देना, उनके उत्पादों को बढ़ावा देना और इस प्रकार एक स्थिर आय सुनिश्चित करना है। वर्तमान में एसकेकेके लगभग 600 कारीगरों केसाथ काम करता है और बीस स्वयं सहायता समूहों का पोषण किया है। यह पिछले कुछ वर्ष में विकसित हुआ है और लम्बाणी शिल्प ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त करली है।
लम्बाणी शिल्प केलिए एसकेकेके ने 2004 और 2012 में दक्षिण एशिया में हस्तशिल्प केलिए प्रतिष्ठित यूनेस्को सील ऑफ़ एक्सीलेंस अर्जित की है। एसकेकेके ने शिल्प 'संदूर लम्बानी हाथ की कढ़ाई' केलिए वर्ष 2008 में भौगोलिक संकेत जीआई टैग प्राप्त किया था। लम्बाणी पैचवर्क कढ़ाई भारत में निरंतर चली आ रही अनेक पारंपरिक टिकाऊ कार्य प्रणालियों का उदाहरण है और लम्बाणी गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड परियोजना सीडब्ल्यूजी अभियान की उत्पत्ति है, जो मानव जाति की विविध और गतिशील सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का प्रसार करती है। एक पैचवर्क के रूपमें छोटे-छोटे टुकड़े जुड़कर एक बड़े वस्त्र का निर्माण करते हैं, संस्कृति सभीको जोड़ती है, यह इस बात की वकालत करती हैकि दुनिया की संस्कृतियां अलग-अलग हैं फिरभी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। लम्बाणी कढ़ाई रंगीन धागों, कांच या मिरर वर्क और सिलाई पैटर्न की एक समृद्ध श्रृंखला द्वारा चित्रित कपड़ा अलंकरण का एक जीवंत और जटिल रूप है। यह समृद्ध कढ़ाई परंपरा मुख्य रूपसे लम्बाणी समुदाय की कुशल महिलाओं ने जीवित रखी हुई है, जो आर्थिक सशक्तीकरण केसाथ जीवन पद्धतियों को जोड़कर इसे आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत समझकर कार्य करती है।
लम्बाणी कढ़ाई शिल्प को बढ़ावा देने से न केवल भारत की जीवित विरासत प्रथा का संरक्षण होगा, बल्कि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को भी समर्थन मिलेगा। यह पहल सीडब्ल्यूजी की तीसरी प्राथमिकता सांस्कृतिक और रचनात्मक उद्योगों और रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के अनुरूप है। यह लम्बाणी कढ़ाई की समृद्ध कलात्मक परंपरा पर प्रकाश डालती है, जिससे कर्नाटक और भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। पैचवर्किंग का टिकाऊ अभ्यास भारत और दुनियाभर की कई कपड़ा परंपराओं में पाया जाता है। लम्बाणी शिल्प परंपरा में एक सुंदर कपड़ा बनाने केलिए फेंके गए कपड़े के छोटे टुकड़ों को कुशलतापूर्वक एकसाथ सिलाई करना शामिल है। लम्बाणी की कढ़ाई परंपराएं तकनीक और सौंदर्यशास्त्र के संदर्भ में पूर्वी यूरोप, पश्चिम और मध्य एशिया में कपड़ा परंपराओं केसाथ साझा की जाती हैं। यह ऐतिहासिक रूपसे ऐसे क्षेत्रों में खानाबदोश समुदायों के आंदोलन की ओर इशारा करती है, जो एक साझा कलात्मक संस्कृति का निर्माण करते हैं। इस कला के माध्यम से हम अपनी साझा विरासत का जश्न मनाते हैं और विविध समुदायों केबीच संवाद और समझ को बढ़ावा देते हैं।
साझा विरासत का जश्न मनाते हुए और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देकर यह प्रदर्शन वसुधैव कुटुंबकम् के सार को समाहित करते हुए संस्कृतियों केबीच एकता, विविधता, परस्पर जुड़ाव और सामंजस्यपूर्ण सह अस्तित्व की शक्ति के प्रमाण के रूपमें कार्य करता है। ज्ञातव्य हैकि कौशल, जरूरतों, डिजाइन और बाजार के रुझान को जोड़ने के एक प्रयास के रूपमें संदुर मैंगनीज एंड आयरन ओरेस लिमिटेड कंपनी बीस वर्ष से उत्तरी कर्नाटक के खनन शहर संदुर में स्थानीय लम्बानी आदिवासी महिलाओं केसाथ काम कर रही थी। संदुर कुशला कला केंद्र की स्थापना 1984 में एक गैर सरकारी संगठन के रूपमें की गई थी और शुरुआत में इसे संदुर मैंगनीज एंड आयरन ओरेस लिमिटेड से प्रायोजित और प्रचारित किया गया था।