जगत मर्तोलिया
Saturday 6 July 2013 08:52:54 AM
पिथौरागढ़। धारचूला के बाज़ार में आज से चाय मिलनी बंद हो गई, दो-चार दिन में खाना भी मिलना शायद बंद हो जायेगा। आपदा की त्रासदी से कराह रहा पिथौरागढ़ जिले का धारचूला व मुनस्यारी का इलाका सबसे राहत और न्याय की उम्मीद कर रहा है। आपदा की त्रासदी में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, केंद्रीय मंत्री हरीश रावत का दौरा हो चुका है। सांसद व विधायक कई बार इलाके का दौरा कर चुके हैं। आपदा मंत्री भी धारचूला आ चुके हैं। सन् 1977 में तवाघाट में आयी भीषण आपदा की त्रासदी के दौरान भी धारचूला का इलाका पिथौरागढ़ से केवल एक दिन सड़क मार्ग से कटा था। धारचूला में अस्सी साल से अधिक उम्र के वृद्धों की जुबान पर यह बात है कि पहली बार बीस दिन से सड़क बंद होने के बाद उपजी स्थितियों का वह अब सामना नहीं कर रहे हैं।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यहां की सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही थीं कि वह पहला राज्य है, जिसने आपदा के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया है। आपदा प्रबंधन के नाम पर होने वाली लूट खसौट की लंबी फेहरिस्त है। यूनेस्को से लेकर तमाम विदेशी वित्तीय ऐजेंसीज से मिलने वाली करोड़ों की राशि आपदा प्रबंधन के नाम पर उत्तराखंड में खपाई जा रही है। उत्तराखंड में कार्यशाला, प्रशिक्षण, आपदा से पूर्व तथा आपदा के बाद निपटने की बात पर खर्च तो करोड़ों होते हैं, लेकिन उनसे क्या निकल रहा है? यह इस बार जमीन पर धारचूला व मुनस्यारी में दिखा है। बात यहां से शुरू करते हैं कि हैलीकॉप्टरों से जो राशन के पैकेट भेजे गये, उनकी पैंकिंग तक यहां के कर्मचारियों को नहीं आती है। जिस कारण हैलीकाप्टर से फेंके गये राशन के पैकेट आसमान में ही फट गये और आपदा पीड़ितों को चावल-आटा केवल चाटने को मिला। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी प्रबंधन कितना कुशल है।
इस बीच हम धारचूला में हैं, आपदा के बाद जब 21 जून को यहां पहली बार आये थे तो निगालपानी, गोठी के निकट मोटर मार्ग में पैदल रास्ता बचा था। इस बार फिर 3 जुलाई को जब फिर धारचूला पहुंचे तो इन दोनों जगहों पर पैदल चलने के लिए रास्ता मात्र तक नहीं था। सीमा सड़क संगठन के इंजीनियर मोटर मार्ग नहीं खोल पाये। इस पर तो बात होनी चाहिए, लेकिन पैदल रास्ता भी बचा नहीं पाये यह बात तो यहां शर्मसार कर रही है। इतने दिन बीत गए हैं, केवल दो स्थानों में सड़क खोली गयी है। कहने को तो यह राष्ट्रीय राजमार्ग है। इस सड़क के बंद होने से धारचूला बाजार का नजारा कुछ इस तरह है कि राशन की दुकानों के बारदाने, जो सामानों से भरे थे, खाली हो चुके हैं। गोदाम सूने हो गये हैं। एक राशन दुकानदार ने बताया कि आज तक जो माल नहीं बिका था, वह भी इस बार बिक गया। सब्जी खाना तो यहां के लोगों के लिए अब एक स्वप्न हो गया है। यहां 19 रूपये किलो चावल 100 रूपये में भी नहीं मिल रहा है। यहां से बलुवाकोट कुछ पैदल-कुछ जीप में जाकर राशनों के कट्ठे अपने पीठ में लादकर ला रहे हैं और सरकार को आईना दिखा रहे हैं कि इस आपदा से उपजी भूख से निपटने के लिए उसके पास कोई प्रबंधन नहीं है। जो जनता कर रही है, वह भी सरकार नहीं कर सकती है।
