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Tuesday 31 October 2023 12:01:16 PM
जम्मू। प्रधानमंत्री कार्यालय और कई केंद्रीय विभागों में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा हैकि भारत का विभाजन दुनिया के हाल के इतिहास में सबसे बड़ी भूल थी। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि यह कुछ उन महत्वाकांक्षी व्यक्तियों की एक स्वरचित योजना और आत्मविभाजन था, जिन्होंने खुदको ब्रिटिश शासकों के हाथों की विभाजनकारी डिजाइन से खेलने की अनुमति दी थी। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि विभाजन का न केवल महात्मा गांधी ने, बल्कि प्रगतिशील लेखक संघ का गठन करने वाले कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों सहित जनता के सभी वर्गों ने मुखरता से विरोध किया था। उन्होंने कहाकि इसके बाद भारत और नवगठित पाकिस्तान केबीच आबादी के खूनी आदान-प्रदान में दस लाख से अधिक लोगों की जान चली गई और कई गुना अधिक लोग बेघर हो गए।
केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि विभाजन के समर्थन में तर्क के रूपमें दिया गया द्वि-राष्ट्र सिद्धांत भी गलत साबित हुआ जैसाकि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के अलग होकर बांग्लादेश बनने से स्पष्ट हो गया है। डॉ जितेंद्र सिंह ने जम्मू विश्वविद्यालय में 'ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह स्मारक पब्लिक लेक्चर' के दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए कहाकि काश तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने गृहमंत्री को उसी तरह जम्मू-कश्मीर को संभालने की अनुमति दी होती, जिस प्रकार से सरदार वल्लभभाई पटेल संभाल भारत की अन्य रियासतों को संभाल रहे थे तो भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास अलग होता और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर भी भारत का हिस्सा होता। केंद्रीय राज्यमंत्री ने कहाकि एकतरफा युद्धविराम की घोषणा करना गलतियों में से एक था, जब भारतीय सेना पाकिस्तान के कब्जा किए गए जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रों को वापस लेने वाली थी, जो अब पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर का हिस्सा हैं।
राज्यमंत्री ने कहाकि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी और अन्य लोगों के विरोध के बावजूद चुपचाप मोहम्मद अली जिन्ना की विभाजन की मांग को सफल होने दिया। डॉ जितेंद्र सिंह ने इस तरह के महत्वपूर्ण कार्यक्रम के आयोजन केलिए जम्मू विश्वविद्यालय के रणनीतिक एवं क्षेत्रीय अध्ययन विभाग और जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र की भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहाकि धरतीपुत्र ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह ने अकेले ही दुश्मन ताकतों से लड़ाई लड़ी और उरी तक आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया, लेकिन फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के एकतरफा युद्धविराम की घोषणा के कारण जम्मू-कश्मीर का विभाजन हो गया। उन्होंने कहाकि इस तरह के फैसलों से भारत को अबभी अपनी जमीन और संसाधनों की कीमत चुकानी पड़ रही है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट करते हुए सिंधु जल संधि जैसे समझौतों को कम कार्यांवयन वाला करार दिया, जिससे हमारे अपने जल संसाधनों का कम उपयोग हो रहा है। केंद्रीय राज्यमंत्री ने विभाजन के एक और दंश के बारेमें बताते हुए अनुच्छेद 370 का उदाहरण दिया, जिसने जम्मू-कश्मीर को दशकों तक अविकसित रखा। उन्होंने कहाकि इससे न केवल महाराजा हरिसिंह नाराज हुए, बल्कि अलगाववाद की भावनाएं भी भड़कीं। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि महाराजा हरिसिंह कभी दोषी नहीं थे। उन्होंने तर्क देते हुए कहाकि यह सब राजधानी दिल्ली में बैठे तत्कालीन शासकों द्वारा जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय में देरी के कारण हुआ था। जम्मू विश्वविद्यालय में कार्यक्रम की अध्यक्षता शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय जम्मू के कुलपति प्रोफेसर बीएन त्रिपाठी ने की, जबकि ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त गोवर्धन सिंह जम्वाल सम्मानित अतिथि थे।