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Monday 2 September 2024 03:14:57 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु कल नई दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के दो दिवसीय राष्ट्रीय जिला न्यायपालिका सम्मेलन के समापन सत्र में शामिल हुईं। उन्होंने इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के ध्वज और प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी स्थापना से 75 वर्ष के दौरान विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की न्याय व्यवस्था के सजग प्रहरी के रूपमें अपना अमूल्य योगदान दिया है। उन्होंने इसके लिए उच्चतम न्यायालय सहित भारतीय न्यायपालिका से जुड़े वर्तमान और अतीत के सभी लोगों के अनुकरणीय योगदान की प्रशंसा की। राष्ट्रपति ने कहाकि न्याय केप्रति आस्था और श्रद्धा की भावना हमारी परंपरा का हिस्सा है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के ध्येय वाक्य ‘यतो धर्म: ततो जय:’ का उल्लेख करते हुए कहाकि न्याय और अन्याय का निर्णय करने वाले सभी न्यायालय धर्मक्षेत्र हैं, जिसकी तरफ धर्म अथवा न्याय हो उस पक्षकार की विजय सुनिश्चित कराना ही सर्वोच्च न्यायालय का ध्येय वाक्य है और इसीलिए यह भारत की पूरी न्यायपालिका का भी आदर्श वाक्य है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि सुप्रीम कोर्ट ने अनेक कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनसे लोगों में न्यायिक प्रणाली के बारेमें जागरुकता, विश्वास एवं उससे लगाव भी बढ़ेगा। उन्होंने कहाकि हम सभी लोग न्यायाधीश को भगवान मानते हैं और प्रत्येक न्यायाधीश एवं न्यायिक अधिकारी का नैतिक दायित्व हैकि वे धर्म, सत्य और न्याय का सम्मान करें एवं जिलास्तर पर यह नैतिक दायित्व न्यायपालिका का प्रकाश स्तंभ है। उन्होंने कहाकि जिलास्तर की अदालतें करोड़ों लोगों के मन में न्यायपालिका की छवि निर्धारित करती हैं एवं इनके माध्यम से लोगों को संवेदनशीलता, तत्परता और सुलभता केसाथ न्याय दिलाना ही न्यायपालिका की सफलता का आधार है। राष्ट्रपति ने कहाकि हालके वर्षों में जिलास्तर पर न्यायपालिका की अवसंरचना, सुविधाओं, प्रशिक्षण और मानव संसाधनों की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। उन्होंने कहाकि लंबित मामलों की संख्या बड़ी चुनौती है और न्यायालयों को 32 वर्ष से अधिक समय तक लंबित मामलों के गंभीर मुद्दे पर विचार करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने सुझाव दियाकि विशेष लोक अदालत सप्ताह जैसे कार्यक्रमों का अधिक से अधिक आयोजन किया जाना चाहिए, इससे लंबित मामलों से निपटने में मदद मिलेगी। राष्ट्रपति ने यह जानकर खुशी और विश्वास व्यक्त कियाकि सम्मेलन के एकसत्र में मुकद्मों के प्रबंधन से संबंधित कई पहलुओं पर चर्चा की गई है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि भारतीय संविधान पंचायतों और नगरपालिकाओं के जरिए स्थानीय स्तरपर विधायी और कार्यकारी निकायों की शक्ति एवं जिम्मेदारियों का प्रावधान करता है। उन्होंने पूछाकि क्या हम स्थानीय स्तरपर इनके समतुल्य न्याय प्रणाली के बारेमें सोच सकते हैं। उन्होंने कहाकि स्थानीय भाषा और स्थानीय परिस्थितियों में न्याय प्रदान करने की व्यवस्था से न्याय को हर किसीके घर तक पहुंचाने के आदर्श को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। राष्ट्रपति ने कहाकि न्यायपालिका के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनके समाधान केलिए सभी हितधारकों के समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है, उदाहरण केलिए साक्ष्य और गवाहों से संबंधित मुद्दों का समाधान खोजने केलिए न्यायपालिका, सरकार और पुलिस प्रशासन को मिलकर काम करना चाहिए। राष्ट्रपति ने महिलाओं और बच्चों का विशेष उल्लेख करते हुए कहाकि जब दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध में अदालती फैसले एक पीढ़ी बीत जाने केबाद आते हैं तो आम आदमी को लगता हैकि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है। उन्होंने कहाकि यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू हैकि कुछ मामलों में साधन संपन्न लोग अपराध करने केबाद भी बेखौफ और खुलेआम घूमते रहते हैं, जो लोग अपराधों के पीड़ित होते हैं, वे इस डर में जीते हैं जैसेकि उन्होंने ही कोई अपराध किया हो।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने न्यायपालिका का इस ओर ध्यान दिलाते हुए कहाकि गांवों के ग़रीब लोग अदालत जाने से डरते हैं, वे बहुत मजबूरी में ही अदालत की न्याय प्रक्रिया में भागीदार बनते हैं, कई बार वे चुपचाप अन्याय सह लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता हैकि न्याय केलिए लड़ना उनके जीवन को और अधिक कष्टमय बना सकता है। उन्होंने कहाकि उनके लिए गांव से दूर एकबार केलिए भी न्यायालय जाना मानसिक और आर्थिक दबाव का कारण बन जाता है, ऐसे में कई लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकतेकि स्थगन की संस्कृति के कारण ग़रीब लोगों को कितना दर्द सहन करना पड़ता है, इस स्थिति को बदलने केलिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिएं। राष्ट्रपति ने कहाकि जेल में बंद महिलाओं के बच्चों के सामने पूरा जीवन शेष होता है, हमारी प्राथमिकता उनके स्वास्थ्य और शिक्षा केलिए किए जारहे कार्यों का आकलन और सुधार करने से जुड़ी होनी चाहिए। उन्होंने कहाकि किशोर अपराधी अपने जीवन के शुरुआती चरण में होते हैं, उनकी सोच और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उपाय करना, उन्हें जीवन जीने केलिए उपयोगी कौशल प्रदान करना और उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना भी न्यायपालिका की प्राथमिकता होनी चाहिए।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने खुशी जताईकि हालके वर्षों में न्यायिक अधिकारियों के चयन में महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है, इसके कारण कई राज्यों में कुल न्यायिक अधिकारियों में महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। उन्होंने कहाकि उन्हें उम्मीद हैकि न्यायपालिका से जुड़े सभी लोग महिलाओं के बारेमें पूर्वाग्रहों से मुक्त विचार, व्यवहार और भाषा के आदर्श प्रस्तुत करेंगे। राष्ट्रपति ने प्रसन्नता व्यक्त कीकि सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधान को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया है, इसके तहत पहलीबार जेल में बंद और निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि का एक तिहाई हिस्सा काट चुके लोगों को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है। उन्होंने विश्वास जतायाकि आपराधिक न्याय की नई प्रणाली को इस तत्परता से लागू करके देश की न्यायपालिका न्याय के एक नए युग की शुरुआत करेगी।