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पोलियो मुक्त भारत की उल्लेखनीय गाथा

स्वास्थ्य कार्यक्रम व सफलताएं दूसरे देशों केलिए प्रेरणास्रोत

भारत वैश्विक पोलियो उन्मूलन के लक्ष्य के लिए भी प्रतिबद्ध

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 20 November 2024 12:14:15 PM

the remarkable story of polio-free india

भारत को वर्ष 2014 में पोलियो मुक्त होने का दर्जा मिलना वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे महत्वपूर्ण सफलताओं मेंसे एक है। भारत में पोलियो उन्मूलन कोई एक दिन की सफलता नहीं, बल्कि दशकों के समर्पित प्रयासों का परिणाम है, जिसका आरंभ वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल से भारत के जुड़ने और सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम केतहत राष्ट्रीय टीकाकरण प्रयासों से पूरा हुआ। नए टीके के एकीकरण, नई निगरानी प्रणालियों और सरकार के नेतृत्व वाले टीकाकरण अभियानों ने भारत को पोलियो मुक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उपलब्धि भारत सरकार के अथक प्रयासों और प्रमुख वैश्विक संगठनों केसाथ साझेदारी से संभव हुई, जिनमें यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, रोटरी इंटरनेशनल और रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) प्रमुख हैं। भारत में टीकाकरण का आरंभ 1978 में हुआ, जिसका उद्देश्य बच्चों को विभिन्न बीमारियों से बचाने केलिए टीके लगाना था। वर्ष 1985 में इस कार्यक्रम को सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) नाम दिया गया, जिसे शहरी क्षेत्रोंसे ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्‍तारित किया गया।
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम बदलते समय केसाथ कई राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहल का अभिन्न अंग बन गया, इसमें ग्रामीण आबादी के स्वास्थ्य की बेहतरी केलिए 2005 में आरंभ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भी शामिल है। यूआईपी आज विश्‍व के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है, इसमें सालाना 2.67 करोड़ से अधिक नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल होती है और टीकाकरण से निवारणीय 12 बीमारियों केलिए नि:शुल्‍क टीके लगाए जाते हैं। यूआईपी केतहत लक्षित बीमारियों में पोलियो को सबसे पहले रखा गया था। पोलियो उन्मूलन की प्रमुख उपलब्धियों में हैं जैसे-वर्ष 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम के आरंभ के साथ ही पोलियो उन्‍मूलन की दिशामें भारत ने महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। वर्ष 1994 में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर दिल्ली में बड़े पैमाने पर पहला टीकाकरण अभियान चलाया गया, जो राष्ट्रीय पल्स पोलियो अभियान का अग्रिम चरण था, इसमें ओरल पोलियो वैक्सीन इस्तेमाल किया गया, जिसके अंतर्गत 10 लाख से अधिक बच्चों तक इसकी खुराक पहुंचाई गई और सुनिश्चित किया गयाकि पांच वर्ष से कम आयु के प्रत्‍येक बच्चे को इसकी खुराक पिलाई जाए, बादमें यही सफलता पूरे देश में दोहराई गई।
‘दो बूंद जिंदगी की’ नारे केसाथ यह अभियान पोलियो उन्मूलन की दिशामें भारत के प्रयासों का पर्याय बन गया। पल्स पोलियो अभियान सामूहिक टीकाकरण केलिए आवश्यक थाही भारत ने इसके साथ सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम केतहत अपने नियमित टीकाकरण प्रयासों को भी सुदृढ़ बनाया। यूआईपी के अंतर्गत पोलियो, डिप्थीरिया, पर्टुसिस (काली खांसी), टेटनस, खसरा, हेपेटाइटिस बी की रोकथाम और तपेदिक के नि:शुल्‍क टीके प्रदानकर सुनिश्चित किया गयाकि राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत बच्चों को ये टीके लगाएं जाएं। भारत का लक्ष्य इन निरंतर प्रयासों से प्रतिरक्षा का उच्‍चस्तर बनाए रखना और टीके से नियंत्रित की जा सकने वाली बीमारियों को फिरसे उभरने से रोकना था। भारत ने शीत भंडारण प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिससे टीकों को सही तापमान पर संग्रहीत और परिवहन करना सुनिश्चित हुआ है। राष्ट्रीय कोल्ड चेन प्रशिक्षण केंद्र (एनसीसीटीई) और इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (ईवीआईएन) स्थापित किए जाने से वैक्सीन भंडारण और वितरण व्‍यवस्‍था बेहतर तरीके से अंजाम देने में मदद मिली है। वैश्विक पोलियो उन्‍मूलन रणनीति के अनुरूप भारत ने पोलियो उन्मूलन की अपनी प्रतिबद्धता के तहत 2015 में निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन देना आरंभ किया। आईपीवी पोलियो के विरुद्ध अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है, खासतौर पर टाइप 2 पोलियो वायरस से निपटने में यह काफी कारगर रहा है। पहले धीरे-धीरे छह राज्यों में आरंभ किए जाने केबाद इसे वर्ष 2016 तक देशभर में विस्तारित कर दिया गया।
