स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 18 October 2024 03:59:11 PM
नई दिल्ली। विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने नई दिल्ली में कला प्रदर्शनी ‘साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर’ के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया। इस चार दिवसीय प्रदर्शनी का आयोजन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने सांकला फाउंडेशन, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस के सहयोग से किया है। डॉ एस जयशंकर ने इस अवसर पर कहाकि भारत की विकास यात्रा पर्यावरण संरक्षण से गहराई से जुड़ी हुई है। उन्होंने विभिन्न पहलों के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों के कल्याण केलिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए कहाकि अंत्योदय योजना का मूल उद्देश्य हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान से है और यह सुनिश्चित करती हैकि विकास यात्रा में कोईभी समुदाय पीछे न छूटे। डॉ एस जयशंकर ने कहाकि भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पर्यावरण संरक्षण में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। उन्होंने कहाकि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-2022 में किए गए संशोधनों का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को विकास आवश्यकताओं केसाथ संतुलित करना है।
विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की सफलता का श्रेय आदिवासी समुदायों और वनवासियों को दिया, जिनकी संरक्षकता ने जंगलों को पनपने में मदद की है, क्योंकि ये समुदाय सक्रिय रूपसे अवैध शिकार का मुकाबला करते हैं। उन्होंने जनभागीदारी की अवधारणा का जिक्र करते हुए इस बातपर जोर दियाकि जब सभी नागरिक नीतियों को अपनाते हैं, तभी वे सबसे प्रभावी होती है। पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने वीडियो संदेश में इस बातपर जोर दियाकि सह अस्तित्व की भावना दर्शाती हैकि आदिवासी और वनवासी समुदाय किस प्रकार प्रकृति केसाथ संतुलन बनाकर सद्भाव में रहते हैं, उसकी रक्षा करते हैं और उसका सम्मान करते हैं। परिवर्तन मंत्री ने इस दृष्टिकोण की प्रशंसा उस लिहाज से की है, जब दुनिया जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और मिट्टी के क्षरण (रेगिस्तानीकरण) जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। इस दौरान ‘हिडन ट्रेजर्स: इंडियाज हेरिटेज इन टाइगर रिजर्व्स’ पुस्तक और ‘बिग कैट्स’ पत्रिका का भी विमोचन किया गया। इसके पश्चात सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया, जिसमें संस्कृति और पर्यटन मंत्री डॉ गजेंद्र सिंह शेखावत ने हिस्सा लिया। प्रदर्शनी का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के संरक्षण के सिद्धांतों को पहचानना और इन समुदायों और पर्यावरण केबीच सह अस्तित्व संबंधों को उजागर करना है।
कला प्रदर्शनी भावी पीढ़ियों को इस संबंध की सराहना करने केलिए प्रेरित करना चाहती है और आदिवासी कलाकारों को बाहरी समाज केसाथ जुड़ने का अवसर प्रदान करती है। प्रदर्शनी में देशभर के 22 बाघ अभयारण्यों से संबद्ध 200 से अधिक पेंटिंग और 100 कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं, इसमें गोंड, वारली, पाटा चित्रा, भील और सोहराई जैसे आदिवासी कला रूपों को प्रदर्शित किया गया है एवं बिक्री केलिए उपलब्ध कराया गया है, जिससे होने वाली आय सीधे आदिवासी कारीगरों को लाभांवित करेगी। सभी कलाकृतियां बेहतर सामग्रियों का उपयोग करके तैयार की गई हैं, जो स्वदेशी समुदायों की पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को दर्शाती हैं। प्रदर्शनी में भाग लेनेवाले 49 कलाकारों में से 10 मध्य प्रदेश के बाघ अभयारण्यों से हैं, जबकि अन्य महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, झारखंड और मिजोरम से हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 1,70,000 से अधिक गांव वन क्षेत्रों केपास हैं और भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार देश में तीस करोड़ से अधिक लोग अपनी आजीविका केलिए वनों पर निर्भर हैं। बाघ संरक्षण के क्षेत्रमें विश्व में पाए जानेवाले कुल बाघों की 75 प्रतिशत आबादी भारत में है। वर्ष 2023 तक 55 बाघ अभयारण्यों में अनुमानित 3,682 बाघ थे। कार्यक्रम में जितेंद्र कुमार महानिदेशक (वन) और विशेष सचिव, डॉ गोबिंद सागर भारद्वाज सदस्य सचिव एनटीसीए और भरत लाल सदस्य सचिव एनएचआरसी और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।