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Friday 4 October 2024 12:37:42 PM
नई दिल्ली। भारत की मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूर कर लिया है, जिससे भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या 11 हो गई है, इन भाषाओं का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है और शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इनके संरक्षण, अध्ययन और शोध को बढ़ावा मिलेगा। नरेंद्र मोदी सरकार का मानना हैकि शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक के रूपमें काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं। भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को शास्त्रीय भाषाओं के रूपमें भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया था, जिसमें तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया और शास्त्रीय भाषा की स्थिति केलिए कुछ मानदंड निर्धारित किए गए, जोकि इस प्रकार हैं-इसके अंतर्गत आरंभिक ग्रंथों या एक हजार वर्षों से अधिक के दर्ज इतिहास की उच्च पुरातनता। प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ी द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है। साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए। शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के उद्देश्य से प्रस्तावित भाषाओं का परीक्षण करने केलिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषा विशेषज्ञ समिति (एलईसी) का गठन किया गया था। गौरतलब हैकि गैर भाजपा सरकारों में इन भाषाओं की घोर उपेक्षा होती आई है।
नवंबर 2005 में मानदंडों को संशोधित किया गया और संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया, इसके प्रारंभिक ग्रंथों/ अभिलेखित इतिहास की 1500-2000 वर्षों की अवधि में उच्च पुरातनता माना गया। यह प्राचीन साहित्य/ ग्रंथों का एक संग्रह है, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है। साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए। शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक दौर से अलग होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बादके रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है। भारत सरकार ने अब तक जिन भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया है वे हैं-तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया। वर्ष 2013 में महाराष्ट्र सरकार का एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था, जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था, जिसे एलईसी को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा केलिए मराठी की सिफारिश की थी। मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने केलिए 2017 में मंत्रिमंडल केलिए मसौदा नोट पर अंतर मंत्रालयी परामर्श के दौरान गृह मंत्रालय ने मानदंडों को संशोधित करने और इसे सख्त बनाने की सलाह दी।
पीएमओ ने अपनी टिप्पणी में कहाकि मंत्रालय यह पता लगाने के लिए इस बात पर विचार कर सकता हैकि और कितनी अन्य भाषाओं केइस हेतु पात्र होने की संभावना है। इस बीच पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने केलिए बिहार, असम, पश्चिम बंगाल से भी प्रस्ताव प्राप्त हुए। इस क्रम में भाषा विज्ञान विशेषज्ञ समिति (साहित्य अकादमी के अधीन) ने 25.07.2024 को एक बैठक में सर्वसम्मति से मानदंडों को संशोधित किया। साहित्य अकादमी को एलईसी केलिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है। ज्ञान से संबंधित ग्रंथ, विशेष रूप से कविता, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य के अलावा गद्य ग्रंथ। शास्त्रीय भाषाएं और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या अपनी शाखाओं केबाद के रूपोंसे अलग हो सकते हैं। समिति ने यह भी सिफारिश कीकि इन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा माने जाने केलिए संशोधित मानदंडों को पूरा करना होगा। शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने केलिए कई कदम उठाए हैं। इसमें शामिल मुख्य राज्य महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) हैं। इससे व्यापक सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभाव का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार होगा।
संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने केलिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, अनुसंधान को बढ़ावा देने और विश्वविद्यालय के छात्रों और तमिल भाषा के विद्वानों केलिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई थी। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को और बढ़ाने केलिए मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन केलिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए थे। इन पहलों के अलावा शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्रमें उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने केलिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषाओं को दिए जानेवाले लाभों में शास्त्रीय भाषाओं केलिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ और शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार केलिए केंद्र शामिल हैं। बताया गया हैकि भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूपमें शामिल करने से खासकर शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में रोज़गार के अहम अवसर पैदा होंगे। इसके अतिरिक्त इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोज़गार पैदा होंगे।