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उपराष्ट्रपति सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ पहुंचे

'सैनिक स्कूल के बच्चों की नेतृत्व क्षमता के कारण विशेष पहचान'

अपने स्कूल के दिनों के रोचक संस्मरण छात्रों और शिक्षकों को सुनाए

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 22 August 2023 05:06:26 PM

vice president reached his sainik school chittorgarh

चित्तौड़गढ़। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आज अपने विद्यालय सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ पहुंचे और वहां मौजूदा एवं पूर्व छात्रों और शिक्षकों से मुलाकात की। ज्ञात रहेकि जगदीप धनखड़ ने सन् 1962 से 1967 तक अपनी स्कूली शिक्षा यहीं से पूरी की है। इस अवसर पर भावुक होते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि आज मैं जो कुछ हूं सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ और यहां मिली शिक्षा की बदौलत ही हूं, इस माटी को मैं सलाम करता हूं! उन्होंने कहाकि यहां के वातावरण में बच्चों के सर्वांगीण विकास का अवसर मिलता है, इसीलिए सैनिक स्कूल का बच्चा जहां भी जाता है, उसकी लीडरशिप क्षमता के कारण उसकी एक विशेष पहचान बनती है। सैनिक स्कूल के छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को मुलाकात के दौरान उपराष्ट्रपति ने अपने स्कूल के दिनों के कई रोचक संस्मरण सुनाए।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बतायाकि गांव के प्राइमरी स्कूल में पांचवीं कक्षा तक ABCD नहीं सिखाई जाती थी, इस कारण उन्हें सैनिक स्कूल में शुरुआती दिनों में कठिनाई का सामना करना पड़ा। एकबार प्रिंसिपल ने कक्षा में उनसे अंग्रेजी में कुछ सवाल पूछे तो वे समझ नहीं सके, प्रिंसिपल ने उन्हें शाम को अपने घर पर चाय के समय बुलाया, तब उन्होंने हिम्मत कर प्रिंसिपल से कहाकि सर मैं होशियार लड़का हूं पर अंग्रेजी नहीं आती। उपराष्ट्रपति ने बतायाकि उन प्रिंसिपल ने मुझे मार्गदर्शन दिया और मेरा जीवन बदल गया, मैं आजीवन उनका ऋणी रहूंगा। एक रोचक घटना का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने बतायाकि उनके बड़े भाई कुलदीप धनखड़ भी सैनिक स्कूल में पढ़ते थे और उन्हें एकबार स्कूल से सजा मिली, साथही एक लैटर उनके पिता को भेजा गया, जिसमें लिखा था-तुम्हारे वार्ड को ऊंट की सवारी केलिए सज़ा दी गई है, चूंकि गांव में अंग्रेजी किसी को आती नहीं थी अतः उन लोगों ने समझ लियाकि कुलदीप को स्कूल से अवार्ड मिला है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बतायाकि बेहद कम उम्र में सैनिक स्कूल में आनेसे उनकी मां को बहुत चिंता रहती थी, अतः वे रोज एक पोस्टकार्ड अपनी मां केलिए लिखकर भेजा करते थे और जब वह घर जाते थे तो मां खाली पोस्टकार्ड का एक पैकेट उन्हें दिया करती थीं। अपने कैरियर के शुरुआती दिनों के बारेमें उपराष्ट्रपति ने बतायाकि उनका एक सपना था अपनी स्वयं की लाइब्रेरी बनाने का। उन्होंने कहाकि मैं आभारी हूं उस बैंक मैनेजर का, जिसने उन्हें उस समय छह हजार रुपए लोन दिया, जिससे वह अपनी लाइब्रेरी सेटअप कर पाए। इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने युवाओं से कहाकि आप भाग्यशाली हैंकि ऐसे समय में जी रहे हैं, जब भारत अभूतपूर्व प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है, आज देश में ऐसा इकोसिस्टम तैयार किया गया हैकि आपके पास सिर्फ एक आईडिया होना चाहिए, आपको वित्त और मार्गदर्शन की कमी नहीं रहेगी। उन्होंने युवाओं का आह्वान कियाकि वे अपने आइडिया को अपने दिमाग में न रखें, बल्कि उसे हकीकत में उतारने की हर संभव कोशिश करें।
छात्रों को अतिप्रतिस्पर्धा में न पड़ने की सलाह देते हुए उपराष्ट्रपति ने उनसे अपना अनुभव साझा करते हुए कहाकि मैं हमेशा क्लास में फर्स्ट आता था और हमेशा डरा रहता थाकि फर्स्ट न आया तो क्या होगा, उस डर के कारण मैंने बहुत कुछ खोया, मैं अधिक दोस्त बना पाता, अधिक हॉबी कर पाता। छात्रों को अपनी रुचि का कैरियर चुनने की सलाह देते हुए उन्होंने कहाकि हमारे जमाने में बच्चा पैदा होते ही माता-पिता तय कर देते थेकि वो फौजी बनेगा या डॉक्टर बनेगा या इंजीनियर बनेगा और जिंदगीभर उसे वही बनाने की कोशिश करते थे, भलेही बच्चे की उसमे रुचि हो या नहीं। नदी और नहर का उदाहरण देते उपराष्ट्रपति ने छात्रों से कहाकि बंधे किनारों वाली नहर ना बनें, बल्कि स्वतंत्र नदी बनें, जो अपना रास्ता स्वयं चुनती है। युवाओं से निडर होकर आगे बढ़ने की अपील करते हुए उन्होंने कहाकि असफलता के डर से डरिये मत, डर सबसे बड़ी बीमारी है, जो मानवता केलिए हानिकारक है। उपराष्ट्रपति ने भारत के नित रचे जा रहे कीर्तिमानों का जिक्र करते हुए कहाकि भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है, आज हम अपने औपनिवेशिक शासकों को पीछे छोड़ पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने छात्रों से कहाकि वे 2047 के सिपाही हैं, वे हर प्रयास करें, ताकि भारत आजादी की शताब्दी मनाते समय विश्व में शिखर पर हो। कानून को सर्वोपरि रखने पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि कुछ लोग समझते हैंकि वे कानून से ऊपर हैं और जब कानून का शिकंजा उनपर कसता है तो वे सड़कों पर विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाते हैं। जगदीप धनखड़ ने इस मौके पर यह भी कहाकि किसी कोभी राष्ट्र और हमारे संस्थाओं की छवि धूमिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहाकि हमें हमेशा ऐसा काम करना चाहिए, जिससे देश का नाम ऊपर हो, हर हालत में हमें देश को सर्वोपरि रखना है। सैनिक स्कूलों में लड़कियों के एडमिशन को एक सकारात्मक और अच्छी शुरुआत बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें विश्वास हैकि आनेवाले समय में इसके बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ पहुंचने से पहले उपराष्ट्रपति पहले अपने शिक्षक हरपाल सिंह राठी से मिलने उनके निवास पर पहुंचे और अपने गुरु के चरण स्पर्शकर उनका आशीर्वाद लिया।

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