जौलजीबी से धारचूला के राष्ट्रीय राजमार्ग में कालिका से आगे मार्ग बंद है। यहां से आगे के पैंतीस से अधिक ग्राम पंचायतें और तीस हजार की आबादी चावल के दाने के लिए तरस रही है। धारचूला बाजार से आगे व्यांस, चौंदास, दारमा घाटी, तल्ला दारमा घाटी, खुमती क्षेत्र, गलाती क्षेत्र, रांथी से लेकर खेत तक का इलाका राशन के एक-एक दाने के लिए मोहताज है। धारचूला व मुनस्यारी के आपदा पीड़ित ही नहीं बल्कि अब साठ हजार की जनसंख्या को दाल, आटा, चावल की आवश्यकता है। इस पर सरकार का ध्यान अभी तक तो कतई नहीं है। धारचूला से आगे के और धारचूला तक जोड़ने वाले मोटर मार्ग कब खुलेंगे इसका जवाब सीमा सड़क संगठन दे नहीं पा रहा है। चीन तथा नेपाल सीमा के बार्डर का यह हाल है, यहां सुरक्षा तो एक सवाल है ही, क्या इस सिस्टम पर हम कोई भरोसा कर सकते हैं यह चिंता भी एक बात है, लेकिन हम उन हजारों लोगों की बात कर रहे हैं, जिनके घर में आटा चावल अब खतम होने को है। इस पूरे प्रक्रिया में कहीं भी सरकार तथा प्रशासन के कामकाज में यह बात नहीं है कि वह राशन आम लोगों तक पहुंचाने का कोई विकल्प दे पाया है। सोई हुई सरकार, जन प्रतिनिधियों के पीछे भाग रही नौकरशाही क्या इस इलाके के लोगों को एकमात्र राशन दे पायेगी?
अखबार में खबर है कि जौलजीबी से मदकोट का मोटरमार्ग दो माह में खुलेगा। गोरीछाल घाटी के सैकड़ों गांवों की बीस हजार की आबादी का भी राशन खत्म होने को है। इनके बारे में क्या बहुगुणा सरकार ने कुछ सोचा है? यही उत्तर मिलेगा कि-नहीं। मुनस्यारी के जोहार तथा रालम घाटी में लोग आज भी फंसे हुए हैं। कन्ज्योति के 35 आपदा पीड़ितों को आज तक नहीं निकाला गया है। यही हाल दारमा घाटी का भी है। यहां अधिकारी कर्मचारी बहुत हैं, लेकिन उनके पास इस आपदा से निपटने का कोई सरकारी दिशा-निर्देश तक नहीं है। धौलीगंगा जल विद्युत परियोजना के छिरकिला बांध पर भी लोगों के सवाल हैं, नेपाल ने तो भारत पर यह आरोप भी लगा दिया है कि बांध का पानी एकसाथ खुलने से नेपाल को भारी नुकसान हो गया है।
भारतीय राजदूत के ना-नुकुर के बाद यह सवाल लोगों की जुबां पर है कि 15 जून की रात से ही बारिश शुरू हो गयी थी तो क्यों 17 जून को बारिश का पानी एक साथ खोला गया? ऐलागाड़ का कस्बा इसलिए बह गया कि टनल से जो अतिरिक्त पानी छोड़ा गया उसे ऐलागाड़ गधेरे के पानी ने पूरे वेग से रोक दिया और उसने ऐलागाड़ के कस्बे का नामोनिशान मिटा दिया। एनएचपीसी यह कह चुकी है कब उसकी परियोजना शुरू होगी वह कह नहीं सकती। करोड़ों का नुकसान अलग से है। पहाड़ों में परियोजना तथा बांध के समर्थक इस सवाल पर भी जवाब देंगे? मुख्यमंत्री ने सोबला, न्यू, कन्च्यौति, खिम के 171 परिवारों को यहां राजकीय इंटर कॉलेज धारचूला में बुलाकर ठहराया है। एक सप्ताह के बाद भी प्रभावित परिवार सिमेंट के फर्श में बिना चटाई दरी के लेट रहे हैं। उन्हें देखने वाला कोई नहीं है। इन परिवारों की सुध क्यों नहीं ली गयी, क्योंकि हमारे आपदा प्रबंधन महकमें के पास कार्य करने के लिए कोई रूटमैप है ही नहीं। आज इतना ही फिर कल से और क्षेत्र की स्थिति पर मौजूद राहत कार्यों की ख़तरनाक हकीकत बयां करते रहेंगे।