वैश्विक स्तरपर ट्राइवेलेंट ओपीवी से बाइवेलेंट ओपीवी में बदलाव केबाद यह परिवर्तन आवश्यक हो गया था, जिसमें टाइप 2 स्ट्रेन शामिल नहीं था, आईपीवी ने इसमें निरंतर सुरक्षा सुनिश्चित की। भारत की पोलियो उन्मूलन सफलता काफी हदतक कठोर निगरानी प्रणालियों के कारण संभव हुई, जिसमें एक्यूट फ्लेसीड पैरालिसिस निगरानी और आसपास के माहौल की निगरानी प्रमुख रही। निगरानी प्रणाली से भारत को किसीभी पोलियो प्रसार का प्रकोप तुरंत पता लगाने और इससे निपटने के उपायों में मदद मिली। इसमें 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों में अस्पष्टीकृत पक्षाघात के मामलों की निगरानी की जाती है, क्योंकि यह पोलियो का एक सामान्य लक्षण है। पोलियो वायरस का पता लगाने केलिए सीवेज के पानी की निगरानी करने से उन स्थानों की पहचान करने में भी मदद मिली, जहां वायरस का फैलाव है। उच्चस्तर की निगरानी रखकर भारत किसीभी अवशिष्ट पोलियो वायरस संचरण का पता लगाकर उसे नियंत्रित कर सका। भारत में पोलियो उन्मूलन की सफलता का एक मुख्य कारण केंद्र और राज्य सरकारों की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति रही। सभी स्तरों पर राजनीतिक नेताओं ने निरंतर समर्थन दिया और यह सुनिश्चित कियाकि इसके लिए संसाधन आवंटित हो और इस कार्यक्रम पर आवश्यक ध्यान दिया जाए। सामुदायिक सहभागिता की भी पोलियो उन्‍मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही।
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों और स्थानीय नेताओं ने इसके उन्‍मूलन केलिए जागरुकता बढ़ाने में मदद की। उन्‍होंने टीकाकरण के महत्व के बारेमें लोगों को बताया और सुनिश्चित कियाकि सबसे दूरदराज क्षेत्रों मेंभी बच्चों को टीका लगाया जाए, पल्स पोलियो अभियान घर-घर जाकर टीकाकरण प्रयासों पर बहुत निर्भर था और इसीसे दुर्गम क्षेत्रोंमें बच्चों तक पहुंचा जा सका। भारत में पोलियो वायरस का अनियंत्रित अंतिम मामला 2011 में पश्चिम बंगाल के हावड़ा में पाया गया था, उसके बाद देश ने अपने निगरानी प्रयासों को और बढ़ा दिया एवं रोकथाम के उपायों केबाद अनियंत्रित पोलियो वायरस का कोई और मामला अबतक सामने नहीं आया है। भारत को पोलियो मुक्त प्रमाणन केलिए उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के कड़े मानदंडों को पूरा करना पड़ा, इनमें तीन साल तक अनियंत्रित पोलियो वायरस संक्रमण न फैलना, मजबूत निगरानी प्रणाली और वायरस के किसी बचे अंश को समाप्‍त करना शामिल था। इस कठोर प्रमाणन प्रक्रिया में क्षेत्रीय पोलियो प्रमाणन आयोग ने व्यापक जांच और मूल्यांकन किया। भारत को आधिकारिक तौरपर 27 मार्च 2014 को पोलियो मुक्त घोषित किया गया, यह देश में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तरपर सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल का उदाहरण है।
पोलियो मुक्त घोषित होने केबाद भी भारत इस स्थिति को बनाए रखने के कई निवारक उपाय कर रहा है, जैसे-भारत उच्‍चतम प्रतिरक्षण स्तर बनाए रखने और इससे किसी बच्‍चे के न छूटने केलिए प्रतिवर्ष राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस और उपराष्ट्रीय टीकाकरण दिवस का आयोजन करता है। एएफपी और पर्यावरण निगरानी से निरंतर निगरानी के साथही अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर टीकाकरणकर स्थानिक क्षेत्रों से पोलियो के फिरसे पहुंचने का जोखिम कम करने का अभियान जारी है। भारत ने टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत कई नए टीके लगाने शुरू किए हैं, इनमें रोटावायरस, न्यूमोकोकल, कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) और मीजल्स-रूबेला (एमआर) वैक्सीन शामिल हैं। ये अन्य टीका निवारक रोगों की रोकथाम के व्यापक प्रयासों का हिस्सा हैं। मिशन इंद्रधनुष का लक्ष्य टीकाकरण को 90 प्रतिशत तक विस्‍तारित करना है, इसमें अल्‍प टीकाकरण दर वाले दुर्गम क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। मिशन इंद्रधनुष चरण में टीकाकरण की पहुंच में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और बाल स्वास्थ्य केप्रति भारत की प्रतिबद्धता और सुदृढ़ हुई है।
पोलियो मुक्त भारत की यात्रा दृढ़ संकल्प, सहयोग और नवाचार की उल्लेखनीय गाथा है। देश की यह उपलब्धि सामूहिक टीकाकरण अभियान मजबूत राजनीतिक इच्‍छा शक्ति, प्रभावी निगरानी प्रणाली और सामुदायिक प्रयासों का परिणाम है। निरंतर सतर्कता बरतने और सतत टीकाकरण प्रयासों से भारत पल्‍स पोलियो मुक्त स्थिति बनाए रखने और पोलियो को हमेशा केलिए समाप्‍त करने के वैश्विक लक्ष्य में योगदान केलिएप्रतिबद्ध है। भारत के पल्स पोलियो कार्यक्रम और सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता अन्य देशों केलिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गया है। यह प्रभावी व्‍यवस्‍था, सुदृढ़ नीति और सामुदायिक भागीदारी के समर्थन से सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल की परिवर्तनकारी शक्ति को दर्शाता है।

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