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रास में असंयमित भाषा से बेहद आहत सभापति

राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने निराशाभरा वक्तव्य जारी किया

राज्यसभा में विपक्ष के सदस्यों का असहयोग और व्यवहार निराशाजनक

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 10 August 2024 01:37:05 PM

chairman jagdeep dhankhar (file photo)

नई दिल्ली। राज्यसभा के 265वें सत्र के समापन पर सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के व्यवहार और कार्यप्रणाली पर गहरी निराशा व्यक्त की है। उन्होंने अपने वक्‍तव्‍य में कहा हैकि भोजनावकाश के पश्चात सदन की कार्यवाही तीन बार स्थगित की गई, जबकि यह आशा और अपेक्षा थीकि विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सदस्य घनश्याम तिवारी की उपस्थिति में मेरे कक्ष में सौहार्दपूर्ण ढंग से हल हो जानेवाले मुद्दे के बाद सदन सुचारु रूप से चलेगा, लेकिन सदस्‍य सदन से बाहर चले गए। उन्होंने कहाकि इसके पूर्व इन सदस्‍यों को मेरे कक्ष में और मेरे समक्ष यह पूरा अवसर मिलाकि वे संसद के अपने दशकों पुराने अनुभवों केसाथ विषयों को हल कर लें, वे सौहार्दपूर्ण मेरे कक्ष से विदा हुए थे, मैंने स्पष्ट रूपसे यह विचार मन में रखाकि इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से शांतकर दिया गया है और अब इसपर और विचार करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सभापति जगदीप धनखड़ ने कहाकि अगले दिन या उसके बाद कुछ नहीं हुआ, एक अंतराल केबाद, अचानक आज प्रश्नकाल शुरू होने से ठीक पहले, जयराम रमेश ने बिना अनुमति के यह मुद्दा उठाया, तब मैंने संकेत दियाकि यदि अभी भी कोई मुद्दा है, तो मैं इस मामले पर अपने कक्ष में विचार करूंगा, इसके परिणामस्वरूप एक ऐसा दृश्य उत्पन्न हुआ, जिसका पूरा सदन गवाह बना और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा सहित बहुत वरिष्ठ सदस्यों को अपनी पीड़ा व्यक्त करने का अवसर मिला। उन्होंने कहाकि मैंने सदन की कार्यवाही इस बातको ध्यान में रखते हुए स्थगित कीकि जब सदन के सभी सदस्य उपस्थित होंगे तो सदन बेहतर तरीके से कार्य करेगा, चूंकि सदन के प्रत्येक सदस्य ने संविधान के तहत शपथ ली है और सभी सदस्‍य बड़े पैमाने पर लोगों की सेवा करने केलिए नियुक्त हुए हैं, इसलिए दुर्भाग्य से तीनों दलीलों पर अपेक्षित प्रत्‍युत्‍तर नहीं मिला।
सभापति जगदीप धनखड़ ने कहाकि मैं सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने केलिए काम करना जारी रखूंगा, ताकि उन्हें अवसर मिलें, वे अपना संवैधानिक कर्तव्य निभा सकें, अपनी ऊर्जा और विशेषज्ञता का उपयोग भारत के कल्याण और लोगों की सेवा में कर सकें, जहां मानवता का छठवां हिस्सा निवास करता है। उन्होंने सदन से अनुपस्थित सदस्यों से अपील कीकि वे अपने भीतर गहराई से विचार करें कि उनके निर्णय और सदन से उनके बहिर्गमन से उच्चसदन, ज्येष्ठ सदन की गौरवशाली परंपरा पर क्‍या प्रभाव पड़ेगा। सभापति ने कहाकि उन्‍हें यह सोचना हैकि इस सदन के सदस्‍यों से लोगों की क्‍या अपेक्षा है और