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Wednesday 31 July 2024 05:32:28 PM
नई दिल्ली। संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने उपलब्ध अभिलेखों की जांच में पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर को सिविल सेवा परीक्षा-2022 में नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करने का दोषी पाया है और इसके लिए उसकी अनंतिम उम्मीदवारी रद्द करदी है एवं उसे यूपीएससी की सभी आगामी परीक्षाओं एवं चयनों सेभी स्थायी रूपसे वंचित कर दिया है। यूपीएससी ने 18 जुलाई 2024 को सिविल सेवा परीक्षा-2022 की अनंतिम रूपसे अनुशंसित उम्मीदवार पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिसमें अपनी पहचान को गलत तरीके से पेश करके परीक्षा नियमों में निर्धारित प्रदत्त सीमा से अधिक प्रयास करने केलिए उसे 25 जुलाई 2024 तक एससीएन में अपना जवाब प्रस्तुत करना था। हालांकि उसने 4 अगस्त 2024 तकका अतिरिक्त समय मांगा था, ताकि वह अपने जवाब केलिए आवश्यक दस्तावेज एकत्र कर सके।
संघ लोकसेवा आयोग ने पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर के अनुरोध पर सावधानीपूर्वक विचार किया और न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने केलिए उसे 30 जुलाई 2024 को दोपहर 3:30 बजे तक का समय दिया था, ताकि वह एससीएन में अपना जवाब प्रस्तुत कर सके। पूजा खेडकर को स्पष्ट रूपसे बता दिया गया थाकि यह उसके लिए अंतिम अवसर है और इससे आगे उसे कोई अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा। उसको स्पष्ट शब्दों में यहभी बताया गया थाकि यदि उपरोक्त तिथि या समय तक कोई जवाब नहीं मिलता है तो यूपीएससी उससे कोई और संदर्भ लिए बिना आगे की कार्रवाई करेगा। अतिरिक्त समय के बावजूद वह निर्धारित समय के भीतर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने में विफल रही। पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर के मामले को देखते हुए यूपीएससी ने वर्ष 2009 से 2023 यानि 15 वर्ष के सीएसई के 15000 से अधिक अंतिम रूपसे अनुशंसित उम्मीदवारों के उपलब्ध अभिलेखों की उनके द्वारा प्राप्त प्रयासों की संख्या के संबंध में गहन जांच की है। इस विस्तृत जांच केबाद पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर के मामले को छोड़कर, किसी अन्य उम्मीदवार को सीएसई नियमों केतहत प्रदत्त संख्या से अधिक प्रयासों का लाभ उठाते हुए नहीं पाया गया है।
पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर के एकमात्र मामले में यूपीएससी की मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) मुख्य रूपसे इस तथ्य के कारण उसके प्रयासों की संख्या का पता नहीं लगा सकी, क्योंकि उसने न केवल अपना नाम, बल्कि अपने माता-पिता का नामभी बदल लिया था। यूपीएससी एसओपी को और सशक्त करने की प्रक्रिया में है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकेकि भविष्य में ऐसा मामला दोबारा ना आ सके। जहांतक झूंठे प्रमाणपत्र (विशेष रूपसे ओबीसी और पीडब्ल्यूबीडी श्रेणियों) जमा करने की शिकायतों का सवाल है, यूपीएससी यह स्पष्ट करता हैकि वह प्रमाणपत्रों की केवल प्रारंभिक जांच करता है जैसेकि-प्रमाणपत्र सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया है या नहीं, प्रमाणपत्र किस वर्षसे संबंधित है, प्रमाणपत्र जारी करने की तिथि, प्रमाणपत्र पर कोई ओवरराइटिंग है या नहीं, प्रमाणपत्र का प्रारूप आदि। आमतौर पर यदि प्रमाणपत्र सक्षम प्राधिकारी ने जारी किया है तो उसे असली माना जाता है। यूपीएससी केपास हरसाल उम्मीदवारों द्वारा जमा किएगए हजारों प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच करने का न तो अधिदेश है और न ही साधन। हालांकि यह समझा जाता हैकि प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच और सत्यापन का कार्य सौंपे गए अधिकारी करते हैं।