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Thursday 28 September 2023 01:18:40 PM
जोधपुर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय जोधपुर में छात्रों से संवाद में कहाकि संसद लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है, शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत बहुत स्पष्ट है और कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका को एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसपैठ नहीं करनी चाहिए और विधायिका ही अंतिम निर्णय लेने वाली होती है। हाल ही में संसद में आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को बदलने केलिए प्रस्तावित विधेयकों पर उपराष्ट्रपति ने कहाकि हमारे पास जो आपराधिक कानून थे, वे सुधारवादी नहीं थे, वे दंडात्मक थे, जो औपनिवेशिक विचारधारा के अनुकूल थे, प्रस्तावित कानून आपराधिक न्याय प्रणाली को समग्र दृष्टिकोण से देख रहे हैं। नारी शक्ति वंदन अधिनियम को गेमचेंजर बिल बताते हुए उपराष्ट्रपति ने इस कानून का समर्थन करने में दूरदर्शिता केलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की। विधेयक पर बहस के दौरान घटनाओं के एक ऐतिहासिक मोड़ में उन्होंने बतायाकि 17 महिला सांसदों को उपाध्यक्षों के पैनल में नियुक्त किया गया था, जो उनकी असाधारण क्षमता और नेतृत्व का प्रदर्शन था, क्योंकि उन्होंने विधेयक को इसके पारित होने के दौरान विशेषज्ञ रूपसे निर्देशित किया था।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने छात्रों को हमारे संस्थानों पर दाग लगने या कलंकित होने पर मूक दर्शक बने रहने केप्रति आगाह किया और कहाकि ऐसी चुप्पी देश की प्रगति में बाधा बन सकती है। उन्होंने उन्हें भारत विरोधी कहानियों का मुकाबला करने केलिए सक्रिय रूपसे अपनी चिंताओं को व्यक्त करने केलिए प्रोत्साहित किया। संसद में हाल के व्यवधानों पर जगदीप धनखड़ ने कहाकि सांसदों से अपेक्षा की जाती हैकि वे व्यवधानों के बजाय रचनात्मक बहस, संवाद और विचार-विमर्श में शामिल हों। उपराष्ट्रपति ने दोहरायाकि किसी विचार केलिए खुला न होना तर्कसंगत कामकाज के खिलाफ है और बुद्धि के मूल सार को कमजोर करता है और लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है। लोकतंत्र में युवा शक्ति को सबसे बड़ी ताकत के रूपमें पहचानते हुए उन्होंने छात्रों को लोकतांत्रिक मूल्यों, मजबूत कार्यसंस्कृति और हमारी सभ्यता के लोकाचार को बरकरार रखते हुए 2047 में देश को शिखर पर ले जाने का कार्य सौंपा। छात्रों को अपना करियर चुनने की दीगई स्वतंत्रता पर उपराष्ट्रपति ने निरंतर सीखने और ज्ञान की भूख रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बाहरी ताकतों के निर्धारित बाध्यकारी एजेंडे के आगे झुकने केप्रति आगाह किया और उनसे अपनी व्यक्तिगत योग्यताओं के अनुरूप रास्ते अपनाने का आग्रह किया।
भारत की स्वतंत्र और मजबूत न्यायिक प्रणाली की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने एक बुनियादी सिद्धांत को रेखांकित कियाकि कोईभी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, उन्होंने दोहरायाकि एक लोकतांत्रिक समाज में कानूनी प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन करना सभी केलिए एक महत्वपूर्ण अनिवार्यता है। विकास को गति देने में संस्थानों केबीच 'सिनर्जेटिक संपर्क' की महत्वपूर्ण भूमिका पर उन्होंने एनएलयू जोधपुर और भारतीय विश्व मामलों की परिषद केबीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने की घोषणा की, जो छात्रों को अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन हासिल करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करेगा। उपराष्ट्रपति ने दिल्ली के हालिया वास्तुशिल्प चमत्कारों जैसे प्रधानमंत्री संग्रहालय, भारत मंडपम, यशोभूमि, युद्ध स्मारक की प्रशंसा की, जिनका उद्घाटन दो महीने सेभी कम समय में किया गया था। उन्होंने कुलपति से संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में राज्यसभा के सभापति की सहायता केलिए पांच प्रशिक्षु भेजने का अनुरोध किया। इस अवसर पर कुलपति हरप्रीत कौर, शिक्षक और बड़ी संख्या में छात्र उपस्थित थे।