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Monday 20 November 2023 05:15:03 PM
बारीपदा (ओडिशा)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु आज ओडिशा के बारीपदा में अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ के 36वें वार्षिक सम्मेलन और साहित्यिक महोत्सव के उद्घाटन सत्र में शामिल हुईं। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर संथाली भाषा एवं साहित्य में योगदान दे रहे लेखकों और शोधकर्ताओं की प्रशंसा की। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत विभिन्न भाषाओं और साहित्य का एक सुंदर उद्यान है। उन्होंने कहाकि भाषा और साहित्य वे सूक्ष्म धागे हैं, जो राष्ट्र को एकसाथ बांधते हैं और साहित्य विभिन्न भाषाओं केबीच व्यापक आदान-प्रदान से ही समृद्ध होता है, यह कार्य अनुवाद के माध्यम से संभव है। उन्होंने कहाकि संथाली भाषा के पाठकों को अनुवाद के माध्यम से अन्य भाषाओं के साहित्य से भी परिचित कराया जाना चाहिए। उन्होंने संथाली साहित्य को अन्य भाषाओं के पाठकों तक पहुंचाने केलिए इसी तरह के प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने इस बात की सराहना कीकि अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ 1988 में अपनी स्थापना से ही संथाली भाषा को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने कहाकि 22 दिसंबर 2003 को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने केबाद सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में संथाली भाषा का उपयोग बढ़ गया है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया, जिनके कार्यकाल के दौरान संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। राष्ट्रपति ने कहाकि अधिकांश संथाली साहित्य मौखिक परंपरा में उपलब्ध है और उल्लेख कियाकि पंडित रघुनाथ मुर्मु ने न केवल ओल चिकी लिपि का आविष्कार किया, बल्कि उन्होंने संथाली भाषा को बिदु चंदन, खेरवाल बीर, दारगे धन, सिदो-कान्हू-संथाल हूल जैसे नाटकों की रचना करके और भी समृद्ध कर दिया है। राष्ट्रपति ने कहाकि बच्चों को शुरू से ही सेल्फ स्टडी में व्यस्त रखने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहाकि कोईभी व्यक्ति बचपन से ही स्वाध्याय करके एक अच्छा पाठक बन सकता है। उन्होंने मनोरंजक और बोधगम्य बाल साहित्य का सृजन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहाकि न केवल संथाली साहित्य, बल्कि सभी भारतीय भाषाओं में रोचक बाल साहित्य सृजन पर भी जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डालाकि कई संथाली लेखक अपने लेखन कार्य से संथाली साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। उन्होंने कहाकि यह गर्व की बात हैकि दमयंती बेसरा और काली पदा सारेन, जो खेरवाल सारेन के नाम से लोकप्रिय हैं, उन्हें शिक्षा और साहित्य केलिए क्रमशः 2020 और 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। राष्ट्रपति ने कहाकि लेखक समाज के सजग प्रहरी होते हैं, वे अपने कार्यों से समाज को जागरुक करते हैं और उसका मार्गदर्शन करते हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अनेक साहित्यकारों ने हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को भी अपने लेखन व रचनाओं से अनुकरणीय योगदान देकर राह दिखाई थी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने लेखकों से अपने लेखन के जरिए समाज में निरंतर जागरुकता पैदा करने का आग्रह किया। उन्होंने जोर दियाकि आदिवासी समुदाय के लोगों केबीच जागरुकता पैदा करना एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है, निरंतर जागरुकता से ही सशक्त एवं जीवंत समाज का निर्माण संभव है। राष्ट्रपति ने कहाकि साहित्य किसी समुदाय की संस्कृति का दर्पण होता है। उन्होंने कहाकि आदिवासी जीवनशैली में प्रकृति केसाथ मनुष्य का स्वाभाविक सह अस्तित्व दिखता है, आदिवासी समुदायों का मानना हैकि जंगल उनका नहीं है, बल्कि वे जंगल से संबंध रखते हैं। उन्होंने कहाकि आज जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या है और इस समस्या से निपटने केलिए प्रकृति के अनुकूल जीवन बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि इन मुद्दों से निपटा जा सके। उन्होंने लेखकों से आदिवासी समुदायों की जीवनशैली के बारेमें लिखने का आग्रह किया, जिससे अन्य लोगों को भी आदिवासी समाज के जीवन मूल्यों केबारे में पता चल सके।