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Tuesday 12 November 2024 04:26:02 PM
नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तेजीसे बदलती दुनिया में उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने केलिए देशमें ‘अडाप्टिव डिफेंस’ बनाने केलिए नरेंद्र मोदी सरकार के अटूट संकल्प को अभिव्यक्ति दी है। वे आज मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान में आयोजित दिल्ली डिफेंस डायलॉग के उद्घाटन समारोह को संबोधित कररहे थे। इस अवसर पर ‘अडाप्टिव डिफेंस: आधुनिक युद्ध के बदलते परिदृश्य को समझना’ विषय पर चर्चा की गई। रक्षामंत्री ने कहाकि अडाप्टिव डिफेंस एक रणनीतिक दृष्टिकोण है, जिसमें किसी देश की सैन्य और रक्षा प्रणाली उभरते खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने केलिए निरंतर विकसित होती है। उन्होंने कहाकि अडाप्टिव डिफेंस केवल जो हुआ है, उसका जवाब देना नहीं है, बल्कि जो हो सकता है, उसका पूर्वानुमान लगाना और उसके लिए सक्रिय रूपसे तैयारी करना है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहाकि संक्षेप में इसमें अप्रत्याशित और बदलती परिस्थितियों के बावजूद अनुकूलन, नवाचार, विकास करने की मानसिकता और क्षमता विकसित करना शामिल है। उन्होंने कहाकि परिस्थितिजन्य जागरुकता, रणनीतिक और सामरिक स्तरों पर लचीलापन, मजबूती, चपलता और भविष्य की प्रौद्योगिकियों केसाथ एकीकरण अडाप्टिव डिफेंसको समझने और बनाने की कुंजी हैं, जो हमारे रणनीतिक निर्माण और परिचालन प्रतिक्रियाओं का मंत्र होना चाहिए। राजनाथ सिंह ने अडाप्टिव डिफेंस को न केवल एक रणनीतिक विकल्प, बल्कि एक आवश्यकता बताया। उन्होंने कहाकि जैसे-जैसे हमारे राष्ट्र केलिए खतरे सामने आते हैं, वैसे-वैसे हमारी रक्षा प्रणाली और रणनीतियां भी तैयार होनी चाहिएं, हमें भविष्य की सभी आकस्मिकताओं केलिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहाकि यह सिर्फ हमारी सीमाओं की रक्षा करने से कहीं अधिक है, यह हमारे भविष्य को सुरक्षित करने के संदर्भ में है।
रक्षामंत्री ने कहाकि युद्ध की पारंपरिक धारणाएं उभरती प्रौद्योगिकियों और विकसित होती रणनीतिक साझेदारियों से नया रूप ले रही हैं, इसके साथ ही खतरों और चुनौतियों की बदलती प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र बलों के भीतर नए दृष्टिकोण, सिद्धांत और संचालन की अवधारणाएं उभर रही हैं। उन्होंने वर्तमान युग को ग्रे जोन और हाइब्रिड युद्ध बताया, जहां बचाव के पारंपरिक तरीकों को चुनौती दी गई है। उन्होंने कहाकि उभरती चुनौतियों से निपटने केलिए निरंतर अनुकूलन सबसे अच्छी रणनीति है। राजनाथ सिंह ने भारत के सामने आनेवाली सुरक्षा संबंधी अनेक चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जिसमें पारंपरिक सीमा संबंधी खतरों से लेकर आतंकवाद, साइबर हमले और हाइब्रिड युद्ध जैसे अपरंपरागत मुद्दे शामिल हैं। उन्होंने कहाकि सरकार ने बदलते भूराजनीतिक और तकनीकी परिदृश्य में एक अनुकूल रक्षा रणनीति की आवश्यकता को चिन्हित किया है और एक मजबूत व आत्मनिर्भर इकोसिस्टम बनाने केलिए कई पहल की हैं, इसमें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की स्थापना, तीनों सेनाओं केबीच एकजुटता को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में सुधार करना और दुनियाभर में नई रक्षा साझेदारियां करना शामिल है।
रक्षामंत्री ने कहाकि डिजिटलीकरण और सूचना की अधिकता के युग में दुनिया अभूतपूर्व पैमाने पर मनोवैज्ञानिक युद्ध का सामना कर रही है। उन्होंने कहाकि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ सूचना युद्ध के खतरे का मुकाबला करने के क्रम में अनुकूल रक्षा रणनीतियों को लागू करने केलिए दृढ़ संकल्प है। राजनाथ सिंह ने साइबरस्पेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में उभरती प्रौद्योगिकियों पर काम करनेवाले अग्रणी देशों में भारत को शामिल रखने केलिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहाकि भारत के वृह्द आकार और संभावना वाले देश केपास रक्षा क्षेत्रमें एआई के आसन्न वैश्विक नवाचारों से निपटने की क्षमता केसाथ-साथ साधन भी होना चाहिए। रक्षामंत्री ने कहाकि ड्रोन और स्वार्म प्रौद्योगिकियां युद्ध के तरीकों और साधनों में मौलिक परिवर्तन ला रही हैं। उन्होंने कहाकि भारत दुनिया का ड्रोन हब बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, इस संबंध में कई पहल की गई हैं, इससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी, बल्कि हमारे मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम में भी महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। उन्होंने कहाकि हम पहले सेही विश्वसनीय प्रमाणन तंत्र के माध्यम से अनुसंधान और विकास को बेहतर बनाने तथा इस क्षेत्रमें भारतीय बौद्धिक संपदा निर्माण को सुविधाजनक बनाने केलिए काम कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त हमने आईडेक्स और अदिति की योजनाओं के माध्यम से नवाचार केलिए पुरस्कार भी पेश किए हैं।
