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लीवर को वसा के खतरों से बचाएं-डॉ जितेंद्र सिंह

टाइप 2 मधुमेह और चयापचय संबंधी विकारों का बड़ा कारण वसा

यकृत और पित्त पर इंडो-फ्रेंच के विशेषज्ञों ने किया गंभीर विमर्श

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 5 July 2024 05:58:00 PM

save the liver from the dangers of fat - dr jitendra singh

नई दिल्ली। केंद्रीय राज्यमंत्री और मधुमेह चिकित्सा के विशेषज्ञ डॉ जितेंद्र सिंह का कहना हैकि हर तीसरे भारतीय का यकृत वसायुक्त है, जो टाइप 2 मधुमेह और अन्य चयापचय संबंधी विकारों का कारण है। डॉ जितेंद्र सिंह ने आज नई दिल्ली में यकृत और पित्त विज्ञान संस्‍थान में चयापचय (मेटाबॉलिक) यकृत रोगों को रोकने और इलाज करने केलिए एक वर्चुअल नोड इंडो-फ्रेंच लिवर एंड मेटाबोलिक डिजीज नेटवर्क (आईएनएफएलआईएमईएन) शुरू किया। डॉ जितेंद्र सिंह ने मधुमेह चिकित्सा के विशेषज्ञ के रूपमें कहाकि इंडो-फ्रेंच नोड, आईएनएफएलआईएमईएन का उद्देश्य एक सामान्य चयापचय यकृत विकार, गैर-मादक वसायुक्त यकृत रोग से संबंधित प्रमुख मुद्दों का समाधान करना है, यह स्थिति अंततः सिरोसिस और प्राथमिक यकृत कैंसर के रूपमें बदल सकती है, यह मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग एवं और भी कई गंभीर बीमारियों को बढ़ाता है। उन्होंने कहाकि वे स्वयं एक एंडोक्राइनोलॉजिस्ट के रूपमें वसायुक्त यकृत की बारीकियों, मधुमेह और चयापचय संबंधी विकारों केसाथ इसके संबंध को समझते हैं।
केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप दोनों जीवनशैली में नुकसानदायक बदलाव केलिए जिम्मेदार हैं, आहार और महत्वपूर्ण रूपसे चयापचय (मेटाबॉलिक) संबंधी लक्षण जैसे मधुमेह और मोटापा ने इस रोग को बहुत ज्यादा बढ़ाया है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि लगभग 3 में से 1 भारतीय को फैटी लीवर है, जबकि पश्चिम में अधिकांश एनएएफएलडी मोटापे से जुड़ा रोग है। भारतीय उपमहाद्वीप में एनएएफएलडी लगभग 20 प्रतिशत गैर मोटापे के रोगियों में भी होता है। राज्यमंत्री ने कहाकि भारत और फ्रांस में एल्‍कोहोलिक यकृत रोगियों की बड़ी संख्‍या है। उन्होंने कहाकि एनएएफएलडी और एएलडी दोनों ही स्टीटोसिस से स्टीटोहेपेटाइटिस, सिरोसिस और प्राथमिक लीवर कैंसर-लीवर में शुरू होने वाला कैंसर-हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा के रूपमें बढ़ने लगते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्रमें पिछले दशक में भारत के उपायों की प्रगति पर डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि भारत न केवल उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवामें, बल्कि निवारक स्वास्थ्य सेवामें भी विश्‍व में अग्रणी बन गया है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहाकि फैटी लीवर के विभिन्न चरणों का पता लगाने और गंभीर, पूर्ण विकसित बीमारियों में उनकी प्रगति केलिए सरल, कम लागत वाले नैदानिक परीक्षणों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है, दृष्टिकोण और एल्गोरिदम को भारतीय संदर्भ के अनुरूप कम कीमत वाला और ध्यान रखने योग्य होना चाहिए। डॉ जितेंद्र सिंह ने सलाह दीकि बायोमार्कर की खोज केलिए एक व्यापक ओमिक्स दृष्टिकोण का उपयोग करके यकृत रोगों की बढ़ोत्‍तरी, प्रगति और संभावित प्रबंधन को समझने केलिए आईएनएफएलआईएमईएन जैसे एक संयुक्त बहुविषयक सहयोगी कार्यक्रम की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने नागरिकों को सर्वोत्तम सेवाएं प्रदान करने और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने केलिए सरकारी और निजी क्षेत्र के सहयोग पर बल दिया है। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का समर्थन करने और उसमें सुधार करने के उद्देश्य से सरकार की पहलों और नीतियों की जानकारियां भी दीं। उन्होंने कहाकि भारत में एक बड़ी आबादी चयापचय संबंधी विकारों से प्रभावित है, क्योंकि हमारा फिनोटाइप अलग है। उन्होंने कहाकि हमें भारतीय समस्याओं केलिए भारतीय चिकित्‍सा समाधानों की ही आवश्यकता है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने अत्याधुनिक विज्ञान केलिए उदारता से धन उपलब्‍ध कराने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि वर्चुअली नोड कम समय में एक वास्तविक नोड बन जाएगा। उन्होंने यह भी आश्वासन दियाकि उनके विभाग इस नोड की हर संभव मदद करेंगे। उन्होंने यकृत और पित्त विज्ञान संस्‍थान (आईएलबीएस) के प्रस्तावित इस नए दृष्टिकोण को अपनाने केलिए विभाग और इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर द प्रमोशन ऑफ एडवांस्ड रिसर्च (सीईएफआईपीईआरए) केसाथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर की भी सराहना की। डॉ जितेंद्र सिंह ने यकृत और पित्त विज्ञान संस्‍थान के सचिव डॉ शिव कुमार सरीन और उनकी टीम और फ्रांसीसी सहयोगियों को बधाई दी। उन्होंने कम लागत और उच्च उत्पादन के माध्‍यम से चयापचय (मेटाबॉलिक) संबंधी विकारों केलिए उपचार खोजने का भी आग्रह दिया। इस नोड में 11 फ्रांसीसी और 17 भारतीय डॉक्टर संयुक्त रूपसे काम कर रहे हैं।

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