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Tuesday 14 May 2024 03:43:35 PM
उलानबटार (मंगोलिया)/ नई दिल्ली। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पौराणिक और साहित्यिक विरासतें श्रीरामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को 'यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर' में दर्ज किया गया है। यह समावेशन भारत केलिए एक गौरव का क्षण है, यह वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में बढ़ते एक और कदम का प्रमाण है, जो भारत की साझा मानवता को आकार देने वाली विविध कथाओं और कलात्मक अभिव्यक्तियों को पहचानने एवं सुरक्षित रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है। इन साहित्यिक उत्कृष्ट कृतियों का सम्मान न केवल उनके रचनाकारों की रचनात्मक प्रतिभा को श्रद्धांजलि है, बल्कि यह भी सुनिश्चित हैकि उनका गहन ज्ञान और कालातीत शिक्षाएं भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी और उनकी जानकारियां बढ़ाती रहेंगी।
भारतीय साहित्य और संस्कृति को गहराई से प्रभावित करने वाली और देश के नैतिक ताने-बाने एवं कलात्मक अभिव्यक्तियों को आकार देने वाली रामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन ऐसी कालजयी रचनाएं हैं, जिन्हें विश्व समुदाय के आध्यात्मिक ज्ञान शिक्षा और मनुष्य की जीवनशैली केलिए महान उपयोगी हैं। इन साहित्यिक कृतियों ने समय और स्थान से परे जाकर भारत के भीतर और विश्व समुदाय के पाठकों एवं कलाकारों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उल्लेखनीय हैकि पंडित आचार्य आनंदवर्धन ने सहृदयालोक-लोकन, विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र और श्रीरामचरितमानस की आचार्य गोस्वामी तुलसीदास ने रचना की है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक की 10वीं बैठक के दौरान यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में हुए इस कार्यक्रम में सदस्य देशों के 38 प्रतिनिधि, 40 पर्यवेक्षक और नामांकित व्यक्ति एकत्र थे। तीन भारतीय नामांकनों की वकालत करते हुए आईजीएनसीए ने 'यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर' में उनका स्थान सुनिश्चित किया।
आईजीएनसीए में कला निधि प्रभाग के डीन (प्रशासन) और विभाग प्रमुख प्रोफेसर रमेशचंद्र गौड़ ने भारत से इन प्रविष्टियों श्रीरामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन को प्रस्तुत किया। प्रोफेसर रमेशचंद्र गौड़ ने उलानबटार सम्मेलन में नामांकनों का प्रभावी ढंग से प्रस्तुतिकरण और समर्थन किया। यह उपलब्धि भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने केलिए आईजीएनसीए के समर्पण को प्रदर्शित करती है, साथही वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण और भारत की साहित्यिक विरासत की उन्नति केप्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। ऐसा पहलीबार हुआ है, जब आईजीएनसीए ने 2008 में अपनी स्थापना के बादसे क्षेत्रीय रजिस्टर में नामांकन जमा किया है। गहन विचार-विमर्श से गुजरने और रजिस्टर उपसमिति से सिफारिशें प्राप्त करने और बादमें सदस्य देशों के प्रतिनिधियों के मतदान केबाद इन नामांकनों को शामिल किया गया, जिससे 2008 में रजिस्टर की स्थापना से पहले की महत्वपूर्ण भारतीय प्रविष्टियों को चिन्हित किया गया।