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Sunday 26 November 2023 04:04:15 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज 26 नवंबर को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आयोजित संविधान दिवस समारोह की शोभा बढ़ाई। राष्ट्रपति ने समारोह को संबोधित करते हुए कहाकि महान राष्ट्रीय महत्व के अवसर संविधान दिवस पर आपके बीच आकर मुझे खुशी है, आज हम उस दिन को याद करते हैं, जब करीब तीन साल के विचार मंथन केबाद 1949 में भारत की संविधान सभा ने संविधान को अपनाया था। उन्होंने बतायाकि पहले इस दिन को कानून दिवस के रूपमें मनाया जाता था, लेकिन वर्ष 2015 में संविधान के प्रमुख वास्तुकार बाबासाहेब डॉ भीमराव आम्बेडकर की 125वीं जयंती पर भारत सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूपमें घोषित किया। राष्ट्रपति ने कहाकि दोनों उद्देश्य संविधान केसाथ-साथ इसमें डॉ भीमराव आम्बेडकर के महत्वपूर्ण योगदान के बारेमें जागरूकता फैलाने में मदद करना है। उन्होंने कहाकि आज हम इस संस्थापक दस्तावेज़ में निहित मूल्यों का जश्न मनाते हैं और राष्ट्र के दैनिक जीवन में उन्हें बनाए रखने केलिए खुदको फिरसे समर्पित करते हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि हमारे संस्थापक दस्तावेज़ के अंतिम व्याख्याकार की भूमिका पूर्णता से निभाने केलिए सर्वोच्च न्यायालय को बधाई देनी चाहिए, भारत के लोकतंत्र में अपनी भूमिका और जिम्मेदारी से भलीभांति परिचित इस न्यायालय की बार और बेंच ने न्यायशास्त्र के मानकों को लगातार बढ़ाया है, इसकी कानूनी कुशलता और विद्वता सर्वोत्कृष्ट है। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारे संविधान की तरह हमारा सर्वोच्च न्यायालय भी कई अन्य देशों केलिए आदर्श है, एक जीवंत न्यायपालिका केसाथ मुझे यकीन हैकि हमारे लोकतंत्र का स्वास्थ्य कभीभी चिंता का कारण नहीं बनेगा। राष्ट्रपति ने उल्लेख कियाकि ये मूल्य क्या हैं? वे न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व हैं, जिन्हें प्रस्तावना में विशेष रूपसे उजागर किया गया है, ये वे सिद्धांत हैं, जिनपर हम एक राष्ट्र के रूपमें खुदको संचालित करने केलिए सहमत हुए हैं। उन्होंने कहाकि निस्संदेह ये मानवजाति के सभ्यतागत मूल्य हैं, जो इस भूमि के ज्ञान में अपनी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति पा रहे हैं, सदियों से अंधकार से प्रकाश की ओर सामूहिक यात्रा के दौरान दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने इसे बार-बार फिरसे खोजा है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि हमारे मामले में महान स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमें एकबार फिर उनके महत्व का एहसास हुआ, इस विशाल और विविधतापूर्ण देश के विभिन्न कोनों के लोगों-अमीर और ग़रीब, पुरुष और महिलाएं, शिक्षित और अशिक्षित, शहरवासी और ग्रामीण, विभिन्न धर्मों के अनुयायी ने मातृभूमि की मुक्ति में एक समान उद्देश्य पाया। राष्ट्रपति कहाकि यदि कोई एक शब्द है, जो चार मूलभूत मूल्यों को सारांशित करता है तो वह लोकतंत्र है, अगर हम बाह्य अंतरिक्ष से किसी व्यक्ति के पृथ्वी पर आने की कल्पना करें तो यह प्राणी दुनिया में अपनी तरह के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतीय लोकतंत्र को देखकर चकित रह जाएगा। राष्ट्रपति ने कहाकि इस घटना पर विचार करें, मानवता के लगभग पांचवें हिस्से ने अपने व्यक्तिगत भाग्य को अरबों से अधिक साथी नागरिकों के सामूहिक हाथों में सौंपने का फैसला किया है, यह बहुत बड़ा भरोसा है, इतना विशालकि हम इसे नियमित रूपसे नोटिस करने में विफल रहते हैं। उन्होंने कहाकि भारत आजादी मिलने केबाद सेही लोकतंत्र को मजबूत करके इस विश्वास को पोषित और बढ़ा रहा है, कैसे? न्याय को कायम रखकर, समानता पर जोर देकर, लिंग, जाति, पंथ और अन्य भेदभावों के बावजूद प्रत्येक नागरिक को सशक्त बनाने केलिए हर संभव प्रयास किए गए हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि यही कारण हैकि भारत में विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग उच्च पदों पर आसीन हुए हैं और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि यदि हम लिंग पर विचार करें उदाहरण केलिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष सहित अन्य पदों पर महिलाएं काबिज रही हैं, हालाँकि विधायी निकायों में उनकी संख्यात्मक ताकत कम थी, लंबे समय से प्रतीक्षित नारी शक्ति वंदन अधिनियम से उनका अनुपात भी बढ़ेगा। राष्ट्रपति ने कहाकि नौकरशाही, सशस्त्र बलों केसाथ वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान संस्थानों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है, यह न केवल महिलाओं केलिए, बल्कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सहित अन्य सामाजिक रूपसे वंचित समूहों केलिए भी सच है, हालाँकि संवैधानिक ढांचे में न्यायपालिका का स्थान अद्वितीय है, यह संस्था भी खुले हाथों से विविधता का स्वागत करती रही है। उन्होंने कहाकि बेंच और बार में भारत की अनूठी विविधता का अधिक विविध प्रतिनिधित्व निश्चित रूपसे न्याय के उद्देश्य को बेहतर ढंग से पूरा करने में मदद करता है। उन्होंने कहाकि इस विविधीकरण प्रक्रिया को तेज़ करने का एक तरीका एक ऐसी प्रणाली का निर्माण हो सकता है, जिसमें योग्यता आधारित प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी प्रक्रिया से विभिन्न पृष्ठभूमि से न्यायाधीशों की भर्ती की जा सके।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा हो सकती है, जो प्रतिभाशाली युवाओं का चयन कर सकती है और उनकी प्रतिभा को निचले स्तर से उच्चस्तर तक पोषित और बढ़ावा दे सकती है। उन्होंने कहाकि जो लोग बेंच की सेवा करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें प्रतिभा का एक बड़ा पूल तैयार करने केलिए देशभर से चुना जा सकता है, ऐसी प्रणाली कम प्रतिनिधित्व वाले सामाजिक समूहों को भी अवसर प्रदानकर सकती है। राष्ट्रपति ने न्यायाधीशों एवं न्यायपालिका से कहाकि न्याय वितरण प्रणाली को मजबूत करने के उद्देश्य को प्राप्त करने केलिए कोईभी प्रभावी तंत्र तैयार करना मैं आपके विवेक पर छोड़ती हूं, जिसे आप उपयुक्त समझते हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि न्याय का उद्देश्य इसे सभी केलिए सुलभ बनाकर सर्वोत्तम तरीके से पूरा किया जा सकता है, इससे समानता को भी बल मिलता है, हमें खुदसे पूछना चाहिए खासकर आज जैसे मौकों पर क्या हर एक नागरिक न्याय पाने की स्थिति में है, आत्ममंथन करने पर हमें पता चलता हैकि रास्ते में कई बाधाएं हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि निस्संदेह लागत सबसे महत्वपूर्ण कारक है, यह मेरे दिल के करीब का मामला है, इसीलिए मैं मुफ्त कानूनी सहायता के दायरे का विस्तार करने केलिए विशेष रूपसे सर्वोच्च न्यायालय और सामान्य रूपसे न्यायपालिका की सभी पहलों की सराहना करती हूं, वकीलों और नागरिक समाज ने भी इसमें योगदान दिया है।
राष्ट्रपति ने कहाकि अन्य बाधाएं भी हैं उदाहरण केलिए भाषा, जो अधिकांश नागरिकों की समझ से परे है, विभिन्न भारतीय भाषाओं में फैसले उपलब्ध कराने केलिए सुप्रीम कोर्ट के हाल के निणर्य से मैं आश्वस्त हूं और अदालती कार्यवाही का लाइव वेबकास्ट भी नागरिकों को न्यायिक प्रणाली का सच्चा हितधारक बनाने में काफी मददगार साबित हो रहा है। राष्ट्रपति ने कहाकि न्याय तक पहुंच का सवाल अक्सर उन्हें तथाकथित न्याय की घंटी की याद दिलाता है, जो अक्सर हमारी पौराणिक कहानियों में दिखाई देती है, ऐसी कहानियां किसी राजा के न्याय केप्रति प्रेम को उजागर करती हैं, यह इंगित करकेकि उसने एक घंटी लगाई थी, जिसे कोईभी नागरिक दिन के किसीभी समय बजा सकता था, यदि वह न्याय चाहता हो। राष्ट्रपति ने कहाकि जब मैंने एक बच्चे के रूपमें ऐसी कहानियां सुनीं तो मुझे आश्चर्य हुआकि क्या राजा को मानसिक शांति मिलेगी, जबकि लोग हर समय उसका ध्यान आकर्षित करने केलिए चिल्लाते रहते हैं, बादमें मुझे एहसास हुआकि ऐसा राजा न्याय वितरण प्रणाली को इतना कुशल बना देताकि घंटी बजाने की जरूरत कभी-कभार ही पड़ती, इसलिए न्याय तक पहुंच में सुधार केलिए हमें समग्र प्रणाली को नागरिक केंद्रित बनाने का प्रयास करना चाहिए।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि मेरा मानना हैकि युवा पीढ़ी को इन प्रयासों में शामिल करने से उन्हें संविधान, उसके निर्माण और उसकी कार्यप्रणाली के बारेमें अधिक जानकारी देकर उस दिशा में उत्कृष्ट फल प्राप्त होंगे। उन्होंने कहाकि युवाओं की हमारे इतिहास में अधिक रुचि हो गई है और यदि वे बाबासाहेब जैसे दूरदर्शी महापुरुषों के अनुकरणीय एवं परिवर्तनकारी कार्यों के बारेमें अधिक जानेंगे तो गणतंत्र का भविष्य सुरक्षित हाथों में होगा। राष्ट्रपति ने कहाकि जैसेही हम संविधान दिवस मनाते हैं, हमें यह ध्यान रखना चाहिएकि संविधान आख़िरकार केवल एक लिखित दस्तावेज़ है, यह तभी जीवंत होता है और जीवित रहता है, जब इसकी सामग्री को व्यवहार में लाया जाए, इसके लिए व्याख्या के अभ्यास की आवश्यकता है। संविधान दिवस समारोह में देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और गणमान्य महानुभाव उपस्थित थे।