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Tuesday 22 October 2024 05:46:56 PM
असम में कैंडी लीफ (स्टीविया रेबाउडियाना बर्टोनी) एक पौधा है, जो अपनी प्राकृतिक, लेकिन बहुत कम कैलोरीयुक्त मिठास संबंधी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। एक नए अध्ययन के अनुसार इसमें एंडोक्राइन, मेटाबॉलिक, प्रतिरक्षा और हृदय संबंधी बीमारियों के लिए चिकित्सीय गुण भी हैं, क्योंकि यह सेलुलर सिग्नलिंग सिस्टम पर प्रभाव डालता है। इसे आम भाषा में मीठी पत्ता, शुगर लीफ या मीठी तुलसी भी कहा जाता है। असम दुनियाभर में स्टीविया का निर्यात करता है। पूर्वोत्तर परिषद (भारत सरकार) ने भी इसकी बढ़ती मांग और उपयोग के कारण पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने केलिए स्टीविया की खेती की क्षमता पर ध्यान दिया है।
गुवाहाटी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी उन्नत अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी) के शोधकर्ताओं की एक टीम डॉ असिस बाला एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर आशीष के मुखर्जी निदेशक और पियाली देवरॉय शोध छात्रा ने असम के स्टीविया के चिकित्सीय गुणों को साबित करने केलिए इसके औषधीय गुणों, सेलुलर सिग्नलिंग तंत्र पर प्रभावों का अग्रणी शोध किया है। शोधकर्ताओं ने इन विट्रो और इन विवो तकनीकों केसाथ नेटवर्क फार्माकोलॉजी को एकीकृत कर दिखाया कि पौधे ने एक महत्वपूर्ण सेलुलर सिग्नलिंग मार्ग को बाधित करने केलिए प्रोटीन किनेज सी (पीकेसी) के फॉस्फोराइलेशन का उपयोग किया। पीकेसी सूजन, ऑटोइम्यून, एंडोक्राइन और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से जुड़ा हुआ है। स्टीविया पीकेसी फॉस्फोराइलेशन को कम करता है, जो सूजन पैदा करने वाली प्रक्रिया को बदल देता है। यह अंतःस्रावी चयापचय और कार्डियोवैस्कुलर समस्याओं का एक महत्वपूर्ण कारण है।
कैंडी लीफ पर अध्ययन में पहलीबार इस क्षेत्रमें स्टेविया की औषधि युक्त संभावनाओं को दर्शाया गया है। अध्ययन में यहभी पाया गयाकि सक्रिय स्टेविया अणु एमपीके केसाथ तीव्र परस्पर क्रिया करते हैं। फ़ूड बायोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित इस शोध कार्य ने स्टेविया की क्षमता को उजागर किया है और प्रतिरक्षात्मक अंतःस्रावी और हृदय संबंधी समस्याओं केलिए नए लक्ष्यों की पहचान की है। इसका मधुमेह, टाइप 1, टाइप 2, ऑटोइम्यून मधुमेह, प्री-डायबिटीज़, दीर्घकालिक सूजन से संबंधित ऑटोइम्यून बीमारी-रुमेटॉइड गठिया, क्रोनिक किडनी रोग और उच्च रक्तचाप जैसे हृदय संबंधी रोग, वास्कुलोपैथी और इसी तरह के अन्य रोगों पर चिकित्सीय प्रभाव हो सकता है। यह शोध अध्ययन स्टेविया के उस पहलू को उजागर करता है, जिसके बारेमें कभी जानकारी नहीं थी। शोध दल द्वारा उपयोग की जानेवाली वैज्ञानिक विधि: लक्ष्य की पहचान करने केलिए नेटवर्क फ़ार्माकोलॉजी और फिर लक्ष्य सत्यापन केलिए आणविक डॉकिंग का प्रदर्शन किया। उसकेबाद एचपीटीएलसी के इन विट्रो और इन विवो अध्ययनों ने स्टेविया को मान्य किया, जिसमें प्रोटीन किनेज सी फॉस्फोराइलेशन को बाधित करने में स्टेविया रेबाउडियाना की प्रभावशीलता केबारे में जानकारी प्राप्त हुई।