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Sunday 18 February 2024 03:04:21 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महान जैन संत आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के समाधि लेने पर गहरा दुःख व्यक्त किया और कहा हैकि उनका निधन देश केलिए अपूरणीय क्षति है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहाकि लोगों में आध्यात्मिक जागृति केलिए आचार्य विद्यासागर महाराज के बहुमूल्य प्रयासों को हमेशा याद किया जाएगा। नरेंद्र मोदी ने कहाकि वे जीवनपर्यंत ग़रीबी उन्मूलन केसाथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे। प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज केसाथ अपनी मुलाकात को भी याद किया और कहाकि वह मुलाकात उनके लिए अविस्मरणीय रहेगी। एक्स पर पोस्ट में विद्यासागर महाराज से भेंट को साझा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि विद्यासागर महाराज से उन्हें भरपूर स्नेह एवं आशीष प्राप्त हुआ है और समाज केलिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी महान संत परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए इसे देश और समाज केलिए अपूरणीय और अपने लिए व्यक्तिगत क्षति बताया।अमित शाह ने कहाकि विद्यासागर महाराज जैसे महापुरुष का ब्रह्मलीन होना, देश और समाज केलिए अपूरणीय क्षति है, उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक सिर्फ मानवता के कल्याण को प्राथमिकता दी। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूंकि ऐसे युगमनीषी का मुझे सान्निध्य, स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा। वे सृष्टि के हित और हर व्यक्ति के कल्याण के अपने संकल्प केप्रति निःस्वार्थ भाव से संकल्पित रहे। विद्यासागर महाराज ने एक आचार्य, योगी, चिंतक, दार्शनिक और समाजसेवी सभी भूमिकाओं में समाज का मार्गदर्शन किया। वे बाहर से सहज, सरल और सौम्य थे, लेकिन अंतर्मन से वज्र के समान कठोर साधक थे। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य व ग़रीबों के कल्याण के कार्यों से यह दिखायाकि कैसे मानवता की सेवा और सांस्कृतिक जागरण के कार्य एकसाथ किए जा सकते हैं। आचार्य विद्यासागर महाराज का जीवन युगों-युगों तक ध्रुवतारे के समान भावी पीढ़ियों का पथ प्रदर्शित करता रहेगा। मैं उनके सभी अनुयायियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं। आचार्य विद्यासागर महाराज आम और खास सभी केलिए अनुकरणीय और परमपूज्य हैं।
महान तीर्थंकरों की श्रेष्ठतम परंपराओं को अपने जीवन में साक्षात करने वाले जैन धर्म के महान आचार्य विद्यासागर महाराज ने 1968 में दिगंबरी दीक्षा ली थी और तबसे आजतक वे निरंतर सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, ब्रह्मचर्य की साधना करते हुए इन पंच महाव्रतों के देशव्यापी प्रचार हेतु समर्पित हो गए। लोक कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर उन्होंने अपने जीवन में सैकड़ों मुनियों एवं आर्यिकाओं को दीक्षा प्रदान की। संपूर्ण भारतवर्ष में उन्होंने अनेक स्थानों पर गौशालाएं, शिक्षा संस्थान, हथकरघा केंद्र तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की लोकमंगलकारी योजनाओं का शुभारंभ कराया। अनेक कारागारों में वहां रहरहे हजारों लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करने का अभूतपूर्व कार्य उनके आशीर्वाद से ही चल रहा है। उनकी यही अभिलाषा थीकि भारत देश अपनी उदात्त शिक्षाओं और जीवनादर्शों को लेकर पुनः खड़ा हो और वर्तमान समय में विश्व को नई दिशा प्रदान करे। उनका संपूर्ण जीवन इन आदर्शों केप्रति पूरी तरह समर्पित था। अंतिम श्वांस तक उन्होंने अपने कठोर साधनाव्रत का निर्वाह किया। लाखों लोग उन आदर्शों पर आज चल रहे हैं। ये उद्गार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने व्यक्त किए।