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Saturday 20 July 2024 05:46:09 PM
नई दिल्ली। भारत सरकार ने कहा हैकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने वर्ष 2020 में भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान जीवन की संभावनाओं पर आज एक अकादमिक पत्रिका जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक पेपर के निष्कर्षों को जारी किया है, जोकि अस्पष्ट और अस्वीकार्य अनुमानों पर आधारित हैं। सरकार का कहना हैकि यद्यपि लेखक राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) का विश्लेषण करने की मानक पद्धति का पालन करने का दावा करते हैं तथापि इनकी कार्यप्रणाली में गंभीर खामियां हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैकि लेखकों ने जनवरी और अप्रैल वर्ष-2021 केबीच किए एनएफएचएस सर्वेक्षण में शामिल परिवारों के एक उपसमूह पर अध्ययन करना बताया है, इन परिवारों में वर्ष 2020 में मृत्युदर की तुलना वर्ष 2019 से की है और परिणामों को पूरे देशमें लागू किया है। एनएफएचएस सर्वेक्षण देशका प्रतिनिधि तभी होता है, जब इसे समग्र रूपसे माना जाता है। इस विश्लेषण में 14 राज्यों के हिस्से से शामिल 23 प्रतिशत परिवारों को देशका प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता है। इसके अन्य महत्वपूर्ण दोष सर्वेक्षण सैंपल में संभावित चयन और रिपोर्टिंग पूर्वाग्रहों से संबंधित हैं। जिस समय ये डेटा एकत्र किए गए थे, वह कोविड-19 महामारी के चरम का दौर था।
प्रकाशित अध्ययन में विश्लेषण केलिए गलत तर्क दिया गया है और दावा किया गया हैकि भारत सहित निम्न और मध्यम आय वाले देशों में महत्वपूर्ण पंजीकरण प्रणाली कमजोर है। सरकार का कहना हैकि यह बात सत्य से बहुत दूर है, जबकि भारत में नागरिक पंजीकरण प्रणाली अत्यधिक मजबूत है और 99 प्रतिशत से अधिक मृत्यु की जानकारी देती है। यह रिपोर्टिंग वर्ष 2015 में 75 प्रतिशत से लगातार बढ़कर वर्ष 2020 में 99 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इसके डेटा से पता चलता हैकि वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में मृत्यु पंजीकरण में 4.74 लाख की वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 और 2019 में मृत्यु पंजीकरण में पिछले वर्ष की तुलना में 4.86 लाख और 6.90 लाख की समान वृद्धि हुई थी। उल्लेखनीय रूपसे सीआरएस में एक वर्ष में सभी अतिरिक्त मृत्यु महामारी के कारण नहीं होती हैं। अतिरिक्त संख्या सीआरएस में मृत्यु पंजीकरण में वृद्धि (यह वर्ष 2019 में 92 प्रतिशत थी) और अगले वर्ष में एक बड़े जनसंख्या आधार के कारण भी है।
भारत सरकार यह दृढ़तापूर्वक बताया हैकि पिछले वर्ष की तुलना में 2020 में साइंस एडवांसेज पेपर में लगभग 11.9 लाख मौतों की अतिरिक्त मृत्युदर एक सकल और अति भ्रामक आकलन है। महामारी के दौरान अत्यधिक मृत्युदर का मतलब सभी कारणों से होने वाली मृत्यु में वृद्धि है और इसे सीधे कोविड-19 के कारण हुई मृत्यु के बराबर नहीं माना जा सकता है। शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित अनुमानों की पुष्टि भारत के नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) के आंकड़ों से भी होती है। एसआरएस देशके 36 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में फैले 8842 नमूना इकाइयों में 24 लाख घरों में लगभग 84 लाख आबादी को कवर करता है, जबकि लेखक यह दिखाने केलिए बहुत कोशिश करते हैंकि वर्ष 2018 और 2019 केलिए एनएफएचएस विश्लेषण और नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण विश्लेषण के परिणाम तुलनात्मक हैं। वे यह रिपोर्ट करने में पूरी तरह विफल रहेकि वर्ष 2020 में एसआरएस डेटा वर्ष 2019 के आंकड़ों (2020 में क्रूड मृत्युदर 6.0/1000, वर्ष 2019 में क्रूड मृत्युदर 6.0/1000) की तुलना में बहुत कम, यदि कोई है तो अतिरिक्त मृत्युदर को दर्शाता है और जीवन की संभावनाओं में कोई कमी नहीं है।
केंद्र सरकार का कहना हैकि शोधपत्र में आयु और लिंग के आधार पर ऐसे परिणाम दिए गए हैं, जो भारत में कोविड-19 पर शोध और कार्यक्रम के आंकड़ों के विपरीत हैं। शोधपत्र में दावा किया गया हैकि महिलाओं और कम आयुवर्ग (विशेषकर 0-19 वर्ष के बच्चों) में अतिरिक्त मृत्युदर अधिक थी। कोविड-19 के कारण दर्ज की गई लगभग 5.3 लाख मृत्यु के आंकड़े, साथही समूहों और रजिस्ट्री से प्राप्त शोध आंकड़े लगातार महिलाओं की तुलना में पुरुषों में कोविड-19 के कारण अधिक मृत्युदर (2:1) और अधिक आयु वर्ग (0-15 वर्ष के बच्चों की तुलना में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में कई गुना अधिक) को दर्शाते हैं। प्रकाशित शोधपत्र में ये असंगत और अस्पष्ट परिणाम इसके दावों में किसीभी तरह के विश्वास में कमी लाते हैं। निष्कर्ष के तौरपर भारत में वर्ष 2020 में सभी कारणों से होनेवाली अतिरिक्त मृत्युदर पिछले वर्ष की तुलना में साइंस एडवांसेज पेपर में बताई गई 11.9 लाख मृत्यु से काफी कम है। प्रकाशित पेपर पद्धतिगत रूपसे त्रुटिपूर्ण है और ऐसे परिणाम दर्शाता है, जो अस्पष्ट और अस्वीकार्य हैं।