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Friday 5 July 2013 08:38:57 AM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश 2013 को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को लेकर संसद में भारी विवाद रहा है। सरकार का कहना रहा है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश एक ऐतिहासिक पहल है, जिसके जरिए जनता को पोषण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। इससे लोगों को काफी मात्रा में अनाज वाजिब दरों पर पाने का अधिकार मिलेगा। खाद्य सुरक्षा विधेयक का खास जोर ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति, महिलाओं और बच्चों की जरूरतें पूरी करने पर होगा, अगर लोगों को अनाज नहीं मिल पाया तो उन्हें खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जायेगा। इस विधेयक में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्यवस्था है, अगर कोई जनसेवक या अधिकृत व्यक्ति इसका अनुपालन नहीं करेगा तो उसके खिलाफ शिकायत की सुनवाई हो सकेगी।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक की खास बातें हैं-दो तिहाई आबादी को मिलेगा ऊंची सब्सिडी वाला अनाज। देश की 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को हर महीने बहुत ऊंची सब्सिडी वाली दरों पर यानी तीन रूपये, दो रूपये, एक रूपये प्रति किलो चावल, गेहूं और मोटा अनाज पाने का अधिकार होगा। इससे देश की 1.2 अरब आबादी के दो तिहाई भाग को लक्षित सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (टीपीडीएस) के अंतर्गत सब्सिडी वाला अनाज पाने का हक मिलेगा। अति गरीब को 35 किलो प्रति परिवार अनाज मिलता रहेगा। समाज के अति गरीब वर्ग के हर परिवार को हर महीने अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत तीन रूपये, दो रूपये, एक रूपये की दरों पर सब्सिडी वाले अनाज की आपूर्ति जारी रहेगी। यह भी प्रस्ताव है कि राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों को मौजूदा दर पर अनाज की आपूर्ति होती रहेगी और इसे तभी कम किया जायेगा, जब पिछले तीन वर्षों तक उनकी औसत उठान इससे कम हो। प्रस्तावित पात्रता के अनुसार 2013-14 के लिए कुल अनुमानित वार्षिक खाद्यान्न की आवश्यकता 612.3 लाख टन है और इसकी लागत लगभग 1,24,724 करोड़ रूपये होगी।
अखिल भारतीय स्तर की शहरी आबादी के 50 प्रतिशत और ग्रामीण जनसंख्या के 75 प्रतिशत भाग को इस योजना के अंतर्गत लाभान्वित करने का फैसला केंद्र सरकार करेगी। इस मामले में पात्र परिवारों की पहचान की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्र शासित प्रदशों पर छोड़ दी गई है, जो इसके लिए अगर चाहें तो सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना के आँकड़ों के आधार पर मापदंड बना सकते हैं। इसमें महिलाओं और बच्चों को विशेष रूप से पोषण संबंधी सहायता प्रदान की गई है। विधेयक में महिलाओं और बच्चों के पोषण संबंधी समर्थन पर खासतौर पर जोर दिया जा रहा है। गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताएं निर्धारित पोषण संबंधी मापदंडों के अनुरूप पोषक भोजन पाने की हकदार होंगी। उन्हें कम से कम 6 हजार रुपये मातृत्व लाभ भी मिलेगा। छह महीने से 14 वर्ष तक की आयु वर्ग तक के बच्चे घर पर राशन पाने अथवा पोषण संबंधी मापदंडों के आधार पर गर्म पका भोजन पाने के हकदार होंगे।
केंद्र सरकार, राज्यों या संघ शासित प्रदेशों को निधियां प्रदान करेगी, जिसे वे अनाज की आपूर्ति कम होने पर इस्तेमाल कर सकेंगे। अगर अनाज की आपूर्ति बिल्कुल नहीं की जाती तो ये व्यक्ति भोजन पाने के हकदार होंगे और संबंधित राज्य या संघ शासित सरकार को उन्हें ऐसा खाद्य सुरक्षा भत्ता देना होगा, जैसा कि केंद्र सरकार लाभार्थियों के लिए निर्धारित करे। अतिरिक्त वित्तीय बोझ के संबंध में राज्यों की चिंता को दूर करने के लिए केंद्र सरकार खाद्यान्नों की राज्य से बाहर ढुलाई और रख-रखाव तथा उचित दर दुकानदारों केमुनाफे के बारे में राज्यों को सहायता उपलब्ध कराएगी। जिसके लिए मानक विकसित किये जाएंगे। इससे खाद्यान्नों की समय पर ढुलाई और प्रभावी रख-रखाव सुनिश्चित हो जाएगा। विधेयक में खाद्यान्नों की घर-घर तक आपूर्ति, कंप्यूटरीकरण सहित सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का अनुप्रयोग, लाभार्थियों की विशिष्ट पहचान के लिए 'आधार' का लाभ खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए टीपीडीएस आदि के अधीन उपभोक्ता वस्तुओं की विविधता को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार लाने के प्रावधान शामिल हैं।
महिला सशक्तिकरण-सबसे बुजर्ग महिला घर की मुखिया होगी। अठारह साल या अधिक की महिला राशन कार्ड जारी करने के लिए घर की मुखिया होगी। अगर ऐसा नहीं है तो सबसे बड़ा पुरूष सदस्य घर का मुखिया होगा। राज्य और जिला स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित होगा, जिसमें नियत अधिकारी तैनात किए जाएंगे। राज्यों को नए निवारण तंत्र की स्थापना पर होने वाले व्यय को बचाने के लिए अगर वे चाहें तो जिला शिकायत निवारण अधिकारी (डीजीआरओ) को राज्य खाद्य आयोग के लिए वर्तमान तंत्र का प्रयोग करने की अनुमति होगी। निवारण तंत्र में कॉल सेंटर, हेल्प-लाइन आदि भी शामिल किये जा सकते हैं। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित रिकॉर्ड सार्वजनिक करने के लिए सामाजिक लेखा परीक्षा और सतर्कता समितियां स्थापित करने के प्रावधान भी किये गये हैं। जिला राहत का अनुपालन करने में असफल रहने के दोषी पाये जाने पर शिकायत निवारण अधिकारी की सिफारिश पर जनसेवक या नियत अधिकारी पर जुर्माना लगाने का भी विधेयक में प्रावधान है।