Monday 5 August 2024 01:10:18 PM
ब्रिगेडियर राजाराम यादव
'सृजनहार का उपहार' पुस्तक में ब्रह्मांड के सृजन के पीछे सृजनहार की मंशा क्या है? दिमाग़ को सबसे पहले यही जिज्ञासा घेरती है। प्रसिद्ध आध्यात्मिक रचनाकार और लेखक ऋषिपुत्र सुबेसिंह सत्यदर्शी की यह कृति पृथ्वी पर जीवन के उद्धेश्य और भविष्य के सुंदर चित्रण केसाथ इसके तथ्यों से भलिभांति अवगत कराती है। लेखक पुस्तक में अपनी बात को वैज्ञानिक व्यावहारिक शास्त्र सम्मत और सार्वभौमिक नियमों की कसौटियों पर परखकर प्रमाणिकता केसाथ प्रस्तुत करता है। लोक-परलोक में व्यक्ति का जीवन सुखी, सम्पन्न, समृद्ध और सफल कैसे हो सकता है? जैसे गूढ़ विषयों का सुबेसिंह सत्यदर्शी ने अपनी पुस्तक में बड़ी सरलता से वर्णन किया है। लेखक ने पुस्तक में अपनी लंबी खोज शोध और आध्यात्मिक यात्रा के अनुभवों से प्राप्त अनुभूति को पूरे विश्वास से साझा किया है।
जाहिर हैकि वर्तमान में हर किसी केपास सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं, फिरभी उत्तर प्राप्त करने केलिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए, ताकि जीव के कल्याण केलिए अपना श्रेष्ठ, सर्वोत्तम और यथायोग्य योगदान दिया जा सके, इसलिए परंपराओं और आवश्यकताओं के मध्य संतुलन बनाकर चीजों का संज्ञान लेना चाहिए। लेखक ने अपनी अनुभूति में लीक से हटकर कुछ बातों पर प्रकाश डाला है। अद्वैत से आरम्भ करके गुणी वस्तु अपने गुणों द्वारा जानी जाती है तक वह पाठकों को ले जाता है। सृष्टि है तो सृष्टिकर्त्ता भी है, इस तथ्य को सिद्ध करने केलिए वह सृष्टि में उपस्थित जीवन और नियमों दोनों को कवच बनाता है, क्योंकि जहां नियम होते हैं, वहां नियंता और उद्धेश्य दोनों सुनिश्चित रहते हैं।
अब जीवन का उद्धेश्य और नियंता की मंशा क्या है? यह स्पष्ट करने के लिए 'सृजनहार का उपहार' पुस्तक लिखी गई है। स्वर्ग-नरक कहीं और नहीं पृथ्वी पर ही हैं। परमपिता परमात्मा सर्वव्यापक नहीं सर्वोपस्थित है। मोक्ष में आत्मा का किसी में विलय नहीं, बल्कि प्रत्येक आत्मा का सदैव अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व बना रहता है। लख-चौ+राशि की व्याख्या अलग ढंग से की गई है। लेखक का दावा हैकि मोक्ष की प्राप्ति तक मनुष्य, मनुष्य योनी में ही जन्म लेता रहता है, न कण-कण में परमात्मा है और न ही प्रत्येक जीव में आत्मा है। पृथ्वी पर हम पूर्णता की प्रक्रिया से प्रसार होने केलिए भेजे गए हैं। पूर्णता की प्राप्ति के पश्चात हम परमधाम में सृजनहार केसाथ सृजन का कार्य करेंगे। पृथ्वी पर कार्य परिश्रम से और परमधाम में कार्य संकल्प से पूर्ण होते हैं।
ऋषिपुत्र सुबेसिंह सत्यदर्शी ने पुस्तक में हम सब ब्रह्मा हैं पूर्णता की प्राप्ति केबाद सबका अपना-अपना ब्रहमांड होगा 'One Person Own Planet' का दर्शन स्पष्ट किया है। पुस्तक तथ्यों से सिद्ध करती हैकि सदुपयोग पुण्य है और दुरुपयोग पाप है। देवी-देवताओं की प्रतिमाएं एक विज्ञान है एक संदेश एवं एक दर्शन भी है। नर से नारायण वाली कहावत सौ प्रतिशत सच है। लेखक बतातें हैंकि लक्ष्य को प्राप्त करने केलिए दो विरोधी प्रकृतियों को एक साथ लाया गया है। वर्तमान में हम दो भौतिक और आध्यात्मिक प्रकृतियों के आपसी सहयोग सेही पृथ्वी पर जीवन जी रहे हैं। यही संघर्ष का कारण है। संघर्ष को नियंत्रित करने केलिए लेखक की मंशा और अपनी आत्मा की अंतिम चाहत को समझकर कर्म करने की आवश्यकता है।
सच्चाई के प्रति समर्पित और शंकाओं के समाधान केलिए संवाद के समर्थक होने के नाते लेखक ने कहा हैकि पृथ्वी पर और आकाश के नीचे एक कार्य को होने अर्थात पूर्ण करने केलिए एक कारण, एक समय, एक साधन और एक सिद्धांत सुनिश्चित है। सही समय पर सही साधन केसाथ सही सिद्धांत का सही-सही प्रयोग ही निर्धारित परिणाम प्रदान करता है। पुस्तक में कहा गया हैकि संसार में लोगों की दो प्रकार की वृति भोगवादी एवं मोक्षवादी हैं और वे अपने-अपने कर्मानुसार आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा मुमुक्षु की श्रेणियों में बट गए हैं। अर्थार्थी लोगों द्वारा छेड़ी गई नाक, मूंछ और पगड़ी की झूंठी, भ्रमित लड़ाई में आम लोग फंस गए हैं, हमें उनकी समझ से नहीं, बल्कि अपनी समझ से अपना भविष्य बनाना चाहिए। गलती सुधारें, अतीत को याद रखें, वर्तमान में जिएं और भविष्य की ओर देखें।
पुस्तक के लेखक का एक अद्भुत व्यक्तित्व है। उन्होंने अगम परिश्रम त्याग, कठिन तपस्या के बल से प्राप्त प्रभु कृपा को ज्ञानपूर्वक प्रस्तुत किया है। लेखक का कहना हैकि ज़िंदगी एक उत्सव बने और उसमें उसकी सृष्टि हरपल आनंद करे। जीवन में हर प्राणी भी आनंद ही चाहता है। फिर आनंद मिलता क्यों नहीं है? आनंद न मिलने का कारण और मिलने के सूत्र दोनों का पुस्तक में विस्तार से वर्णन किया गया है। सृजनहार का उपहार पुस्तक जीवन की वास्तविक सच्चाई प्रकट ही नहीं करती है, बल्कि पूर्णता के सरल उपाय भी बताती है। यह कृति अमेज़ॅन पर उपलब्ध है।