राष्ट्र के विकास केलिए कैसे जीना है, जब सदन स्‍थगित किया जा रहा था, तो मुझे बाहर विभिन्न टीवी चैनलों पर सदस्यों की प्रतिक्रिया देखने का अवसर मिला। उन्होंने कहाकि मैं सभी लोगों को यह बताना चाहता हूंकि इस संस्था के सम्मान केलिए, इस सदन के प्रत्येक सदस्य की गरिमा के सम्मान केलिए, मैंने यह सुनिश्चित करने में पूरी सावधानी बरती हैकि संसद सदस्य केलिए जो व्यवहार, आचरण उचित नहीं है, वह लोकतंत्र के मंदिर से बाहर न जाए, इसलिए संसद टीवी, जिसके साथ इस सदन में होने वाली सभी घटनाएं जुड़ी हुई हैं, को मैं स्व-नियमन के अधीन करता रहा हूं।
सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि यह देखते हुए कि ग़लत विमर्श फैलाने की कोशिशें की जा रही हैं, जो कुछ पावन नहीं हो सकता है, जो तथ्य पर आधारित नहीं है, वह कुछ सदस्यों द्वारा बोला और फैलाया जा रहा है, इसलिए मैं यह सुनिश्चित करना चाहूंगाकि देशके लोगों को वास्तविकता का पता चले। उन्होंने कहाकि मैं प्रत्येक सदस्य का बहुत सम्मान करता हूं, किसी केसाथ मेरा कोई व्यक्तिगत विवाद नहीं है, लेकिन मैं बिना किसी आधार के असंयमित भाषा से बहुत आहत हूं। उन्होंने कहा हैकि इन सदस्यों का मीडिया केपास जाना, सबका ध्‍यान खींचना, मुझे यकीन हैकि देशके सभी लोग उसी बातपर ध्‍यान देंगे, जो उन्‍हें दिखाया जारहा है, मेरे कक्ष, राज्यसभा के अध्यक्ष के कक्ष, वरिष्ठ सदन, उच्चसदन पर यह ठप्‍पा लगाया गया हैकि वहां जो कुछ भी होता है, वह बंद दरवाजे के पीछे होता है। उन्होंने कहाकि यह गलत फैलाया जा रहा हैकि मैंने घनश्याम तिवारी केसाथ जो चर्चा की थी, वह केवल उनके साथ अकेले में थे, यदि सत्य के पंख होते हैं तो राष्ट्र उड़ान भरता है, यदि असत्य, जो सत्य से बहुत दूर है, जोर पकड़ता है तो यह परेशान करने वाला है।
सभापति जगदीप धनखड़ ने कहाकि यह सुनिश्चित करने का हमारा संकल्प कि राज्यसभा के पवित्र परिसर को, लोकतंत्र को अस्थिर करने की जमीन नहीं बनने दिया जाएगा, ऐसा सभी सदस्यों ने व्यक्त किया है और यह स्वागत योग्य है, इसलिए सदन से अनुपस्थित सदस्यों से मेरी अपील उन्हें आत्ममंथन करने, आत्मनिरीक्षण करने, राष्ट्र केप्रति अपने कर्तव्य के बारेमें सोचने, संविधान के तहत अपनी शपथ को ध्यान में रखने और आगामी सत्रों में रचनात्मक तरीके से जोरदार भागीदारी के लिए तैयार करेगी। उन्होंने कहाकि सत्र न चलने के दौरान मैं काम करना जारी रखूंगा, प्रत्येक सदस्य तक पहुंचने की कोशिश करूंगा, मुझे जो गहरी ठेस पहुंची है, उसे नज़रअंदाज करते हुए, क्योंकि कर्तव्य किसी भी व्यक्तिगत चोट या भावनाओं से ऊपर होता है। उन्होंने सभी सदस्यों से आग्रह किया हैकि कृपया वे सदन के सभी सदस्यों से संपर्क करें, ताकि हम सब सदन में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर, दलीय स्वार्थ से ऊपर उठकर, देश और दुनिया को यह संदेश देंकि यह देश, जो सबसे जीवंत, क्रियाशील लोकतंत्र है, जो लोकतंत्र की जननी है, जो सबसे पुराना और सबसे बड़ा लोकतंत्र है, वह पूरे विश्व केलिए आशा का स्रोत बना रहेगा।

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