राजनाथ सिंह ने रक्षा और सुरक्षा की समकालीन समस्याओं से निपटने केलिए एक सहयोग आधारित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहाकि इन मामलों में राज्यों के अलावा अराजक तत्व भी शामिल हैं, मौजूदा भू-राजनीतिक गतिशीलता और सीमापार के मुद्दे रक्षा केलिए एक सहयोगी दृष्टिकोण को आवश्यक बनाते हैं। उन्होंने कहाकि साइबरस्पेस, एआई, क्वांटम, नैनोटेक्नोलॉजी की विशाल क्षमता की अस्पष्टताएं, यथासंभव ज्ञान, दृष्टिकोण, सूचना और रणनीतियों के सहयोग और साझाकरण की मांग करती हैं। रक्षामंत्री ने विश्वास व्यक्त कियाकि डीडीडी संयुक्तता और एकीकरण के पहलुओं का विश्लेषण करने में मदद करेगा। उन्होंने कहाकि संयुक्तता को अलग-अलग देशों के सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए, हमारा परस्पर जुड़ाव एक वरदान है, साथही यह एक चुनौती भी है, अगर हमारे खतरे सीमापार से हैं तो हमारे समाधान भी वैसे ही होने चाहिएं। रक्षामंत्री का मानना हैकि आज ऐसा तकनीकी समाधान मिलना दुर्लभ है, जो पूरी तरह से एकही देश में डिजाइन किया गया हो, वहीं विकसित हो, वहीं निर्मित हो और उसका इस्तेमाल भी वहीं किया जा सके। उन्होंने कहाकि अर्थव्यवस्थाओं की व्यापकता और विशेषज्ञता के स्रोतों दोनों का तर्क यह मांग करता हैकि समाधान तार्किक रूपसे सहयोगात्मक होने चाहिएं और हमारा परस्पर जुड़ाव भूगोल की सीमाओं के बिना ऐसे सहयोग की अनुमति देता है और सुविधा प्रदान करता है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विश्वास व्यक्त कियाकि नीति निर्माताओं, सैन्य विशेषज्ञों और विद्वानों को एकसाथ लाकर डीडीडी देश के रक्षा परिदृश्य के विस्तार केलिए नवीन विचारों और सहयोगी रणनीतियों को उत्पन्न करेगा। उन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण पहल बताया जो एक व्यापक दृष्टिकोण पर जोर देते हुए रणनीतिक दृष्टि को मजबूत करने और राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा में योगदान देने वाली जागरुक चर्चाओं को सुविधाजनक बनाने की आकांक्षा रखती है। उन्होंने कहाकि हम रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने, स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने और उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुकूल होने के तरीके खोजने का इरादा रखते हैं। रक्षामंत्री ने समकालीन खतरों से निपटने केलिए सरकार के मजबूत कदमों का जिक्र किया, जिनमें रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 का अनावरण, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों की अधिसूचना, एफडीआई सीमा में वृद्धि और रक्षा उत्कृष्टता केलिए नवाचार पहल का शुभारंभ शामिल है। उन्होंने कहाकि रक्षा क्षेत्रमें आत्मनिर्भरता पर ध्यान देने वाला आत्मनिर्भर भारत अभियान हमारी दृष्टि का आधार है, स्वदेशी क्षमताओं पर जोर विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने के हमारे उद्देश्य के अनुरूप है, इसे अलगाववादी दृष्टिकोण के रूपमें नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि हम मेक इन इंडिया पहल के व्यापक ढांचे के भीतर विदेशी निवेश, सहयोग, संयुक्त अनुसंधान एवं विकास और सह उत्पादन केलिए बहुत खुले हैं।
राजनाथ सिंह ने कहाकि मेक इन इंडिया अभियान ने हल्के लड़ाकू विमान तेजस, आईएनएस विक्रांत और डीआरडीओ के मिसाइल कार्यक्रमों जैसी स्वदेशी परियोजनाओं के माध्यम से सफलता देखी है। उन्होंने कहाकि आज हम रक्षा वस्तुओं के बढ़ते निर्यात में अपने प्रयासों के फल भी देख रहे हैं, वर्तमान में भारत 100 से अधिक देशों को रक्षा वस्तुओं का निर्यात कर रहा है, जिसमें 2023-24 में रक्षा निर्यात केलिए शीर्ष तीन गंतव्य अमेरिका, फ्रांस और आर्मेनिया हैं और हमें 2029 तक 50000 करोड़ रुपये के रक्षा निर्यात का लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद है। उन्होंने कहाकि डीडीडी भारत में रक्षा और सुरक्षा के बहुमुखी समाधानकेलिए एमपी-आईडीएसए का एक प्रमुख मंच है। उन्होंने कहाकि युद्ध का परिदृश्य लगातार जटिल होरहा है, इसलिए इस मंच को भारत की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा रणनीतियों के उभरते परिदृश्य पर चर्चा केलिए डिजाइन किया गया है। उन्होंने कहाकि इस संवाद का उद्देश्य रक्षा विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और सैन्य क्षेत्रकी हस्तियों केबीच विचारों का आदान-प्रदान करना और सहयोग को बढ़ावा देना है। इस अवसर पर डीजी एमपी-आईडीएसए अंबेसडर सुजान आर चिनॉय, वायुसेना के उपप्रमुख एयर मार्शल एसपी धारकर, नागरिक और सैन्य अधिकारी तथा देश एवं विदेश से प्रतिष्ठित प्रतिभागी मौजूद थे।