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Monday 24 July 2023 02:53:04 PM
जम्मू। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा हैकि जम्मू भारत की पहली कैनबिस मेडिसिन परियोजना का नेतृत्व करेगा। उन्होंने बतायाकि सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू का कैनबिस रिसर्च प्रोजेक्ट भारत में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक कनाडाई फर्म केसाथ निजी सार्वजनिक भागीदारी में शुरू किया गया है, इसमें मानवकल्याण केलिए विशेष रूपसे न्यूरोपैथी, कैंसर और मिर्गी से पीड़ित रोगियों केलिए अनुसंधान कार्य करने की अपार क्षमता है। डॉ जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी जम्मू के संरक्षित क्षेत्र में कैनबिस यानी भांग की खेती के तरीकों और इस पौधे पर किए जारहे शोध कार्यों के बारेमें जम्मू के चाथा में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद एवं भारतीय समवेत औषध संस्थान के कैनबिस कल्टीवेशन फार्म के दौरे के दौरान साझा की।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि सीएसआईआर-आईआईआईएम की यह प्रोजेक्ट आत्मनिर्भर भारत के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विभिन्न प्रकार की न्यूरोपैथी, मधुमेह रोग आदि केलिए निर्यात गुणवत्ता वाली दवाओं का उत्पादन करने में सक्षम होगा। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि यद्यपि जम्मू-कश्मीर और पंजाब नशीली दवाओं के दुरुपयोग से प्रभावित हैं, इसलिए इस तरह की परियोजना से जागरुकता आएगी एवं असाध्य और दूसरी बीमारियों से पीड़ित रोगियों केलिए इसके विविध औषधीय उपयोग हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि सीएसआईआर-आईआईआईएम और इंडस स्कैन केबीच वैज्ञानिक समझौते पर हस्ताक्षर न केवल जम्मू-कश्मीर केलिए बल्कि भारतभर केलिए ऐतिहासिक था, क्योंकि इसमें उन विविध दवाओं का उत्पादन करने की क्षमता है, जिन्हें विदेशों से निर्यात किया जाता है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि इस तरह की परियोजना से जम्मू-कश्मीर में बड़े निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा।
कैनबिस मेडिसिन परियोजना केलिए सीएसआईआर-आईआईआईएम की सराहना करते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि सीएसआईआर-आईआईआईएम भारत का सबसे पुराना वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान है, जिसका 1960 के दशक में बेहतरीन कार्य करने का इतिहास है, जो पर्पल रेवलूशन का केंद्र है और अब सीएसआईआर-आईआईआईएम की कैनबिस अनुसंधान परियोजना इसे भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के मामले में और अधिक प्रतिष्ठित बनाने जा रही है। डॉ जितेंद्र सिंह ने एक एकड़ संरक्षित क्षेत्र का जायजा लिया, जहां सीएसआईआर-आईआईआईएम वर्तमान में बड़े पैमाने पर कैनबिस की बेहतर खेती कर रहा है। उन्होंने जलवायु नियंत्रण सुविधाओं वाले ग्लास हाउसों का भी दौरा किया, जहां वांछित कैनाबिनोइड सामग्री केलिए किस्मों में सुधार पर शोध कार्य किया जा रहा है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कैनबिस के चिकित्सीय गुणों की खोज में अग्रणी अनुसंधान केलिए सीएसआईआर-आईआईआईएम के प्रयासों की सराहना की, यह पौधा अन्यथा प्रतिबंधित है और दुरुपयोग केलिए जाना जाता है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने सीएसआईआर-आईआईआईएम के कैनबिस परियोजना पर किएगए शोध कार्य पर संतोष व्यक्त किया और विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों के समाधान में कैनबिस आधारित उपचार की अपार क्षमताओं को जाना। डॉ जितेंद्र सिंह ने कैनबिस की उपज बढ़ाने केलिए नवीनतम तकनीक और खेती के तरीकों के उपयोग के महत्व पर बल दिया, जिससे किसानों को मदद मिलेगी। डॉ जितेंद्र सिंह ने नई स्वदेशी किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जो हमारे देश की पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल हों। उन्होंने इस प्रयास में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डाला और शोधकर्ताओं को वैज्ञानिक विकास की सीमाओं के प्रसार केलिए प्रोत्साहित किया। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि कैनबिस एक अद्भुत पौधा है। उन्होंने बतायाकि मतली और उल्टी के इलाज केलिए मेरिलनोल या नाबिलोन तथा सेसमेट, न्यूरोपैथिक दर्द एवं ऐंठन केलिए सेटिवेक्स, मिर्गी केलिए एपिडियोलेक्स, कैनबिडिओल जैसी दवाओं को एफडीए ने मंजूरी दे दी है और दूसरे देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
राज्यमंत्री ने कहाकि जम्मू-कश्मीर में अनुसंधान और संरक्षित खेती केलिए सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू को लाइसेंस दिया जा चुका है और जीएमपी विनिर्माण की अनुमति के पश्चात बाकी प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल अध्ययन पूरे किए जाएंगे। सीएसआईआर-आईआईआईएम के निदेशक डॉ ज़बीर अहमद ने राज्यमंत्री को अवगत करायाकि वर्तमान में सीएसआईआर-आईआईआईएम केपास देश के विभिन्न हिस्सों से एकत्र की गई 500 से अधिक सामग्री का भंडार है। संस्थान के वैज्ञानिक कैनबिस की खेती, कैंसर और मिर्गी में दर्द प्रबंधन जैसी बीमारी की स्थितियों पर जोर देने केसाथ दवा की खोज केलिए एंड-टू-एंड तकनीक प्रदान करने केलिए विभिन्न दिशाओं में काम कर रहे हैं। उन्होंने राज्यमंत्री को बतायाकि जैव प्रौद्योगिकी विभाग और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद केसाथ सीएसआईआर के त्रिपक्षीय समझौते के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा वैज्ञानिक उद्देश्य के साथ कैनबिस की खेती केलिए लाइसेंस दिए जाने केबाद सीएसआईआर-आईआईआईएम ने कैनबिस पर खोजपूर्ण अनुसंधान पूरा कर लिया है।
कैंसर दर्द और मिर्गी के प्रबंधन से संबंधित प्री-क्लिनिकल नियामक अध्ययनों केलिए जीएमपी विनिर्माण करना बहुत महत्वपूर्ण है, जो नई चिकित्सीय दवाओं की खोज की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं। जीएमपी केलिए विशेष रूपसे वैज्ञानिक उद्देश्य केसाथ कैनबिस सामग्री का निर्माण और परिवहन केलिए जम्मू-कश्मीर सरकार के उत्पाद शुल्क विभाग से लाइसेंस का आवेदन बहुत पहले ही प्रस्तुत किया जा चुका है, जो अभीभी प्रक्रियाधीन है। सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन कैनबिस अनुसंधान में अग्रणी है और देश में खेती केलिए इसने पहला लाइसेंस प्राप्त किया है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे कई दूसरे राज्यों ने भी वैज्ञानिक उद्देश्यों केसाथ भांग के उपयोग केलिए नीति और नियम बनाना शुरू कर दिया है। राज्यमंत्री के जम्मू दौरे के दौरान पीएसए प्रभाग के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ धीरज व्यास, आईडीडी प्रभाग के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ सुमित गांधी, कैनबिस अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ पीपी सिंह, और प्रौद्योगिकी व्यापार इनक्यूबेटर और अटल इन्क्यूबेशन केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक और प्रभारी डॉ सौरभ सरन उपस्थित थे।